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मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

1195

 भीकम सिंह 


1

ऑंखों में चले 

मेघ के सिलसिले 

सच्चे -औ-सही

मैं तो देखता रहा 

बहार आई कहीं ।

2

मेरी जमीन 

और घर ऑंगन 

गली भी मेरी 

फिर भी सुनें लोग 

क्यों अनकही मेरी ।

3

प्रेम में कभी 

टूट जाते हैं सभी 

ख़्वाब -औ-ख़्याल

बन जाते हैं रास्ते 

एक नया बवाल ।

4

उसकी जुल्फ़ें 

बसन्त -सा ओढ़े हैं

लोग क्या जाने 

पतझड़ से पूछो

मस्त झोंकों के माने ।

5

झूठ है नही 

प्रेम हो जाने को है 

आज भी वही 

उड़ रहे हैं मेघ 

वहीं पर वैसे ही ।

6

वो भी दिन थे
प्यार वाले दिनों में,
शाम के होते
आ जाती थी  चाँदनी
कुछ कुहासे होते।

 

-0-

रविवार, 23 जून 2024

1183-प्रेम

भीकम सिंह


1

आलिंगन में

प्रेम की स्मृतियाँ हैं

कई साल की

तुहिन झर रहा

रात मध्यकाल की।

2

घुप्प  अँधेरा

कहीं ना कोई तारा

ऐसा है प्यार

मेरा और तुम्हारा

कैसे होगा गुज़ारा।

3

तुम हू- ब- हू

ख़्वाबों में उतरती

लेके भादों-सा

ऑंखें तब ढूँढती

वो, सावन यादों का।

4

मेरे ही लिए

तुम खिलखिलाओ

आओ निकट

देखो, प्रेम की नदी

छोड़ रही है तट।

5

तुम्हारा प्रेम

वासना पर टिका

कित्ती रातों में

अनकहा ही रहा

प्रेम, उन रातों में।

-0-

 

शनिवार, 28 मई 2022

1039

 1-भीकम सिंह 

                           सतसर झील 

  जम्मू -कश्मीर के गंदेरबल जनपद में सतसर या शनिसार या सात झीलों के समूह की अल्पाइन झील, जो तुलैल घाटी और सिंध घाटी के बीच प्राकृतिक पहाड़ी दर्रे का भी  कार्य करती है, मुख्य रूप से बर्फ के पिघलने से पोषित होती है ।बेहद खूबसूरत है । जी हाँ  ! उसी सतसर झील ने जैसे रात की चादर झाड़ी, तो लहरें सलवटें काढ़ती हुई पर्वत की ओर लुप्त हो गई । पर्यटकों के चलने से जो हल्की -हल्की धूल उड़ी , वह देर तक सूर्य किरणों में चमकती रही, सतसर ने लहरें हिला - हिला कर आवाज भी दी कि पर्यटको ! धीरे चलोपरन्तु पर्यटकों ने लहरों की बात अनसुनी कर दी, तो हवा ने बहना शुरू किया वैसे ही उती धूल ने बैठना । कुछ बैठे हुए पर्यटक कपड़ों की धूल झाड़ते खड़े हुए, तो उनके नीचे दबी -कुचली घास ने चुपचाप अंग खोलने शुरू कियेभेंड़- बकरियों के झुण्ड आने वाले हैं शायद उनकी अगवानी करनी हो ,यह सब देखते हुए नज़र सतसर पर लौटती है, जो निरागस चेहरा लिए सिंध घाटी की ओर चौड़ी होती जा रही थी । पर्यटक बढ़े जा रहे थे 

 


मुँह उजला 

पीठ पे नीला जल

लौटेगी कल ।

 

-0-

2-डॉ. सुरंगमा यादव
1


व्याकुल मन
तुम्हारी निशानियाँ
देतीं दिलासा।
मन-नयन-साँसें
ताकते नित राहें।
2
ये मन मेरा
तेरे स्वप्नों से सजा
तेरे बिन है
यह जीवन  सजा
 कौन समझे व्यथा।
3
प्रेम का पौधा-
समर्पण का जल
भावों की क्यारी
मन की निश्चलता
पाकर ही बढ़ता।
4
वसंत आता
सबको ये लुभाता
उतरे नहीं
जीवन में सबके
वसंत नखरीला।
5
थम न रहीं
बरखा की झड़ियाँ
मिल न रहा
प्रेमियों की बातों-सा
इनका कहीं सिरा।
6
सहेजा क्या-क्या!
तृप्ति कण न मिला
प्रेम की बूँद
सागर भर तृप्ति
जीवन भर देती।
7
नींद के संग
गलबहियाँ डाले
तेरे ही स्वप्न
थिरके रात भर
नयन मंच पर।
8
देख तपन
स्मृतियों की बरखा
भिगोती मन
नयनों की ओलती
रहती टपकती।
9
प्रेम-प्रदेश
वही करे प्रवेश
वार सके जो
प्रिय के आँसू पर
जीवन की मुस्कानें।

