रमेश कुमार सोनी
1
लूटा जादू आँखों ने
मेरी आँखों से
वशीकरण वाली
मोहनी की मूरत ।
2
फटी बिवाई
घुँघरू दर्द गाते
भरे बाज़ार
खरीदते रईस ;
पैसे , पैरों में फेंके ।
3
सपने संग
नींद भी बिक जाती
बड़े बाज़ार
नींद , रोटी सौतन
बारी-बारी मिलती ।
4
सत्य साबुत
अनुमान अंधा है
झूठ के गाँव
तंगदिली गलियाँ
सच अकेला खड़ा ।
5
बिगुल बजे
सुख के ढोल भी गूँजे
दुःख की अर्थी
कनखियों से झाँके
आँसू , कराह सारे ।
6
रूप- मदिरा
पानी , बर्फ क्या डालूँ ?
सुर्ख ही पी ली
हुस्न वालों की गली
बहकना है मना ।
7
रात थकी है
रतजगा किया था
सीटी बजाते
‘जागते रहो’ बोले
जग कभी ना जागा !!
8
उठा नींद से
बाँग देता पूरब
गुम सपने
रोटी के बाज़ार में
सपने ही बिकते।
9
दुःख कहता-
‘सुख से रह सुख’
मत इतरा
दो दिन मेरा राज
वक्त से समझौता।
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