डॉoभावना कुँअर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डॉoभावना कुँअर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

842


डॉ.भावना कुँअर

1. हार नहीं मानी

बड़ी गहरी
कुछ ऐसी फँसी ये
पीड़ा की फाँस
अन्तर्मन -कपाट
खुले ही नहीं।
भीतर ही भीतर
उबल रहा
दर्द -भरा दरिया
कोई भी छोर
यहाँ मिला ही नहीं।
बहुत कुछ
मैं तो कहना चाहूँ
पर जाने क्यों
संगम ये लबों का
हुआ ही नहीं।
जो भी दिया तुमने
बड़े मन से
हिम्मत,जतन से
अपनाया भी
दिल में बसाया भी
हार मानी ही नहीं।
-०-
2-मन की सीली दीवारें

सीली दीवारें
जो अकेलेपन की
दास्ताँ हैं सुने
जाने फिर क्या-क्या वो
सपने बुने।
मेरे मन का मीत
जल्दी आएगा
सारे दुःख मेरे वो
हर जाएगा।
खुशियों की धूप भी
खूब खिलेगी,
दूर होगा मेरा भी
ये सीलापन
आँसू के सैलाब से
मिला जो मुझे।
मज़बूत होंगी ये
रिश्तों की सीली
कमजोर दीवारें,
फिर खिलेंगे
मुरझाते ये फूल,
बगिया फिर
महकेगी ही खूब ।
कोयल फिर
एक बार कूकेगी।
सोचों में घिरी,
सपनों को सजाती,
देख न पाई
तेज आता तूफ़ान,
गिराता आया
विश्वास का मकान,
शक आ बैठा
सीले हुए मन पे,
बिखरा सब,
बचे थे कितने ही
अमिट वो निशान।
-०-
(आगामी चोका -संग्रह 'गीले आखर' से )


रविवार, 14 अक्टूबर 2018

837


डॉ.भावना कुँअर
1
रोली लेकर
आया अमलतास
औ कचनार
उबटन का थाल
बसन्त दूल्हा आज।
2
हाथ में कूँची
बसन्त लेके घूमें
नारंगी,पीले
गुलाबी,लाल,हरे
कितने रंग भरे।
3
पीली चूनर
कचनार ले आया,
गुलमोहर
गहरा लाल जोड़ा,
हरियाली दुल्हन।
4
गागर मेरी
दर्द से लबालब
कभी न रीती
अपनों ने दी मुझे
गहरी अनुभूति।
5
घर में आए
बनकर वो दोस्त
लगाएँ सेंध
हम भरोसा करें
वो छुप-छुप छलें।
6
मेरी भी प्रीत
थी मीरा जैसी साँची
विष का प्याला
उसने जो पिलाया
हँसी,होठों लगाया।
7
कोसते रहे
रात दिन मुझको
पतझर- सी
मैं झरूँ रात दिन
पर उफ! न करूँ।
8
जलते रहे
उड़ान देख मेरी
काटा परों को
ऊँची उड़ान कभी
अब भर न सकूँ।
9
पानी ही पानी
लील गया कितने
आँखों के ख़्वाब
बेबस लोगों की
कीमती जिंदगानी।
10
खूब ही रोया
जार -जार सावन
फिर भी धूप
हालत पर उसकी
तरस ही न खाए।
11
किसको कहूँ
है कौन यहाँ मेरा
मन की बात
बिन कहे समझे
मेरा दर्द भी बाँटे।
1
2
मेरा ये मन
पुकारे तुमको ही
तुम हों कहाँ
अपनी दुनिया में
क्यों रहते हो वहाँ।
1
3
दिन पखेरू
सुख के बन गए
दु;ख बने हैं
लम्बी,काली गहरी
अमावस की रात।
14
मुश्किल हुआ
समझना तुझको
तेरी प्रीत की
मचलती लहरें
उछलती बिछती।
15-एक लहर
मैं ढूँढू हर दिन
करे मुझपे
प्रेम -भरी बौछार
पर वो डुबा जाए।
-0-