-0-


शुक्रवार, 20 मई 2022

1037-गुलमोहर-प्रेम

 1-गुलमोहर

भीकम सिंह 

1

फोटो-रश्मि शर्मा -राँची

धूप पहनें
 

गुलमोहर हुआ

दोपहर यूँ 

मेघों का इन्तजार 

जैसे कर रही लू ।


2

गुलमोहर 

तुम्हारे सामने था 

खुश इतना 

आग वाली ॠतु में 

माघ-पौष जितना 

3

धूल ही धूल 

गुलमोहर तक

ये ना सोचा था 

प्रेम के नाम पर

सुन्दर-सा धोखा था 

4

ताल के पास 

तलुओं तक घास

गुलमोहर 

मेरे अन्दर तक 

भरता था विश्वास 

5

गुलमोहर 

रंगे अप्सरा ने ज्यों 

लाल नाखून 

हरे वस्त्रों में इत्र

ढूँढती विश्वामित्र 

6

आँधी में आते 

गुलमोहर तले 

सभी तिनके 

जो भी तुमने फेंके

दाँतों-तले दबाके 

7

गुलमोहर 

शाखें यूँ लाल- हरी

सिगनल दे

ज्यों चौराहे पे खड़ी

सुन्दर-सी लड़की 

8

भरे कानों में 

कुछ सुनाई ना दे

प्रेम गहरा 

आँखों को वही दिखे 

गुलमोहर हरा 

9

छोटी जगह

गुलमोहर बड़ा

जो था वजह

वहाँ दौड़ के जाते 

मुलाकात छिपाते 

10

आज ही मिला 

सूना गुलमोहर 

पुरवाई को

झरे फूलों से गिला 

करके ही आई वो 

-0-

2- प्रेम

कपिल कुमार

1

तुम्हारा स्पर्श

प्रभात की किरण

छू रही ओस

मोती सा खिल उठा

मेरा वियोगी मन। 

2

उदास चाँद


चाँदनी ढूँढती
, ले

प्रेम दर्पण

पूर्णिमा की रजनी

हृदय समर्पण। 

3

अधूरे पन्ने

हृदय -अभिलाषा

प्रेम-संदेश

लिखें साथ बैठके 

चाँदनी उजास में।

4

जीवन- गति

तेरे चारों तरफ

भू की तरह

प्रेम को लालायित

ज्यों हो चाँद-चाँदनी। 

5

चाँद के नीचे

अप्रतिहत मन

स्नेह जिज्ञासा

व्याकुल हो खोजता

अपरिमित प्रेम। 

6

अर्थ ना ढूँढो

चाँदनी सा उज्ज्वल

चुप सा रहा

व्यक्त कैसे करता

शब्दातीत प्रेम। 

7

निर्वाक्  है प्रेम

धरा चाँद व्याकुल

दूर से देखें

नजदीक ज्यों आते

प्रेम में डूब जाते। 

8

तुमसे माँगी

आँसू भरी आँखों से

प्रेम की भीख

मौन थी अस्वीकृति

अब तो बनी स्मृति। 

9

प्रेम की प्यासी

प्यारे मेरी उदासी

छोड़के सब

ओढ़ के दोनों नभ

करे असीम बातें। 

10

अब सुनाओ

अपने होंठो से, वो

प्रेम-कविता

सुनने को उतरा

नदी में सुधाकर।

11

उदास साँझ

तालाब के किनारे

बैठी व्याकुल

हृदय पीड़ा कहे

प्रेम-वियोग सहे। 

12

प्रेम झड़प

आगे से असंबद्ध

दोनों सड़क

फ़िर दूर जा मिली

मन ही मन खिली। 

 -0-( गुलमोहर फोटो-रश्मि शर्माःसाभार)