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शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

बाँसुरी के सात सुर (ताँका)


बाँसुरी के सात सुर (ताँका)
1-डॉ सुधा गुप्ता
1
सुनो जी कान्हा!
सात छेद वाली मैं
खाली ही ख़ाली
तूने अधर धरी
सुरों की धार बही ।
2
बाँस की पोरी
निकम्मी, खोखल में
बेसुरी, कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई बाँसुरी
3
कोई न गुन
दो टके का न तन
तूने छू दिया
कान्हा! निकली धुन
लो, मैं नौ लखीहुई ।
4
छम से बजी
राधिका की पायल
सुन के धुन
दौड़ पड़ गोपियाँ
उफनी है कालिन्दी ।
5
तेरा ही जादू
दूध पीना भूला है
गैया का छौना
चित्र-से मोर, शुक
कैसा ये किया टोना !
6
गोपी का नेह
अनूठा, निराला है
सास के ताने
पति-शिशु का मोह
छोड़ जाने वाला है ।
7
आज भी कान्हा
बजा रहे बाँसुरी
निधि-वन में
लोक-लाज छोड़ के
दौड़ी राधा बावरी ।

-0-
2-डॉ सरस्वती माथुर
1
राधा अधूरी
घनश्याम के बिना
निष्काम प्रेम
कृष्णमय है मन
चंचल चितवन  

2
राधा बौराए
वंशी तान सुनके
बावरी डोले
मधुवन घूमती
कान्हा ओ कान्हा!’ बोले
3
मुझे न बुला
बाँसुरी तान सुन
गोपियाँ हँसें
राधा है समझाए
कृष्ण संग मुस्काए ।
4
राधा बौराए
वंशी की धुन सुन
बावरी डोले
बन में आकुल -सी
कृष्णमय हो जाए  ।
5
यमुना -तीरे
राधामय हो कृष्ण
बंसी बजाएँ
राधा कृष्ण को देंखें
रास- रचैया खेलें ।
-0-
3-वीरबाला
बंसी बजैया
तू नाग का नथैया
मैया पुकारे
अब तो घर आजा
सूरत दिखला जा  ।
-0- 

( सभी चित्र: कार्तिक अग्रवाल)