तुहिना रंजन
1
कुछ असीम
कुछ सीमा तक था
प्रेम बरसा
बादल थमा रहा
भीगा -सा तरसा- सा
2
बाँध तोड़ चुकी थी
तट तड़पा
बाहों में भरने को
मिलन मधुर था ?
3
अनसुलझी
अजब पहेली -सी
उसकी आँखें
कुछ कहना चाहें
झिझकें, झुक जाएँ ।
4
दिल का कोना
कैसे वो दिखलाएँ
जहाँ छुपा है
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का ।
5
देखा तुमने?
सिसकियाँ दबातीं
आह छुपातीं
फिर भी भर आतीं
उसकी वो दो आँखें ।
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