डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
क्या आज हवाएँ हैं
क़ातिल हैं , कितनी
मासूम अदाएँ हैं ।
2
वो साथ हमारे हैं
अम्बर फूल खिले
धरती पर तारे हैं।
3
ख़ुशियाँ तो गाया कर
ज़ख़्मों की टीसें
दिल खूब छुपाया कर ।
4
सब
राम हवाले है,
आँखों में पानी
दिल पर क्यों छाले हैं।
5
अब क्या रखते आशा
गैरों से समझी
अपनों की परिभाषा ।
6
मैंने तो मान दिया
क्यों बाबुल तुमने
फिर मेरा दान किया ।
7
मन चैन कहाँ पाए?
इतना
बतलाना-
क्यों
हम थे बिसराए।
8
ये भी तो सच है ना
चाहा हरजाई
यूँ हार गई मैना ।
9
पीछे कब मुड़ना है
अब परचम अपना
ऊँचे ही उड़ना है ।
10
छोड़ो भी जाने दो
मन
की खिड़की से
झोंका इक आने दो ।
11
हाँ ! घोर अँधेरा है
सपनों में मेरे
नज़दीक सवेरा है।
12
सपना जो तोड़ दिया
ज़िद ने हर टुकड़ा
मंज़िल से जोड़ दिया ।
13
मानी है हार नहीं
तेरा साथ मिला
जीवन अब भार नहीं ।
14
ख़ुद को पहचान मिली
बंद - खुली पलकें
तेरी मुस्कान खिली ।
15
कुछ खबर है राहत की
ख़्वाबों में मिलकर
बातें कीं चाहत की ।
-0-
डॉ•भावना कुँअर
1
है मुश्किल राह बड़ी
पर सच की सीढ़ी
सबने कब यार चढ़ी ।
2
रिश्तों को मान मिला
जैसे कोयल को
फिर भूला गान मिला ।
3
कुछ नीड़ बनाए थे
जिनमें यादों के
पंछी उड़ आए थे ।
4
खुद से ही कह लेंगे
हम तो मोती हैं
सागर में रह लेंगे ।
5
सच की राह न छोड़ें
तूफ़ानों से डरकर
नौका न कभी मोड़े ।
6
रोकर क्या पाओगे
कुछ शुभ कर्म करो
जीवन तर जाओगे।
7
विषधर पहचाने हैं-
अच्छा , कौन बुरा
वो सब ही जाने हैं।
8
अपनों से बच रहना
खोलो ना पलकें
सपने क्या, मत कहना।
9
यादें मधुर सजाना
कड़वाहट पीकर
सुख का साज बजाना ।
10
हैं मीठे बोल कहाँ
महक उठे जीवन
वे पल अनमोल कहाँ ।
11
सब सच्चे मीत गए
सपनों के जैसे
भोर हुई रीत गए ।
-0-
1-ज्योत्स्ना प्रदीप
1
पहले- सा ताल नहीं
वो युग बीत गया
सोनी -महिवाल नहीं।
2
अब सब कुछ बदल गया
फूलों -से दिल को
वो पल में मसल गया।
3
ये प्यार न शर्ते हैं
जीवन का कर्ज़ा
हम अब तक भरते हैं।
4
अब दिल पर घाव बनें
बाहें ढीली हैं
इनमें न कसाव बनें।
5
टेका मुख बाँहों पर
नम न हुआ वो दिल
बिखरा कुछ राहों पर।
6
मन को अब होश नहीं
रस घन से बहता
मौसम पर रोष नहीं।
7
लो आया जब सावन
आँसू ले भागा
वो छोटा -सा इक घन।
8
फिर भी कुछ बाकी है
अलकों में उलझी
बूँदें एकाकी हैं ।
-0-
2-शशि पाधा
1
सावन की बूँद झरी
नैनों की नदिया
कोरों से उमड़ पड़ी।
2
सागर कुछ जाने ना
नदिया के मन की
बूझे, पहचाने ना।
3
कलकल में कहने दो
बहती नदिया को
रोको ना बहने दो।
4
सागर भी मौन खड़ा
स्वागत की घड़ियाँ
प्रिय पथ पर नयन जड़ा।
5
सब लाज शर्म छोड़ी
बहती नदिया ने
निज धार इधर मोड़ी।
6
किरणें मुस्काती हैं
लहरों के धुन में
मल्हारें गाती हैं।
7
चिरबंधन की वेला
नीले अम्बर में
निशि तारों का मेला।
8
मोती अनमोल हुआ
प्रीत पिटारी का
धन से ना मोल हुआ।
-0-
प्रियंका गुप्ता
1
रुत बहुत सुहानी है
तुमसे मिलते ही
कलियाँ खिल जानी है ।
2
कितनी सूनी रातें
थोड़ा चैन मिला
पी लीं तेरी बातें ।
3
मुश्किल तो जीना है
तेरा साथ रहे
हर ग़म को पीना है ।
4
सुनसान डगर मेरी
चलते जाना है
तूने अँखियाँ फेरी ।
5
छोटा -सा बच्चा है
बातें समझ -भरी
न अकल का कच्चा है ।
6
काटे जो पेड़ यहाँ
इक दिन होगा वो
ढूँढोगे साँस कहाँ ।
7
जो प्रीत निभाई है
सुख-दुख साथ जिएँ
अब कसम उठाई है ।
8
कब ऐसा था जाना
तुझसे प्रीत हुई
जग लगता बेगाना ।
-0-