स्नेह-सिंचन
कहकशाँ हाइबन आदरणीया सुधा गुप्ता को उनके 82 वें जन्म दिन पर त्रिवेणी परिवार की तरफ़ से एक छोटा सा उपहार था ,जो समय के अभाव से कुछ दिनों की देरी से उनको भेंट किया गया।
कभी वह किणमिण उजाले में बैठकर धूप से गपशप करती है और कभी उसके हिस्से में आई चुलबुली रात ने कोरी मिट्टी के दिए जलाकर ओक भर किरणें से खुशबू का सफ़र तय किया है। अपने कलात्मक करिश्मों से वह मुहांदरा चमकाती गई जब कभी अकेला था समय। उसकी नई मंजिलों के दस्तावेज़ महज लफ्ज़ नहीं बल्कि उसके सफ़र छाले हैं।
त्रिवेणी परिवार आपके सुखद ,स्वस्थ जीवन की कामना करता है ! आपका आशीर्वाद सदा सबको मिलता रहेगा ।
कहकशाँ हाइबन आदरणीया सुधा गुप्ता को उनके 82 वें जन्म दिन पर त्रिवेणी परिवार की तरफ़ से एक छोटा सा उपहार था ,जो समय के अभाव से कुछ दिनों की देरी से उनको भेंट किया गया।
18मई, 1934 में जन्म, 83 वें वर्ष में पदार्पण कर चुकी डॉ सुधा गुप्ता जी ने 12 वर्ष की अवस्था से काव्य -रचना शुरू कर दी थी । अब तक आप ने बालगीत,कविता संग्रह, शोध , हाइकु ,ताँका, चोका आदि विभिन्न विधाओं में लिखा है और कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । हाइकु की विधा में जब गुणात्मक रचना -संसार की बात आएगी तो शीर्ष पर आपका ही नाम आएगा ।इस विधा में समर्पण का जुनून ही कहिए कि ‘अकेला था समय’ ग्रन्थ आपके हस्तलेख में होने के साथ-साथ आपके द्वारा बनाए गए चित्रों से सुसज्जित है । आपको ‘प्राइड ऑफ़ मेरठ’ का सम्मान भी मिल चुका है ।
अपनी शारीरिक अस्वस्थता एवं अ्समर्थता के बावजूद अपनी प्रतिक्रिया इस पत्र द्वारा भेजी है जिसे पाकर हम धन्य हो गए।
त्रिवेणी परिवार आपके सुखद ,स्वस्थ जीवन की कामना करता है ! आपका आशीर्वाद सदा सबको मिलता रहेगा ।