नेह-सागर हो माँ !
डॉ आरती स्मित
माँ! तुम ही हो
मंदिर की मूरत !
पूजा-अर्चना,
ईश्वर की सूरत ;
आस्था मन की,
श्रद्धा हो जीवन की ;
आत्मा की शक्ति ,
भगीरथ की भक्ति ;
शीत की धूप
और ग्रीष्म की छाँव
सभ्य नगरी,
संस्कार का ही गाँव ।
तुम्हीं गीत हो
तुम्हीं मेरा नाद हो ,
तुम्हीं साहस ,
तुम ही आह्लाद हो ।
तुममें गुँथें-
हैं मेरे रिश्ते सारे ,
तुमसे मिली
माँ !निश्चित दिशाएँ ;
तुमसे बँधी
समस्त भावनाएँ ,
तुम तक ही
समग्र कल्पनाएँ ;
पीड़ा हरती
मुझको सुख देती
मुसीबतों को
हँसकर सहती ।
ममतामयी
नेह-सागर हो माँ !
रीते ना कभी
वह गागर हो माँ !
जीवन-गति
हो जीवन-आधार ;
तेरे चरण
मेरा स्वर्ग बसा ;
आँचल स्वर्ग-द्वार ।
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6 टिप्पणियां:
माँ से ही तो जीवन को दिशा और सोच को आधार मिलता है. माँ के महत्व को दर्शाती बहुत अच्छी रचना. बधाई आरती जी.
भावपूर्ण चोका, बहुत अच्छा लगा...मेरी बधाई...।
प्रियंका
बहुत सुन्दर भावुक चोका। अमिता जी बधाई।
ममतामयी
नेह-सागर हो माँ !
रीते ना कभी
वह गागर हो माँ !
जीवन-गति
हो जीवन-आधार ;
तेरे चरण
मेरा स्वर्ग बसा ;
आँचल स्वर्ग-द्वार ।...माँ को समर्पित बहुत सुंदर प्रस्तुति ...!
माँ के अनन्य प्रेम को समर्पित बहुत सुंदर चौका है सुंदर रचना के लिए धन्यवाद और बधाई
सादर,
अमिता कौंडल
prem pagi sundar abhivyakti...
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