1-ज्योत्स्ना प्रदीप
1
तू था ही
नही
बीती बैसाखी पर
आ जाना ,राखी पर
तय हो गया
तेरी वीरा का ब्याह
तकती तेरी राह ।
2
बसे बिदेस
लौट भी आओ घर
माँ- बाप के अधरों
छाया सन्नाटा
तुमने ही तो बाँटा
अब मुस्कान धरो ।
-0-
यादें
पुष्पा मेहरा
1
बही जो हवा
उड़ने लगा मन
ले आया भाव-
तृण,
बटोरा उन्हें
आज सजा रही
हूँ
उन्हीं से
सुधि-वन ।
2
वक्त - दरिया
आया, बहा ले गया
जो कुछ हाथ
लगा,
गढ़ जो लुटा
एकांत उकताया
मीठी यादें
ले आया ।
-0-
6 टिप्पणियां:
"वीरा का ब्याह" और "सन्नाटा " मन को छू गया ..ज्योत्स्ना जी बहुत बहुत शुभ कामनाएँ !!
मीठी यादें लिए सुधि-वन मनमोहक है .....नमन वंदन पुष्पा जी
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
तू था ही नही
बीती बैसाखी पर
आ जाना ,राखी पर
तय हो गया
तेरी वीरा का ब्याह
तकती तेरी राह ।
वक्त - दरिया
आया, बहा ले गया
जो कुछ हाथ लगा,
गढ़ जो लुटा
एकांत उकताया
मीठी यादें ले आया ।
मन को छू जाने वाले भाव...बहुत सुन्दर...बधाई...|
आप दोनों को सुंदर रचना के लिए बधाई .
मन को छू गए आप दोनों के सेदोका....बहुत-२ बधाई !
चारों सेदोका ही बहुत अच्छे हैं ! 'सन्नाटा' व 'सुधि-वन' का तो क्या सुन्दर भाव ! मन को छू गए !
ज्योत्स्ना प्रदीप जी एवं पुष्प मेहरा जी आप दोनों को हार्दिक बधाई !
~सादर
अनिता ललित
jyotsnaji,priyanka ji,manju ji,krishna ji utsah vardhan ke liye bahut bahut abhar......pushpaji....sudhi van ...bahut hi manmohak
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