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सोमवार, 25 जनवरी 2016

679



1-कृष्णा वर्मा
1
बड़ा अधीर
होता ये ख़ारा नीर
झरे ज़रा -सी पीर
झट ढो लाए
जा हृदय का भार
नैन- नदी के तीर।
1
माटी के हम
औ बनाए हमने
रेत के ही मकान
थमा ना कभी
सिलसिला तूफानी
कैसे निभे गुमान।
3
हैं स्मृतियों के
धुँधले दर्पण में
पूर्ण पलों की छाया
टँगे सवाल
उलझन की खूँटी
क्या-क्या खोया,क्या पाया।
4
लगने लगा
अनायास यादों का
सतरगी बाज़ार
ढलने लगीं
मेरी जीवन शामें
यादों की रौनक में।
-0-
पिटारी यादों वाली-सीमा स्मृति
      आज याद कि पिटारी में से एक याद का मोती आप सब के लिए निकल आया। शायद  से बात सन् उन्नीसों बहत्तर की है -मैं केवल नौ वर्ष की थी। मुझे टेलीविजन देखने का बहुत शौक था।  मैं उस समय की बात कर रही हूँ ,जब टेलीविजन के शुरूती दिन थे। पूरे मोहल्ले में एक ही घर पर एंटिना दिखाई देता था। मुझे टेलीविजन देखने की  इतनी रुचि थी कि मैं  अपने मोहल्ले की लाइट ना होने पर कभी कभी दूसरे मोहल्ले के घर में टेलीविजन देखने चली जाती थी । कोई कोई टेलीविजन वाला घर तो इतवार को फिल्म आने वाले दिन, पचीस पैसे टिकट लगा देता था मुझे याद है, हमारे सामने वाले घर में टेलीविजन वाली आण्टी की बेटी से मेरी दोस्ती थी । हम दोनों हमेशा घरघर, स्टापू,गिट्टे रस्सा कूदना,पिठू-गर्म जाने क्या क्या  खेल साथ साथ खेलते थे। एक दिन रंजना से मेरी लड़ाई हो गई। शायद  बात मम्मियों तक पहुँच गई।  ओहो वो दिन था इतवार । फिल्म आने का दिन, मैं उन के गेट पर अन्दर जाने को खड़ी थी । तभी उसकी मम्मी दनदनाती हुई निकल कर आई और बोली कि खबरदार जो घर में घुसी, तेरी एक टाँग तो खराब है, लगड़ी है, दूसरी भी तोड़ दूँगी(मेरी टाँगो में पोलियो है)और मुझे वहाँ से भागा दिया । मैं उनकी लगड़ी  बात से ज़्यादा दुखी नहीं हुई अपितु  फिल्म ना देख पाने के दु:ख के कारण रो रही थी ।
मेरे पिता जी ने मुझे बहुत समझाने कि कोशिश की पर मेरा वो दुख तो  फिल्म न देख पाना था । मैं रोते रोते सो गई। अगले दिन उदास मन से स्कूल चली गई। मुझे याद है स्कूल में पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था ;बल्कि मैं रंजना से पुन: दोस्ती करने के उपाय सोच रही थी। दोपहर को जब मैं घर आई तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । मेरे पिता जी हमारे लिए वेस्टन कम्पनी का एक नया टेलीविजन ले आये थे । मम्मी ने बताया कि पापा ने कल साथ वाली  आण्टी ने जो मुझे टाँग तोड़ने वाली बात कही थी, वो  सुन ली थी ।  थोड़े दिनों बात मैं देखा कि पापा शाम को घर देर से आने लगे । मैं कई बार पापा के आने  का इंतजार करते करते सो जाने लगी और कभी सुबह देखती कि पापा का गला खराब है ,वो अकर गरारे कर रहे होते थे ।मैंने  म्मी से पूछा कि पापा आजकल इतनी देर से क्यों आते हैं, तो मम्मी ने बताया कि हमारे पास इतने रुपये नहीं थे कि टेलीविजन खरीद सकें।उन्होंने अपने दोस्त से उधार लिया है। ये टेलीविजन बहुत मँहगा है। चार हजार रुपये का है; इसलिए तेरे पापा अपने स्कूल के बाद तीन जगह ट्यू पढ़ाने  जाते हैं; ताकि हम उधार चुका सकें।  आज भी मेरे जहन में टेलीविजन का वो मूल्य जो रोज सुबह पापा के गरारों के रूप में सुनाई देता था, याद है । आज हमारे घर में चार टेलीविजन हैं और पापा बहुत शौक से दिन भर अपने कमरे में टेलीविजन देखते रहते हैं-
मिश्री -सी मीठी
निबौरी सी कड़वी
अनन्त यादें।                                       
    - सीमा स्मृति

