1-माहिया-सपना मांगलिक
1
चल हों जग से ओझल
यूँ ही कुछ कर लें
हम अपना प्रेम सफल
2
बेजा क्यों प्यार किया
देना ही था गम
ये क्यूँ
उपकार किया
3
गीत मधुर जीवन का
दिल नादाँ गा रे
मनमीत मिला मन का
4
फैले जग उजियारा
चंदा सा दमके
मोहक रूप तिहारा
-0-
2-ताँका-अनिता मण्डा
1
उलझे रोज़
ईयरफोन जैसी
ज़िन्दगी यह
सुलझाया जब भी
उलझी हुई मिली ।
2
गिरते रहे
रात भर झील में
खिलते रहे
महकते कमल
चमकते तारों के।
3
बिखर जाती
हाथों से निकल के
चाँदनी रातें
यादों की डगर पे
चल देती तन्हां ये।
4
मिली तपिश
समंदर का पानी
हो गया मीठा
ऊपर उठकर
बादल बन गया।
5
आसमाँ तेरे
आँगन में सितारे
कम नहीं थे
नहीं लेते मुझसे
मेरी आँखों का तारा।
6
क्या पता चाँद
सिसकता रहा क्यों
रात भर से
सिरहाने के पास
जाने क्या था कहना?
7
रातें अपनी
इबारतें हैं जैसे
दर्द से लिखी
दिन बँटे-बँटे से
गुजर ही जाते हैं।
-0-
9 टिप्पणियां:
बेजा क्यूँ प्यार किया
देना ही था गम
ये क्यूँ उपकार किया।.....बहुत सुन्दर सपना जी!
आसमा तेरे /आँगन में सितारे....
रातें अपनी / इबारतें हैं जैसे.....दोनों ताँका बहुत मन को छुए!
अनीता मण्डा जी, सपना जी.....बहुत बधाई!
सुन्दर प्रस्तुति ..
बेजा क्यों ....मिली तपिश और आसमाँ तेरे ..बहुत भावपूर्ण रचनाएँ !
सपना जी एवं अनिता जी को हार्दिक बधाई !
सपना जी, चल हों जग से ओझल
यूँ ही कुछ कर लें
हम अपना प्रेम सफलखूबसूरत माहिया हैं, सब से सुन्दर है -- बधाई आपको |
रातें अपनी
इबारतें हैं जैसे
दर्द से लिखी
दिन बँटे-बँटे से
गुजर ही जाते हैं। बहुत खूब अनिता जी, सभी तांका गहरी सोच लिए | बधाई इस प्रस्तुति के लिए |
शशि पाधा
सुन्दर रचनायें.आप दोनो को बधाई.
सभी माहिया बहुत अच्छे लगे सपना मांगलिक जीऔर अनिता मण्डा आप के ितांका एक से बढकर एक बहुत मन को भाये ।जैसे - बिखर जाती ... और यहवाला मिली तपिश / समन्दर का पानी हो गया मीठा / उपर उठकर / बादल बन गया ।यह वाला बड़ा मार्मिक लगा --- आसमाँ तेरे / आँगन में सितारे / कम नही थे / नही लेते मु झ से / मेरी आँखों का तारा ।
दोनों रचना कारों को बहुत बहुत वधाई
कमला घटाऔरा
बेजा क्यों प्यार किया
देना ही था गम
ये क्यूँ उपकार किया
bahut khub ! bahut bahut badhai..
आसमाँ तेरे
आँगन में सितारे
कम नहीं थे
नहीं लेते मुझसे
मेरी आँखों का तारा।
bahut marmik,meri badhai...
सुंदर माहिया ! विशेषकर--
बेजा क्यूँ प्यार किया
देना ही था गम
ये क्यूँ उपकार किया।... बहुत अच्छा लगा !
हार्दिक बधाई सपना जी !
ताँका पढ़कर क्या कहें! निःशब्द हैं हम ! बहुत दुखभरा एहसास है ! विशेषकर 'आँख का तारा'...
दिल तक पहुँचने वाले इस सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई अनीता मंडा जी !
~सादर
अनिता ललित
आप सभी का हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर माहिया और तांका...हार्दिक बधाई...|
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