रश्मि विभा त्रिपाठी
गुरुवार, 27 जनवरी 2022
शनिवार, 15 जनवरी 2022
गुरुवार, 13 जनवरी 2022
1021-चैन की साँस
ताँका-प्रीति अग्रवाल
1.
तोड़ी हमने
रूढ़ियों की बेड़ियाँ
चैन की साँस
खुला, नीला आकाश
कुछ और न चाह!
2.
अधीर-सा है
आज फिर ये मन
ढूँढ रहा है
कुछ प्रश्नों के हल
कुछ सुकूँ के पल।
3.
आखिर क्या है
प्रेम की परिभाषा
कोई न जाने
राधा, मीरा, पद्मिनी
सीता या यशोधरा?
4.
स्कूल, कॉलेज
जीवन-पाठशाला
सब पे भारी
चुन-चुन दे शिक्षा
ज्ञान भरी पिटारी।
5.
बत्तू है चाँद
मीठी-मीठी बतियाँ
रोज़ सुनाए
न मुझे ही सोने दे
न खुद सोने जाए।
-0-
1020-कर्मयोगी पिता
सेदोका- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
पिता तुमने
बनके कर्मयोगी
परपीड़ाएँ भोगी
तुम्हारी सुधि
क्या उन्हें आती होगी
वे 'कृतघ्नता- रोगी'।
2
तुमने छोड़ा
जबसे मेरा हाथ
विप्लव दिन- रात
झेल रहे हैं
प्रतिपल आघात
प्राण- मन औ गात।
3
बीत गए हैं
कई माह औ साल
कितनी मैं बेहाल
क्यों न आए
पिता की तस्वीर से
प्राय: पूछूँ सवाल।
4
विचर रहे
दूरस्थ दिव्य लोक
देखें जो आते शोक
प्राय: पिता के
अभ्यर्थना के श्लोक
देते दु:ख को रोक।
5
जबसे गए
जीवन- उपवन
नीरव औ निर्जन
किंतु पिता का
मंगलाकांक्षी मन
होने न दे उन्मन।
6
शुभाशीष के
बरसाएँ सुमन
स्वर्ग से हो मगन
प्यारे पिता का
करुणाकारी मन
करे धन्य जीवन।
7
तुम तक क्या
कोई जाती है राह
पूछ रही है आह
तुम्हारे बिन
पिता जग में कैसे
अकेले हो निबाह।
8
तुम सर्वज्ञ
और हो अगोचर
रहे सदा तत्पर
रखते ध्यान
मेरा प्रति पहर
मुझे व्यापे न डर।
9
घड़ी दु:ख की
मुझपर जो बीती
औ जिजीविषा रीती
आशीष-सुधा
पिता उड़ेलें, पीती
पुनि तभी मैं जीती।
-0-
सोमवार, 10 जनवरी 2022
1019-समय-चक्र
डॉ. सुधा गुप्ता
1
समय-चक्र
जीवन-अरगनी
सुख-दु:ख लटके,
धोते-सुखाते
कभी मुस्कान खिली
कभी आँसू टपके।
2
इतनी पीड़ा!
रुदन भी खो गया
अचरज बो गया,
सूखी आँखों में
बस जलन बाकी
हर साथी खो गया।
-0- (सभी चित्र गूगल से साभार
गुरुवार, 6 जनवरी 2022
1018-आशाओं की उड़ान
रश्मि विभा त्रिपाठी
1
ये अँधियारे
प्रिय! छँट जाएँगे
कितना सताएँगे
हम धैर्य के
दीपक जलाएँगे
दीप्ति- गीत गाएँगे।
2
उपयुक्त है
केवल मन- प्रांत
जहाँ मिले एकांत
आरम्भ करें
अनुराग- वृत्तांत
आओ आसन्न कांत।
3
प्रिय ने दिया
अतुल्य पाँख-दान
और प्रतिष्ठा-मान
भर रही हूँ
आशाओं की उड़ान
'छुऊँ मैं आसमान'।
4
किंचितमात्र
गला न पाएँ दाल
वैरी बड़े बेहाल
प्रिय बनके
मेरी श्वासों की ढाल
काटें कुल जंजाल।
5
हरकारा दे
अनुभूति तत्काल
मैं जो होऊँ बेहाल
अलि! आ काटें
प्रिय पीड़ा- जंजाल
दुआ- दीप दें बाल।
6
वहन करे
मेरा जीवन-भार
भूलूँ न उपकार
बड़े भाग से
डूबी, उबरी, पार
प्रीति खेवनहार।
7
प्रवहमान
मन- गंगा प्रेमिल
भाव- वीचि फेनिल
मैं प्रिय संग
डूबी तो गया मिल
अनुराग अखिल।
8
प्रियवर का
प्रार्थना का प्रयोग
लाया है शुभ योग
मैं मुक्त हुई
निरस्त अभियोग
निर्वासित वियोग।
9
कदाचित हो
संकट से सामना
प्रिय निश्चलमना
आलिंगन में
कस पिघला देते
अवसाद ये घना।
10
क्रूरतापूर्ण
करें शर- संधान
कष्ट औ व्यवधान
प्रीति प्राणदा
फूँके मुझमें जान
प्राण- मानस त्रान।