मंगलवार, 19 जून 2018

813-खाली घरौंदा


डॉ.भावना कुँअर
1-सूना है घर

सूखती नहीं
अब आँखों से नमी
नाकाम हुई
हर कोशिश यहाँ।
समझ न पाऊँ
मैं हुई क्यों अकेली?
घोंटा था गला
अरमानों का सभी
पर तुमको
सब कुछ था दिया,
जाने फिर क्यों
हमें मिली है सज़ा
हो गया घर
एकदम अकेला
न महकता
अब फूल भी कोई
सूना है घर
न पंछियों-सा अब
आँगन चहकता।
-०-
2-खाली घरौंदा

मेरा सहारा
पुरानी एलबम
कैद जिसमें
वो सुनहरी यादें
खो जाती हूँ
बीते उन पलों में
कैसे बनाया
हमने ये घरौंदा
आए उसमें
दो नन्हे-नन्हे पाँव
बढ़ते गए
ज्यों-ज्यों था वक़्त बढ़ा
पर फिर भी
नाज़ुक बहुत थे
उनके पंख
लेकिन फिर भी वे
बेखौफ होके
भर गए उड़ान
ढूँढते हैं वो
जाने अब वहाँ क्या
जहाँ है फैला
बेदर्द  आसमान।
राह तकता
रह गया ये मेरा
बेबस बड़ा
पुराना-सा घरौंदा
खाली औ सुनसान।
-0-

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

666



1-तू तो आया ही नहीं
डॉ भावना कुँअर

ये हरपल
तकती रही आँखें
तेरा ही रस्ता
मर-मर कर भी
पर जाने  क्यों
तू तो आया ही नहीं।
याद है मुझे
पीड़ा-भरा वो तेरा
व्याकुल स्वर।
तेरा बीमार होना
मेरा मिलना
बड़ा ही जोखिम था।
तेरी आवाज़
खींच ले गई मुझे
तेरे करीब
देरी किए बिना ही
पहुँची थी मैं।
सुकून-भरा चेहरा
देखा था मैंने,
खुशी से मोती झरे
जी गए हम
पा गए थे जीवन
खिल उठा था
तेरा उदास मन।
कितना मरी
तूने नहीं था जाना
जली -कटी भी
बेहिसाब थी सुनी,
उफ़ !नहीं की,
लड़खड़ाते पैर
काबू में न थे,
फिर भी न रुकी ये
प्रेम की गली।
आज मैंने क्या माँगा?
तेरा ही साथ,
कौन -सी मजबूरी
बनी हैं बेड़ी,
तकती रही आँखें
तेरा ही रस्ता,
मरमर कर भी,
पर जाने  क्यों
तू तो आया ही नहीं।
मिट रही थी
तिलतिलकर मैं
खो ही चुकी थी
सुरों की भी झंकार
डरी- सहमी
बस तकती रही
रस्ता मैं तेरा
पर तू नहीं आया।
कैसे भुलाऊँ
वो दर्द भरे पल?
कैसे गुजरे
तुझे कैसे बताऊँ?
मन उदास
ना तो अब शब्द हैं
न कोई गीत
न कोई भी आभास
ना ये धरती
ना ये सूना आकाश
ना तू ही मेरे पास।
-0-

2-आकर्षण
अनिता मण्डा

भीतर कुछ
जलता अलाव- सा
बुझता कब
किया आँसुओं का भी
है आचमन
जाने कितनी बार
एक बेचैनी
रहती भरी हुई
है हर पल
बंजारे हुए नैन
किसे ढूँढ़ते
पाते हैं कब चैन
छूना है नभ
फैलाकर भुजाएँ
चाहूँ उड़ना
उठते नहीं पाँव
बाँधे है मन
कितने आकर्षण
या गुरुत्वाकर्षण।
-0-