डॉ•भावना कुँअर ‘जाग उठी चुभन’
डॉ•सतीशराज पुष्करणा
हिन्दी–काव्य तो यों ही पर्याप्त समृद्ध है ;किन्तु समृद्धि की कोई सीमा नहीं होती, वह असीम है। अत: यही कारण है कि साहित्य सदैव एक दूसरी देशी एवं विदेशी भाषा से अपने संस्कार के अनुरूप बहुत कुछ लेता एवं बहुत कुछ देता है। इसी क्रम में जापान से अन्य देशों की भाषाओं में काव्य की अनेक विधाएँ–यथा: हाइकु, ताँका, सेदोका, चोका इत्यादि आईं। इनमें भारतीय कवि हाइकु को तो विगत लगभग दो–तीन दशकों से पूरी सक्रियता से लिख रहे हैं। इसके बाद ताँका भी शनै: शनै: संतोषजनक प्रगति कर रहा है। इन्हीं के साथ–साथ चोका और सेदोका भी धीमे-धीमे ही सही विकास पा रहे हैं।
रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’ के अनुसार-‘सेदोका का आधर हैं’ 5–7–7 के दो कतौता। कतौता अपने आप में अर्ध कविता है। दो कतौता मिलकर पूर्ण कविता बनते हैं। प्रथम भाग में जो कथ्य होता है, दूसरे भाग में एक अलग कोण, अलग परिदृश्य में उसी बात की पुष्टि या प्रस्तुति रहती है। हिन्दी में ‘अलसाई चाँदनी’ (21 कवियों के 326 सेदोका, अगस्त 2012) इस क्षेत्र में पहला संग्रह है, जिसका संपादन डॉ•भावना कुँअर, डॉ•हरदीप कौर ‘सन्धु’ और मैंने किया था। इसी वर्ष डॉ•उर्मिला अग्रवाल के ‘बुलाता है कदम्ब’ और देवेन्द्र नारायण दास के एकल संग्रह आये। डॉ•रमाकान्त श्रीवास्तव का सेदोका संग्रह ‘जीने का अर्थ’ 2013 में,डॉ•सुधा गुप्ता का सेदोका संग्रह ‘सागर को रौंदने’ सन्
2014 में प्रकाशित हुआ। इसी की नवीनतम कड़ी के रूप में डॉ•भावना कुँअर का‘जाग उठी चुभन’ है
,जो अपनी विषय–वस्तु के अनुसार क्रमश: रिश्ते काँच–से,
दर्द के दरिया में, जाग उठी चुभन,
गर्म है हवा, प्रकृति–प्रेम और छिनी नीम की छाँव छह शीर्षकों में विभक्त है।
सेदोका भी चूँकि काव्य का ही रूप या विधा है। अत: इसमें कवित्व का होना ज़रूरी है। और भावना के सभी सेदोका इस निकष पर खरे उतरते हैं ।इनके पूर्व में प्रकाशित दो हाइकु–संग्रह ‘तारों की चूनर’ एवं ‘धूप के खरगोश’ के अध्ययन का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है। इसलिए मैं इनकी काव्य–प्रतिभा से भली–भाँति परिचित हूँ। इनकी वही प्रतिभा इनके सेदोकाओं में भी प्रत्यक्ष है। उदाहरणार्थ यह सेदोका का देखें-
रिश्ते काँच–से/जरा ठसक लगी/चूर–चूर हो गए/जोड़ना चाहा/रीते मन के प्याले/घायल हम हुए।
(पृष्ठ–19)
प्रेम के रिश्तों की नाज़ुकी को स्पर्श करता यह सेदोका सीधा हृदय को स्पर्श करता है। वस्तुत: श्रेष्ठ कविता की यह पहचान भी है , वह सीधा हृदय को स्पर्श करती है। कारण कविता वस्तुत: हृदय से निकली चुभन है ; जो अनुभूतियों को जगाते हुए संवेदनाओं के रूप में प्रत्यक्ष होती है और पाठकों को प्रभावित करती है।
इसी प्रकार प्रेम में वियोग का एक चित्रण निम्न सेदोका में देखा जा सकता है कि यादों में जीना कितना पीड़ादायक होता है। ऐसे में उस अपने की चाह होती है ,जो यादों में बसता है। इस भाव को अभिव्यक्ति देता यह सेदोका महत्त्वपूर्ण है-
यादों में जीना/मेरे दिल का बोझ/बेहिसाब बढ़ाए/थामे जो हाथ/जो लगे अपना–सा/वो सामने आए।(पृष्ठ–35)
भावना कुँअर अति भावुक मन–मिजाज़ की प्रतिभा सम्पन्न कवयित्री हैं
, अत: स्वाभाविक है इनकी कविताओं में यथार्थ की अपेक्षाकृत भावुकता का पक्ष अधिक सबल एवं प्रखर हो। कारण काव्य–रचयिता ज़रा–ज़रा–सी बात से प्रभावित होता है; अत:
