रश्मि विभा त्रिपाठी
1
ये अँधियारे
प्रिय! छँट जाएँगे
कितना सताएँगे
हम धैर्य के
दीपक जलाएँगे
दीप्ति- गीत गाएँगे।
2
उपयुक्त है
केवल मन- प्रांत
जहाँ मिले एकांत
आरम्भ करें
अनुराग- वृत्तांत
आओ आसन्न कांत।
3
प्रिय ने दिया
अतुल्य पाँख-दान
और प्रतिष्ठा-मान
भर रही हूँ
आशाओं की उड़ान
'छुऊँ मैं आसमान'।
4
किंचितमात्र
गला न पाएँ दाल
वैरी बड़े बेहाल
प्रिय बनके
मेरी श्वासों की ढाल
काटें कुल जंजाल।
5
हरकारा दे
अनुभूति तत्काल
मैं जो होऊँ बेहाल
अलि! आ काटें
प्रिय पीड़ा- जंजाल
दुआ- दीप दें बाल।
6
वहन करे
मेरा जीवन-भार
भूलूँ न उपकार
बड़े भाग से
डूबी, उबरी, पार
प्रीति खेवनहार।
7
प्रवहमान
मन- गंगा प्रेमिल
भाव- वीचि फेनिल
मैं प्रिय संग
डूबी तो गया मिल
अनुराग अखिल।
8
प्रियवर का
प्रार्थना का प्रयोग
लाया है शुभ योग
मैं मुक्त हुई
निरस्त अभियोग
निर्वासित वियोग।
9
कदाचित हो
संकट से सामना
प्रिय निश्चलमना
आलिंगन में
कस पिघला देते
अवसाद ये घना।
10
क्रूरतापूर्ण
करें शर- संधान
कष्ट औ व्यवधान
प्रीति प्राणदा
फूँके मुझमें जान
प्राण- मानस त्रान।
2 टिप्पणियां:
समर्पण एवं प्रेम से परिपूर्ण ये समस्त रचनाएँ हृदयोद्गार हैं..... अत्यंत मधुर.... 💐🌹🌹🌹🌹
सेदोका प्रकाशन हेतु आदरणीय सम्पादक जी का हार्दिक आभार।
अपनी सुन्दर टिप्पणी से मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आदरणीया अनिमा जी की आभारी हूँ।
सादर
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