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

यादें



सीमा स्मृति

आजकल चारों ओर फैले स्वाइन फ्लू को देख कर बरबस मुझे बीस बरस पुरानी यादों ने घेर लिया। परत दर परत मेरे ज़हन में तस्वीरें उभरने लगी ।
सीमा, तुम को कितनी बार मना करूँ, तुम मनु के साथ साइकिल पर बाजार तक मत जाया करो। अभी बहुत छोटा है । अभी उसे पूरी तरह से साइकिल चलनी भी नहीं आती है। कहीं ऐसा ना हो तुम दोनों को गिर जाओ या कोई चोट लग जाए। मम्मी ने डाँटते हुए कहा।
नहीं, मम्मी वो छोटा पर मेरा बहुत ख़्याल रखता है। वो मेरे लिए बहुत ध्यान से साइकिल चलाता है। मेरा स्वीटू सा मिनी फ्रेंड है मनु।
मुझे याद है, जब भी पापा और भया घर से बाहर होते तो मुझे बस स्टैण्ड, बाजार या छोटे- छोटे कामों के लिए निर्भर रहना पड़ता था।दोनों टाँगों में नौ माह की अवस्था में पोलियो के कारण मेरी जिन्दगी का सर कुछ अलग था।  मनु मेरा मिनी फ्रेंड, जो मुझ से कम से कम 15 वर्ष छोटा था। पापा और भैया के घर से बाहर होने पर,  हमेशा जब जरूरत होती मेरे हर कार्य में सहायता करता था।
हाँ, उस दिन को याद कर मेरी हँसी बन्द नहीं पा हो रही थी। वो मुझे कालेज जाना था और बस-स्टैण्ड छोड़ने के लिए मैंने मनु को कहा। पता नहीं, उस दिन क्या हुआ गली के मोड़ से पहले ही उसकी साइकिल..............धम् से नाली  में चली गई। ये गनीमत थी, नाली गहरी नहीं थी। हम दोनों गिर ग कोई चोट नहीं आई । बस थोड़े कपड़े खराब हो गए। आस-पास देखने वाले लोग जोर- जोर से हँसने लगे।
मनु के साथ बिता पलों की कितनी ऐसी यादें थीं। उसके सभी लड़के- लड़कियों मित्रों के सा गोल-प्पे खाने जाना, किसी को डराना, पिक्चर देखना। बारिश में घूमने जाना और ना जाने कितनी शरारतें थी।
जिन्दगी का सर बढ़ता गया। मनु की नौकरी लगी, वो दुबई चला गया। उसकी शादी हो गई। फिर एक दिन ख़बर आई की मनु की स्वाइन फ्लू से मृत्यु हो गई। मैंने उस समय पहली बार स्वाइन फ्लू शब्द सुना था। बची तो बस यादें ....यादें, इसके सिवा कुछ भी नहीं !!

मिश्री सी मीठी
निबौरी-सी कड़वी
अनंत यादें।
 -0-
जी-11 विवेक अपार्टमेंट,श्रेष्ठ विहार दिल्ली 110092 

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

है टूटा एतबार।



1-सीमा स्मृति
1
ये चारो ओर 
घमण्ड का गुबार
बनावट आधार
नोंचे- खसौटे
मानवता व प्या
है टूटा एतबार।
2
कैसा माहौल
हर ओर घोटाला
प्यार दफना डाला
कैसे संस्का
स्लों को मिटा डाला
जहर घोल दिया
-0-
2- मंजु गुप्ता 
1
अवार्ड बनी 
पांडुलिपियाँ  मेरी 
लिख खुद का नाम 
प्रकाशित की
मेरे समीक्षक ने 
जीवन पूंजी छीनीं  
2
लोभी  कुपुत्र 
लाठी का सहारा ना 
वसीयत चुराई 
आँखें दिखाए 
कृतघ्न विष पिला
प्राणों को वे हरता
-0-
3-कृष्णा वर्मा
1
अजब बात
मन हाथ जिह्वा 
सने स्वार्थ में आज
रिश्तों की नौका
छेद के पैगंबर
छूना चाहें अम्बर
-0-
4-सुनीता ग्रवाल
1
सजते नहीं
सूरजमुखी रिश्ते
जीवन गुलदस्ते
सुबह खिले
मुरझा जाते है ये
सूरज जब ढले  ।
2
तपस्यारत
बगुला नदी तट
निज उदर हेतु
भोली मछली
पहचान पाती 
खल का ग्रास बनी ।
-0--0-