1-नाक का सवाल
सपना मांगलिक
नई- नई शादी होकर
आगरा आई ।जिस रिश्तेदार ने मेरा सम्बन्ध कराया था ,उन्होंने एक दिन अपने घर खाने पर बुलाया ।अचानक उन्होंने
बताया कि आज वह अपने एक मित्र के साथ मुर्गेवाजी देखने जाएँगे ।मैं
चौंक उठी ;क्योंकि यह शब्द पहले मेरे संज्ञान में नहीं आया था ।मेरी
उत्सुकता भाँपकर उन्होंने मुझे भी
अपने साथ ले लिया । हम आगरा के मुस्लिम बहुल इलाके में पहुँचे ।ये
बहुत भीड़भाड़- भरा
पुराना बाज़ार नजर आ रहा था ।जगह- जगह जालियों में बंद मुर्गे ऐसे लग रहे थे ,जैसे किसी
ने उन्हें जबरन बेतरतीब ठूँस दिया हो ।ऊपर
कुछ सींखचों में त्वचा विहीन जीव लटके हुए थे और खासी दुर्गन्ध छोड़ रहे थे ।खैर हम
पैदल चलते चलते एक अखाड़ेनुमा जगह में पहुँचे जहाँ गोलाई में भीड़ जमा थी और अत्यधिक चीख चिल्लाहट हो रही थी ।हमने भी अपनी जगह सँभाल ली और
मुर्गेवाजी देखने लगे ।दो मोटे -मोटे मुर्गे एक दूसरे पर अपनी चोंच से कभी प्रहार करते ,तो कभी एक दूसरे पर
चढ़ने की कोशिश करते ।इस कोशिश में उन दोनों के पंख यहाँ- वहाँ बिखरने लगे थे ।मुर्गों
के मालिक झुम्मन और नौशाब उत्तेजित होकर अपने- अपने मुर्गे को और आक्रामक होने के लिए तेज आवाज़ में उकसा
रहे थे और भद्दी -भद्दी गालियों का प्रयोग भी जमकर कर रहे थे ।मुझे
समझ नहीं आ रहा था कि मुर्गे लड़वाकर किसको फायदा होने वाला है ?तभी एक सज्जन ने बताया कि
मुर्गों पर दाव लगे हुए हैं ;जो मुर्गा जीतेगा उसके मालिक का हफ्ते भर दारू का इंतजाम
हो जाएगा ।मैं यही सोच रही थी कि एक तेज़ जश्ननुमा शोर सुनाई दिया- “झुम्मन का मुर्गा जीत गया ।”
झुम्मन को साथियों ने कंधे पर उठा
लिया था ।उधर नौशाब ने एक करारी लात अपने निढाल हारे हुए मुर्गे पर मारी ,मुर्गा
किंकियाने लगा ।और नौशाब मुर्गे को गालिया देते हुए- “आज तेरा कीमा बनाकर खाऊँगा अहसान फरामोश ,नाक कटा के रख दी मियाँ के आगे”
और निरीह मुर्गा दाएँ से बाएँ और बाएँ से दाएँ अपनी गर्दन जल्दी जल्दी हिलाते हुए मानो कह रहा हो –
बेजुबाँ पर
तरस तुम खाओ
मत सताओ ।
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2-किसकी हार
सपना मांगलिक
मेरे
तीन वर्षीय पुत्र का दाखिला मैं मिशनरी स्कूल में करवाने को पापड़ बेल रही
थी ।बच्चे को चार चार घंटे सुबह शाम पढ़ाना ।मगर मेरा पुत्र जो कि अत्यधिक सक्रियता
की परेशानी से ग्रस्त है और अपना एक जगह
ध्यान स्थिर करने में असमर्थ भी ।उसे एडमिशन की समस्याओं का रत्तीभर इल्म नहीं था ।वह तो हमेशा
की तरह दौड़भाग ,तोड़ा- फोड़ी आदि की शरारतों में अपना
ध्यान ज्यादा केन्द्रित करता ।बड़ी मेहनत से उसको संभावित प्रश्नों के उत्तर रटवाए और नियत
तिथि को इंटरव्यू के लिए स्कूल गए । टीचर के
पूछे प्रश्नों का जवाब देने के स्थान पर उसने वहाँ रखी चीजें लेकर भागना और हर सवाल जिसके उसे जवाब मैंने अच्छी
तरह से रटा रखे थे ,उनके जवाब में स्वभाव के अनुसार नहीं ,नहीं कहना शुरू कर दिया ।इंटरव्यू
बहुत बुरा गया ।बाकी बच्चों के माता पिता और शिक्षकों के सामने में अपमानित-सा महसूस
कर रही थी। मुझे लगा जैसे मैं बुरी तरह से हरा दी गई हूँ।मैंने
घर लौटते ही उस मासूम बुरी तरह झल्लाने लगी और
उसको तीन- चार थप्पड़ भी जड़
दिए । वह सहम गया और मुझे खुश करने के लिए
मुझे छूने की और प्यार करने की कोशिश करने लगा ।मगर जैसे ही वो मुझे छूता,मैं उसका हाथ झटक देती और उससे कहती आप मेरे बेटे नहीं हो ।जाओ
यहाँ से ,अब तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा ,मम्मा कभी तुमसे बात नहीं करेगी ।उसदिन वह ऊधम कम कर
रहा था और करते वक्त कनखियों से मुझे नोटिस कर रहा था कि कहीं मैं उसे पीट तो नहीं
दूँगी ।उस दिन उसके चेहरे पर बिलकुल भी हँसी नहीं दिखी ।शाम को जब मैंने उसे खाने की प्लेट दी, तो वह
मुझे परेशान करने के लिए भागा नहीं ।और प्लेट से रोटी तोड़ने की असफल कोशिश करने
लगा ।इतने घंटों बाद मैंने उसे ध्यान से देखा ,वह चुपके चुपके मेरी भाव भंगिमा नोट
कर रहा था और उसकी आँखों में आँसू तैर रहे
थे । मानो कहना चाहता हो –
मत झल्लाओ
बस प्यार ही जानूँ
गले लगाओ ॥
-एफ-659
कमला नगर आगरा 282005
ईमेल –sapna8manglik@gmail।
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