डॉ हरदीप कौर सन्धु
1
एक भी पत्ता
पीला हो मुरझाए
डाली से टूट जाए,
जान ले हाल
भीतर ही भीतर
पेड़ बहुत रोए ।
2
घर थे कच्चे
सब लोग थे सच्चे
हिल-मिल रहते
साथ निभाते
जीवन का शृंगार
बरसता था प्यार ।
पीला हो मुरझाए
डाली से टूट जाए,
जान ले हाल
भीतर ही भीतर
पेड़ बहुत रोए ।
2
घर थे कच्चे
सब लोग थे सच्चे
हिल-मिल रहते
साथ निभाते
जीवन का शृंगार
बरसता था प्यार ।
3
आया अकेला
देखने यह मेला
मिला साथ सुहाना
हँसा ज़माना
मेले में घूम-घूम
ढूँढ़ा सुख -खिलौना ।
4
देखने यह मेला
मिला साथ सुहाना
हँसा ज़माना
मेले में घूम-घूम
ढूँढ़ा सुख -खिलौना ।
4
मैं प्यासा राही
जीवन -सागर से
भरता रहा प्याले
प्यास बुझाऊँ
सागर भी शामिल
शामिल जग वाले ।
5
जीवन -सागर से
भरता रहा प्याले
प्यास बुझाऊँ
सागर भी शामिल
शामिल जग वाले ।
5
मेरी ये आत्मा
रंगीला उपवन
रंगीन तितलियाँ
मोह में रंगी
उड़ती यहाँ -वहाँ
खिली आशा कलियाँ ।
रंगीला उपवन
रंगीन तितलियाँ
मोह में रंगी
उड़ती यहाँ -वहाँ
खिली आशा कलियाँ ।
6
दोनों नदियाँ
वादियों में पहुँची
बनती एक धारावादियों में पहुँची
अश्रु बहते
छलकी ज्यों अँखियाँ
दु:ख सब कहती ।
7
पालने मुन्नी
माँ लोरियाँ सुनाए
मीठी निंदिया आए
यादों में सुने
लोरियाँ माँ का मन
दिखता बचपन
8
श्वेत व श्याम
दो रंग दिन-रात
अश्रु और मुस्कान
साथ-दोनों का
यहाँ पल-पल का
खेलें एक आँगन ।
9
तेरी अँखियाँ
ज्यों ही रुकी आकर
मन-दहलीज़ पे,
हुआ उजाला
जगमगाए दीए
मेरे मन-आँगन
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