ज्योत्स्ना प्रदीप
1
ये कैसी रीत हुई
जिसने पीड़ा दी
उस ही से प्रीत हुई।
2
पीड़ा में प्रीत बसे
दुख में जीवन का
हर प्यारा गीत बसे ।
3
गीतों में आन बसे
देखूँ जब तुमको
वीणा के तार कसे।
4
कैसी है ये भाषा
जगती है हर पल
प्यारी सी इक आशा।
5
आशा आधार बनी
इसके बिन काया
भू पर बस भार बनी।
6
मन को तो आज गिला।
मेरा बन के भी
वो मुझसे दूर मिला ।
7
मिलना तो बस मन का
मीरा के मन में
मुखड़ा था मोहन का।
8
जीवन क्यों यूँ बीता?
अगन परीक्षा दी
तनहा फिर भी सीता।
9
जो मन के मोती हैं
पीर उन्हें ज़्यादा
जग में क्यो होती है?
10
जब सब कुछ छूटे है
दो बूँदें आँसू
ये जग क्यों लूटे है।
11
कैसी ये चाहत है
दो पल चैन नहीं
ना दिल को राहत है।
12
ये कैसा जीवन है?
पल- पल मरते हैं
मछली जैसा मन है
13
ये पीड़ा भी प्यारी
जीवन समझाती
फिर भी है बेचारी।
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