सोमवार, 31 अगस्त 2020
933-यादें
शनिवार, 22 अगस्त 2020
932
डॉ. पूर्वा शर्मा
संताप-भार
सोमवार, 10 अगस्त 2020
931
ज्योत्स्ना प्रदीप
1
सोई आँखें मूँदें
छोड़ गई मन
माँ
ग़म की अनगिन बूँदें ।
2
जो हमको समझाती
जिसने जनम दिया
इक दिन वो भी जाती !
3
बिन नींदों की
रैना
तेरे जाने से
भरते रे घन-नैना ।
4
कैसी लाचारी थी
आँखों की पीड़ा
होठों न उतारी थी !
5
माँ जैसा कब कोई
तेरी छाँव
तले
मीठी नींदें
सोई ।
6
मुरझाई तुलसी है
तेरी छाँव नहीं
श्यामा भी झुलसी है ।
7
कुछ अपनों को लूटें
फ़ूलों की क्यारी
कुछ ज़हरीले बूटे ।
8
वो घर था माई का
जब वो छोड़ चली
घर है अब भाई
का ।
9
हर बेटी रोती
है
मात -पिता के बिन
मैके ग़म ढोती है ।
10
मैका अब छूट गया
पावन नातों को
लालच ही लूट गया !
11
अपने ही छलते हैं
दीपक के भीतर
अँधियारे पलते हैं ।
12
कुछ ख़ास मुखौटे थे
आँखों की चिलमन
सोने के
गोटे थे ।
13
धन का आलाप करें
इसकी ही ख़ातिर
'अपने 'ही पाप करें ।
14
जिसने दौलत लूटी
करतल खाली थी
काया जब भी छूटी !
15
वो प्यारा नग दे दो
छू लूँ पाँवों को
पावन वो पग दे दो !
-0-
शनिवार, 8 अगस्त 2020
930
सुदर्शन रत्नाकर
1
बहती तेज़ हवाएँ
बूँदों
से मिलके
मन में आस जगाएँ।
2
लोगों से मत डरना
तेरे बिन साजन
अब जीकर क्या करना।
3
चुप-चुप क्यों रहते हो
मन की बात करो
कितने दुख सहते हो
4
झूम रहा बादल है
मिलने को आतुर
यह दिल तो पागल है।
5
ऊँची दीवारें हैं
तुम बिन सूना घर
बेकार बहारें हैं।
6
फूलों की क्यारी है
बेटी बोझ नहीं
वो सब की प्यारी है।
7
काजल तो काला है
केवल ईश्वर ही
सबका रखवाला है।
8
छाया अँधियारा है
मत घबरा साथी
आगे उजियारा है।
9
आँसू या मोती हैं
चाँद चमकता है
रजनी क्यों रोती है।
1०
समय बुरा आया है
अपने ही घर में
अब क़ैद कराया है
-0-
सुदर्शन रत्नाकर
मोबाइल-9811251135