उसके मन से अपनी पीड़ा निश्चित रूप से उसके सृजित काव्य में शक्ति एवं प्रभाव उत्पन्न कर देती है। इस संदर्भ इनका यह सेदोका देखें-
बरसों तक/सोई थी जो दिल में/जाग उठी चुभन/निखर गया/कविताओं का रूप/खिल गया चमन।(पृष्ठ–45)
आज भारत ही नहीं पूरे विश्व में पर्यावरण चर्चा का विषय है,
कारण आधुनिकीकरण के कारण जीवन दुर्लभ हो गया। इसका कारण व्यक्ति स्वयं ही है उसने जंगल गाँवों को भी इसी आधुनीकरण के चपेट में ले लिया है। इस तथ्य को प्रत्यक्ष करता यह सेदोका देखें-
गर्म है हवा/छीन ले गया कौन?/नीम की ठण्डी हवा/बसता था जो/साँसों में सबके ही/गुम हो गया गाँव।(पृष्ठ–61)
मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इस पुस्तक के प्राय: सभी सेदोका उद्धृत होने की पूरी क्षमता रखते हैं। हरेक की अपनी–अपनी काव्य विशेषता है।
कवयित्री की विषय–वस्तु एवं प्रस्तुति दोनों ही उल्लेखनीय हैं जबकि ऐसा देखने में कम आता है।
(अभिनव प्रत्यक्ष जुलाई –15 से साभार )
जाग उठी चुभन, कवयित्री : डॉ•भावना कुँअर, प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली–110030; संस्करण : 2015, पृष्ठ : 88, मूल्य : 180 रुपये
7 टिप्पणियां:
डॉ. भावना कुँअर की एक और भाव प्रवण प्रस्तुति 'जाग उठी चुभन' (सेदोका संग्रह ) पर आदरणीय सतीश राज पुष्करणा जी की सशक्त लेखनी से बहुत सारगर्भित , सटीक समीक्षा निसृत हुई है |वास्तव में पुस्तक जितनी बार पढ़ो मन को विगलित करती है , रस सिक्त करती है !
समर्थ कवयित्री एवं समीक्षाकार को हार्दिक बधाई ,बहुत शुभ कामनाएँ ,नमन !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
निश्चित ही भावना जी का सेदोका-संग्रह 'जाग उठी चुभन' के सभी सेदोका दिल को छूने वाले हैं । जैसा कि आदरणीय सतीशराज पुष्करणा जी ने कहा है, हर सेदोका में भावुकता का पक्ष यथार्थ की अपेक्षा सबल है -शायद इसीलिए वे पाठक के दिलों तक पहुँचने में सफल भी हुए हैं, होंगे ! किसी भी रचनाकार की इससे बड़ी उपलब्धि और क्या होगी कि वह अपनी रचनाओं को पाठकों के दिलों की आवाज़ बना ले !
भावना जी को इस ख़ूबसूरत संग्रह के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
आदरणीय सतीशराज पुष्करणा जी को इस सुंदर समीक्षा के लिए बहुत-बहुत बधाई !
~सादर
अनिता ललित
सुंदर समीक्षा
बहुत सुन्दर समीक्षा!
Jyotsna ji, anita ji tahe dil se aapka aabhar ki aapni meri rachnaon ke mul ko pahchana,samjha aap logon ke sarahana bhare shabd hi meri lekhni ko or nikharte hain jahana khubiyan najar aayi vnha kamiyan bhi najar aane par bataiyega taki main sudhar bhi kar sakhun aap logon ka fir hrdy se aabhar ...
गर्म है हवा/छीन ले गया कौन?/नीम की ठण्डी हवा/बसता था जो/साँसों में सबके ही/गुम हो गया गाँव।(पृष्ठ–61)
bhawna ji aapki utkrisht pantiyaan hi jaag uthi chubhan ki atma ka darshan kara rahi hai...ati sundar! prabhu kare aap isi tarh likhti rahen...aapko dil se badhai ,shubhkaamnayen tatha duayen .
aadarniya pushkarna ji ko sadar naman !aapki lekhni bahut sashakt hai saath hi saargarbhit bhi ...eak sabal samikshakaar pustak padhne ki jigyasa ko janm deta hai ...jo... aappne kiya hai aise anukarniya hasti ko vishesh naman....badhai ,shubhkaamnao v duao ke saath -
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