रविवार, 21 अक्तूबर 2012

भीगे से दिन

 ।
1-डॉ सरस्वती माथुर
1
आँखें गीली- सी
यादों के झूलों पर
सपनो संग झूली
मन शहर
पाखी -सी पहुँची थी
भीगे से दिन लिये ।
2
रेशमी बूँदें
कजरे बदरा से
वर्षा की यूँ झरती
मोती हों जैसे
धरा पर गिरके
फूलों में जा जड़ती ।
3
नैन- तलैया
सपनो की कश्ती में
तैरता मन डोला
नींद भर के
मौसम से यूँ बोला-
मेरे संग भीगो न !
-0-

7 टिप्‍पणियां:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

तीनों ही सेदोका उत्कृष्ट...किसी एक को चुनना मुश्किल है|
सरस्वती माथुर जी को बधाई|

शशि पाधा ने कहा…

वाह! सरस्वती जी | सभी सेदोका सुन्दर | बधाई |

Krishna Verma ने कहा…

रेशमी बूँदें
कजरे बदरा से
वर्षा की यूँ झरती
मोती हों जैसे
धरा पर गिरके
फूलों में जा जड़ती ।
बहुत सुन्दर सेदोका

बेनामी ने कहा…

सुंदर परिकल्पना भर रचे गए सेदोका .... सरस्वती माथुर जी आपकी कलम को सलाम !
संगीता

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छे सेदोका सरस्वती जी बधाई !
स्वाति

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

नैन- तलैया
सपनो की कश्ती में
तैरता मन डोला
नींद भर के
मौसम से यूँ बोला-
मेरे संग भीगो न !
बहुत सुन्दर... बधाई...।

बेनामी ने कहा…

"आँखें गीली- सी

यादों के झूलों पर

सपनो संग झूली

मन शहर

पाखी -सी पहुँची थी

भीगे से दिन लिये!" ....
वाह... वाह ,यह होते हैं सेदोका भावों की नदिया बह रही है.... जी खुश हो गया ...मेरी बधाई डॉ सरस्वती को और संपादकों को !
रेखा