अनिमा दास
1.
ऐसे क्या कहा
जो असहनीय था
काया से पृथक था
घृणा के शब्द
समाज न समझा
अंतस निःशब्द था ।
2.
साथी एक तू
भाग्य में सौभाग्य सा
घना वृक्ष पथ का
है संपूर्णता
संघर्षमय जग
नहीं है अपूर्णता।
3.
मृण्मय मूर्ति
अवरुद्ध कपाट
प्रश्नवाची कामना
व्यर्थ याचना
न पहुँचता स्वर
व्यर्थ है आराधना।
4.
एक कली- सी
हुई विकसित भी
किन्तु मुरझाई- सी
गुप्त अभीप्सा
बह गई स्वार्थ में
इच्छित मृत्यु जैसी।
5.
सांध्य वर्तिका
बुझती जा रही क्यों
दीप से क्या है रोष
श्वास में विष
वन का है विलाप
मूक प्राणी का दोष।
6.
दे दो विषाद
अवसाद व मृत्यु
अश्रु व दग्ध नभ
मौन रहेगी
इरा की आत्मा सदा
होगा इंदु निष्प्रभ।
7.
प्राण प्रत्यूष
कुहासों में है डूबा
तिक्त हुआ हृदय
विश्वास -रेखा
मिटती रही अब
ध्वस्त है स्वप्नालय।
8.
अनुरोदन
मिथ्या प्रयास मात्र
प्राणी-प्राण निमिष
कर ध्वंसित
वन उपवन,स्वार्थी
पिलाता रहा विष।
9.
मध्य निशिता
मंथर श्वास में सिक्त
लिखती है कविता
क्षुधित गर्भ
दरिद्रता में ढूँढे
एक नव सविता।
10.
प्रश्न में लुप्त
है जीवन दर्शन
अंतर्मन है रिक्त
निरुत्तर मैं
करूँ क्या अन्वेषण
जब है जग तिक्त।
-0-हिंदी
सॉनेटियर, कटक, ओड़िशा
2-भीकम सिंह
मेघ- 6
गन्ने चूसना
अबकी बार मेघ !
पौष में आना
पार साल रबी में
विलम्ब हुआ
सुनहरे गेहूँ की
मुस्कान मरी
कर देना अबके
तु हरी - भरी
पलेवा करा जाना
भटक मत जाना ।
मेघ- 7
रिमझिम के
काले मेघ उड़ाने
पछुवा आँधी
कभी-कभी आ जाती
तोड़- ताड़के
तरुदल की पाँति
हर रस्ते की
बाधाएँ बन जाती
शिला की भाँति
उसका पक्ष लेता
मेघ ! बने हिमाती ।
मेघ- 8
नभ के मेघ !
स्वर्ग की लिए छटा
नीचे ज्यों आती
मनहर- सी घटा
उसे देखके
मानस का मयूर
भूल जाता है
उलझा दुःख- दर्द
नाचे -बेपर्द
अनंत-सी प्यास में
जीवन की आस में ।
मेघ - 9
तुझे पुकारे
अरबों के ऊपर
नीले नभ के
काले-श्वेत विभोर !
नदी का बल
गिरा, जल का तल
इस पर भी
शीतल हवाओं की
तु लेता फिरे
मृदुल- सी हिलोर
सोचना, इस ओर ।
मेघ- 10
धरा को भूला
मेघ के भूगोल में
उलझा हुआ
समूचा आसमान
कोई ना गिने
मेघ के टुकड़ों को
ना कोई देता
राजस्व पर ध्यान
अगर होता
वहाँ कोई किसान
उगा ही लेता धान ।
मेघ- 11
धरा की प्यास
बूँदों से उतरी है
मेघों के साथ
जलयुक्त कणों से
रिसी ये बात
एक टुकड़ा मेघ
जो था शायद
वामपंथी सोच का
झोंपड़ी तक
बूँदें लेकर गया
वादा देकर गया ।
-0-
18 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण सृजन।
आदरणीया अनिमा जी व डाॅ भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई।
सादर
अति सुन्दर एवं परिष्कृत सृजन। हार्दिक बधाई रचनाकार द्वय को।
जी सादर धन्यवाद 🌹💐🙏😊
जी सादर धन्यवाद 🌹💐🙏😊
वाहह... सर... तिर्यक भाव से जो सार्थक कहा है आपने चोका में.. अत्यंत प्रशंसनीय 🙏🌹साधुवाद 🙏
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.8.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4518 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
धन्यवाद
बहुत सुंदर लेखन, आप दोनों को हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ।
दार्शनिक चिंतन को आत्मसात करते अनिमा दास जी के बेहतरीन सेदोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आभार ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
रक्षाबंधन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाएं!
अत्यंत सुंदर एवं सार्थक सृजन!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ही सुंदर सेदोका और चोका। पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई।
महत्वपूर्ण टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
अत्यंत सुंदर टिप्पणी देने हेतु आप सभीका हार्दिक धन्यवाद 🙏🌹💐
बहुत सरल -सुंदर प्रकृति की सुगंध से भर पूर| पठनीय बड़ी ही मधुर कपना से |श्याम हिन्दी चेतना
बहुत सुंदर रचनाएँ!
हृदय गह्वर से आभार सर 🌹🙏😊
आप दोनों की ही रचनाएँ बहुत पसंद आई, आप दोनों को बहुत बधाई
भीकम सिंह जी व अनिमा दास जी के बहुत सुन्दर सृजन के लिए दिली बधाई ।
विभा रश्मि
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