1-माहिया
ज्योत्स्ना प्रदीप
1
यूँ न कभी रोना है
देखो शबनम को
काँटे भी धोना है ।
2
अब बहुत हुआ सहना
नभ पर चमकेगी
बेटी घर का गहना ।
3
सहने का काम नहीं
बनना क्यों सीता
मिलते जब राम नहीं ।
4
कुछ ऐसे नातें हैं
कितनी दूरी हो
मन में बस जातें हैं ।
5
बिन जानें प्यार
किया
बिन देखे पौधा
जड़ नें संसार जिया ।
6
होठों को भान नहीं
कितने दिन बीतें
इन पर नव -गान नहीं ।
7
उसने कुछ छीला है
नम ये आँखें हैं
मन में कुछ
गीला है ।
8
आँखों का दोष
यहीं
आँसू छलकाएँ
पीड़ा का कोष यही ।
9
नारी के साथी गम
राधा या
सीता
या हो चाहे मरियम।
10
नारी जग का मोती
उतरी धरती पर
दुख- शय्या पर सोती ।
11
जीवन में हास नहीं
कौन पथिक ऐसा
जिसको ये प्यास नहीं ।
12
न कभी जो हारी
है
पीड़ा की मूरत
केवल वो नारी है ।
-0-
2-सेदोका
कमला घटाऔरा
1
वधू बरखा
बादलों की डोली से
उतरी शरमाती
सासू धरा ने
करके द्वाराचार
हँस गले लगाया।
2
प्रण किया था
आऊँगा प्रतिवर्ष
लौटे न वर्षों पिया
प्यार छलावा
आये कैसे विश्वास
आस जिन्दा है जब।
3
बिजली कौंधी
कहीं बादल फटा
चिन्ता हो गई घनी
माँ कहे किसे
कोई देखो जा कर
घर न लौटी बेटी।
4
रजनी बीती
उषा उठ छिड़के
चहुँ और गुलाल
चले ऑफिस
स्वर्ण रथ पे चली
सूर्य
संग किरणें।
5
श्रम से चूर
देख निढाल सूर्य
संध्या -बिटिया, बोली
पिता श्री! आओ,
करो थोड़ा विश्राम
अब घर चलके।
6
संध्या ने काढ़ी
चुन्नी मुकैश वाली
ओढ़ रजनी हर्षे
दिखा चाँद को
कभी शर्माती जाए
मुड़-मुड़ मुस्काए।
-0-
14 टिप्पणियां:
Badhai dono rachnaakaaron ko .
कमला जी आपने धरा को प्यारी सी सास बना दिया है।
माँ को बेटी की चिंता रहती ही है।
सरे सेदोका सुंदर।हार्दिक बधाई।
ज्योत्स्ना प्रदीप जी सारे माहिया सुन्दर।
विशेष
होठों को भान नहीं
कितने दिन बीतें
इन पर नव -गान नहीं ।
मन को छू गया।
बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी ....कुछ नाते , बिन जाने , नव-गान बेहद खोबसूरत ..हार्दिक बधाई !
सुन्दर बिम्ब लिए बहुत सुन्दर सेदोका ...वधू बरखा और बिजली कौंधी बहुत अच्छे लगे ..हार्दिक बधाई कमला जी नमन !!
लाजवाब! एक-एक माहिया बहुत दिल को छूने वाला ज्योत्स्ना प्रदीप जी....हार्दिक बधाई!
कमला जी बहुत सुन्दर सेदोका! "वधु बरखा" बहुत अचछा लगा....हार्दिक बधाई!
सुंदर
aadarniya himanshu ji tatha hardeep ji ka hridy se abhaar mujhe yahan sthaan dene ke liye...saath hi aap sabhi gunijanon ka ..sach! aapke udgaar utsaah badhate hai..
kamla ji bahut sundar sedoka....'vadhu barkha' ne man moh liya .sadar naman ke saath badhai .
jyotsana ji bahut sundar mahiya hain. badhai kamla ji sundar sadoka hardik badhai bahanon
वाह! सभी माहिया दिल को छू गए... ज्योत्स्ना जी ! बहुत ही सुंदर !
आदरणीया कमला जी... सेदोका से बढ़कर एक !
आप दोनों को हार्दिक बधाई !
~सादर
अनिता ललित
सहने का काम नहीं
बनना क्यों सीता
मिलते जब राम नहीं ।
बहुत खूब...|
कुछ ऐसे नातें हैं
कितनी दूरी हो
मन में बस जातें हैं ।
अक्सर होता है ऐसा ही...। दिल को छू गया ये माहिया...।
सभी माहिया मन को भा गए । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...।
बिजली कौंधी
कहीं बादल फटा
चिन्ता हो गई घनी
माँ कहे किसे
कोई देखो जा कर
घर न लौटी बेटी।
आज के समाज को आईना दिखाता सेदोका...। बहुत बधाई...।
टिप्पणी माहिया पर ---ज्योत्स्ना प्रदीप जी आपके माहिया पढ़ कर कुछ अच्छा पढ़ा है ,चित को आनंद देने वाला ,ऐसा लगा है। यह वाले तो क्या कहने --- सहने का काम नही /बनना क्यों सीता।/मिलते जब राम नहीं /नई सोच की प्रस्तुति बहुत सुंदर है। कुछ ऐसे नाते ---आँखों का दोष नहीं --- और यह वाला तो सर्वोत्तम बन पड़ा है --- न कभी जो हारी है /पीड़ा की मूर्त /केवल वो नारी है। हार्दिक वधाई। इतना अच्छा लिख कर इसी तरह वधाइयां बटोरते रहें।
मान्य संपादक जी आप ने मेरी अपरिपक्व लेखनी से लिखे सेदोकाओं को आपने यहां स्थान दे कर मुझे और एक कदम चलने की प्रेरणा दी है। आप का और सभी स्नेही पाठकों का बहुत बहुत आभार।
कमला
सहने का काम नहीं
बनना क्यों सीता
मिलते जब राम नहीं ।
javab nahi man moh liya aapne ,nari moti vaala bhi bahut pasand aaya meri hardik badhai...
संध्या ने काढ़ी
चुन्नी मुकैश वाली
ओढ़ रजनी हर्षे
दिखा चाँद को
कभी शर्माती जाए
मुड़-मुड़ मुस्काए।
bahut achha sedoka aapko bhi hardik badhai...
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