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बुधवार, 22 अगस्त 2018

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1-डॉ. हरदीप कौर संधु






















2-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

1.अब जाल समेटो-

बहुत हुआ
अब जाल समेटो
कमी वक़्त की
भुजपाश लपेटो
कल न होंगे
इतना तुम जानों
यही सत्य है
हे प्रियवर ! मानो
सफर छोटा
पर अच्छा ही बीता
कर न पाए
हम मन का चीता
बन्धन न था
यह इस जग का
फिर भी  इसे
भरपूर निभाया
पात्र था छोटा
पर अधिक  पाया
जन्मेंगे हम
फिर तुम्हें मिलेंगे
तेरे आँगन
निश्चय ही खिलेंगे
मन में छुप
हम बात करेंगे
कोई भी मारे
अमर भाव सृष्टि
हम नहीं मरेंगे
.
-०-
2-चन्दन वन

चन्दन वन
अपनों ने जलाया
बचे थे ठूँठ
थोड़ी सी खुशबू
किसी कोने में
आखिरी साँस लेती,
कोई आ गया
मन व  प्राणों पर
खुशबू बन
प्यार बन छा गया
जो कुछ बचा
वह उसी का रचा
उसी का रूप
सर्दी की वह धूप
मेरी जीवन  आशा।
-०-