1- हाइबन
डा सुरेन्द्र वर्मा
1- महिष गाए,
मंदसौर मध्य प्रदेश का एक छोटा
सा नगर है। उन दिनों मैं वहाँ महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में पदस्थ था। एक
नए, अधूरे बने, किराए के मकान में वहाँ टेकरी पर रहता था। सामने वाली सड़क
से सब्जी-मंडी में सब्जी पहुँचाने के लिए भैसों पर सब्जी लादकर किसान भाई सुबह
सुबह निकलते थे। उनके बगल में ट्रांजिस्टर दबा रहता था और वे गाने सुनते जाते थे।
बड़ा मजेदार दृश्य होता था। एक दिन सुबह पानी बरस रहा था। क्या देखता हूँ कि भैंस
के ऊपर छाता लगा है और ट्रांजिस्टर बदस्तूर गाने उगल रहा है। सरसरी नज़र से बस यही
प्रतीत हुआ। वस्तुत: भैस पर लदी सब्जी के
ऊपर किसान छाता लगाकर बैठ गया था जिससे उसका पूरा शरीर ढक गया था। लगता था भैस ने
ही छतरी लगा रखी है और वही गाना सुन रही है। कहावत तो यह है, भैंस के आगे बीन बजाए, भैस खडी पगुराए! लेकिन यहाँ तो –
महिष गाए,
वर्षा में पीठ पर
छाता लगाए।
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2- जूते गायब
मंदसौर और उसके आसपास जैनियों
की अच्छी-खासी संख्या है। वहाँ जैन धर्म पर प्राय: प्रवचन आदि आयोजित होते रहते थे।
मैं क्योंकि दर्शनशास्त्र का प्राध्यापक था , मुझे भी ऐसे समारोहों में शिरकत करने का
अक्सर मौका मिल जाता था। एक बार जैन दर्शन के व्रतों पर धारावाहिक आयोजन किया गया।
प्रतिदिन किसी एक व्रत पर चर्चा के लिए किसी विद्वान् को आमंत्रित किया जाता था।
मुझसे कहा गया कि मैं ‘अस्तेय’ पर बोलूँ। ऐसे समारोहों में खूब भीड़ इकट्ठी हुआ करती थी।
मैं जब पहुँचा हॉल खचाखच भरा हुआ था। प्रसन्नता भी हुई कि आज भी नैतिक सद्गुणों
में रुचि लेने वाले लोग मौजूद हैं और इतनी संख्या में उपस्थित हैं। बहरहाल भाषण
हुआ, तालियाँ पिटीं और
वापस जाने के लिए जब स्टेज की नीचे जहाँ मैंने अपने जूते उतारे थे ,उन्हें ढूँढ़ने लगा
तो वे सिरे से गायब थे। बेचारे आयोजक बहुत दु:खी हुए। जूतों की काफी तलाश की गई; लेकिन वे मिल न
सके। मैंने कहा आप परेशान न हों। भीड़-भाड़ में ऐसी वारदात हो ही जाती हैं। कार में
नंगे पाँव भी बैठ जाऊँगा तो भी किसी को क्या पता चलेगा! बहरहाल –
भाषण हुआ
अचौर्य पे,लौटा तो
जूते गायब ।
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2-चोका
सपना मांगलिक
पथ दुर्गम
कितना हो बेशक
प्राण दीपक
मैं जलाती जाऊँगी
तनिक भी न
अब घबराऊँगी
तोड़ डालूँगी
मुश्किलों के पत्थर
सोख लूँगी मैं
नाकामी का समुद्र
जली आग है
सीने में जूनून की
पलट रुख
तूफानों का रखूँगी
नहीं डरूँगी
पथ से इतर मैं
नहीं हटूँगी
बनाके रस्सी
हौसलों के जूट से
चढूँगी फिर
ख्वाबों की ऊँचाई पे
थोडा । हँसूँगी
रो लूँगी फिर थोड़ा
थाम रखूँगी
भावनाओं का ज्वर
चढ़ने दूँगी
न सर पे अपने
नहीं गिरूँगी
वहीं रुकी रहूँगी
विजय की चोटी पे ।
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एफ-659 कमला नगर आगरा 282005
ईमेल –sapna8manglik@gmail.
9 टिप्पणियां:
sabhi rachnayen bahut achhi lagi bahut bahut badhai....
डॉ. वर्मा, मज़ेदार हाइबन !
सपना जी, भावपूर्ण चोका!
आप दोनों को शुभकामनायें …
बहुत सुन्दर हाइबन, सुन्दर वैचारिक दृष्य बन रहा है...सादर बधाई !!
सपना मांगलिक जी के सुन्दर सकारात्मक चोका ने मन मोह लिया...बधाई व शुभकामनाएँ !!
dhanyavad aap sabhi ko
बहुत मज़ेदार, रोचक हाइबन एवं सुंदर सकारात्मक चोका।
आ. सुरेन्द्र वर्मा जी व सपना मांगलिक जी को हार्दिक बधाई !
~सादर
अनिता ललित
दोनों हाइबन बहुत रोचक ,सुन्दर हैं !
सकारात्मक सोच लिए चोका भी बहुत प्रेरक, प्रभावी है !
आदरणीय डॉ. वर्मा जी एवं सपना मांगलिक जी को हार्दिक बधाई !
~सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
aadarniy dr.verma ji v sapna ji ko rochak haiban tatha sunder choka likhne ke liye hardik badhai .
चेहरे पर एक सहज मुस्कान ले आने वाले मजेदार हाइबन के लिए बहुत बधाई...|
चोका भी बहुत सुन्दर लगा...| मेरी बधाई...|
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