भीकम सिंह
पहाड़ - 8
पर्वत बड़े
बड़ी शिलाएँ खड़ीं
बड़े ही खड्ड
तिरछे कटकर
आड़े खड़े हैं
सब
गढ़े गए हैं
शैल-
साँचों में
जैसे मढ़े गए हैं
पर्यटकों की
ओढ़कर यातना
माँगे क्षमा-याचना ।
-0-
पहाड़- 9
अल सुबह
अकड़कर खड़े
पर्वत सारे
जंगल की जुल्फों को
हवा सँवारे
शबाब का सूरज
पूर्व दिशा से
भरता है हुंकारे
ऊर्जा के लिए
वनों में जैसे जादू
धूप-धूप पुकारे
-0-
पहाड़ - 10
उजले - से हैं
पहाड़ के अँधेरे
प्रेम से मिले
परछाई के घेरे
हलचल - सी
चाँदनी पैदा करे
पल - पल में
बौरा गया हो जैसे
रात में चाँद
छोड़ के सारे ताड़
सबकी लेता आड़ ।
पहाड़ - 11
चढ़ा ज्यों पारा
पहाड़ों के जिस्म पे
दुःख को रोते
बढ़ा नदी का धारा
देखा लोगों ने
था साँझ
में उतारा
पेड़ों से आरा
जो छोड़कर गया
बेतुके चिह्न
और वनों का नारा
वो लौटेगा दोबारा ।
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पहाड़- 12
पहाड़ों से यूँ
नीचे उतरा कोई
पुराना जख़्म
उभार गया कोई
प्लास्टिक फेंकी
जिन रस्तों पे कभी
उनसे आज
फिर, गया है कोई
हरियाली- थी
जिसको मरुभूमि
कर गया है कोई ।
-0-
10 टिप्पणियां:
प्रकृति के दृश्यों और पर्यावरण की चिंता के खूबसूरत चोका।
बहुत ही उम्दा चोका....हमेशा की तरह👏💐
प्राकृतिक विषयों पर आपके उत्तम श्रेणी के चोका पढ़ने को मिल रहे है और ये मुझको भी रचनाएँ लिखने के लिए प्रेरित करते है।
नदी की तरह ही पहाड़ पर भी आपका सृजन उत्कृष्ट है। हार्दिक बधाई सर।
हमेशा की तरह, अद्भुत रचनाएँ। धन्यवाद आदरणीय!
बहुत बहुत खूबसूरत चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐
भीकम सिंह जी के प्राकृतिक सौन्दर्य से सजे , खूबसूरत बिम्बों वाले बेहतरीन चोका पढ़ कर बहुत आनंद आया । बधाई भीकम सिंह जी आपको ।
वाह्ह्ह! निःशब्द रह गई मैं। प्रकृति से प्रेम सबसे अधिक सुंदर होता है। 🌹🌹🙏🙏 अत्यंत उत्कृष्ट सर 🙏🌹
बहुत सुन्दर चोका हैं सभी, बहुत बधाई
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