डॉ.भावना कुँअर
1. हार नहीं मानी
बड़ी गहरी
कुछ ऐसी फँसी ये
पीड़ा की फाँस
अन्तर्मन -कपाट
खुले ही नहीं।
भीतर ही भीतर
उबल रहा
दर्द -भरा दरिया
कोई भी छोर
यहाँ मिला ही नहीं।
बहुत कुछ
मैं तो कहना चाहूँ
पर जाने क्यों
संगम ये लबों का
हुआ ही नहीं।
जो भी दिया तुमने
बड़े मन से
हिम्मत,जतन से
अपनाया भी
दिल में बसाया भी
हार मानी ही नहीं।
-०-
जो अकेलेपन की
दास्ताँ हैं सुने
जाने फिर क्या-क्या वो
सपने बुने।
मेरे मन का मीत
जल्दी आएगा
सारे दुःख मेरे वो
हर जाएगा।
खुशियों की धूप भी
खूब खिलेगी,
दूर होगा मेरा भी
ये सीलापन
आँसू के सैलाब से
मिला जो मुझे।
मज़बूत होंगी ये
रिश्तों की सीली
कमजोर दीवारें,
फिर खिलेंगे
मुरझाते ये फूल,
बगिया फिर
महकेगी ही खूब ।
कोयल फिर
एक बार कूकेगी।
सोचों में घिरी,
सपनों को सजाती,
देख न पाई
तेज आता तूफ़ान,
गिराता आया
विश्वास का मकान,
शक आ बैठा
सीले हुए मन पे,
बिखरा सब,
बचे थे कितने ही
अमिट वो निशान।
-०-
(आगामी चोका -संग्रह 'गीले आखर' से )
(आगामी चोका -संग्रह 'गीले आखर' से )