भीकम सिंह
1
आलिंगन में
प्रेम की स्मृतियाँ हैं
कई साल की
तुहिन झर रहा
रात मध्यकाल की।
2
घुप्प अँधेरा
कहीं ना कोई तारा
ऐसा है प्यार
मेरा और तुम्हारा
कैसे होगा गुज़ारा।
3
तुम हू- ब- हू
ख़्वाबों में उतरती
लेके भादों-सा
ऑंखें तब ढूँढती
वो, सावन यादों
का।
4
मेरे ही लिए
तुम खिलखिलाओ
आओ निकट
देखो,
प्रेम की नदी
छोड़ रही है तट।
5
तुम्हारा प्रेम
वासना पर टिका
कित्ती रातों में
अनकहा ही रहा
प्रेम,
उन रातों में।
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