पेड़ -1
जड़ से चढ़ा
टहनी में उतरा
जब से पेड़
पत्तियों को पहने
तब-तब वो
समझके गहने
मूर्ख नस्लों ने
लूटा है हरदम
इसलिए तो
पेड़ हो गये कम
घुटने लगा दम ।
-0-
पेड़ -2
वर्षा वन हैं
बिजली कड़कती
नए पेड़ों की
उदास टहनियाँ
कुछ हिलती
कुछ जवाब देती
कुछ झुकी-सी
लाजवाब करती
पेड़ जलते
हो गयी हैं सदियाँ
ठिठकी हैं नदियाँ ।
-0-
पेड़-3
छीन के सारा
पेड़ों का हरापन
सोचके कुछ
वन विभाग हुआ
बाड़ में कैद
शर्मसार बेहद
पेड़ों की भाषा
अनपढ़ मिट्टी ने
समझी तब
लौट आई बयार
फिर अपने घर ।
-0-
पेड़- 4
पेड़ों की भाषा
पहाड़ों ने समझी
उनसे करी
सुख दुःख की बातें
हवा ने सुनी
और उड़ा के सारी
बनाई हाँसी
हो गई हैं सदियाँ
तब से पेड़
ओढ़ के हिमराशि
बन गये सन्यासी ।
पेड़ - 5
पोषित हुई
पर्वतों की छाती से
अनुभूतियाँ
जीते हैं सभी पेड़
उच्च दाब से
निकली हवाओं के
षड्यंत्र में
फँस जाते हैं पेड़
टूटी डाल से
उदासी में बसते
पतझड़ रचते ।
-0-
पेड़ - 6
वनों का वंश
कटा है अंश- अंश
फिर भी कभी
करा नहीं विरोध
कर लो शोध
है ये अजूबा बोध
पेड़ की छाती
जब - जब धड़की
लोक मंचों से
आवाजें तो भड़की
दबी-सी तमंचों से।
8 टिप्पणियां:
पेड़ों का मानवीकरण कर उनकी भाषा में पर्यावरण के प्रति एक महत्वपूर्ण उद्बोधन।
बहुत ही सुंदर एवं बहुत ही भावपूर्ण चोका।
हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर
🙏
अति सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति सर... 🙏🌹मानव शरीर दानवीय प्रवृत्ति से अब संपूर्ण रूप से ग्रस्त है....💐सर आपका सृजन प्रत्येक पीढ़ी तथा संपूर्ण मानव जाति के लिए एक महान संदेश है 🙏🌹💐
प्राकृतिक विषयों पर बहुत उत्कृष्ट चोका। ऐसे ही अच्छे चोका लिखते रहिए सर।
प्रकृति के दर्द को समझ छः अपूर्व चोके सृजित हुए हैं । प्रतीकों का सुन्दर प्रयोग । मानवेतर की भाषा और दर्द कवि मन सरलता से समझता है । भी कम सिंह जी आपकी उपमाएँ बेमिसाल होती हैं । हार्दिक बधाई आपको ।
हमेशा की तरह मन्त्रमुग्ध कर देने वाली रचनाएँ! पेड़ों की भाषा और वनों का वंश, विशेषतः सूंदर! आभार आदरणीय।
हमेशा की तरह प्रकृति के उपादान के माध्यम से पर्यावरण के प्रदूषित होने के प्रति सचेत करते सुंदर चोका। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर
बेहद सुंदर एवं भावपूर्ण रचनाएँ.. प्रकृति की दशा का सटीक वर्णन
बधाई आदरणीय
हमारी प्रकृति की ही तरह सुन्दर इन चोका के लिए आदरणीय भीकम जी को बहुत बधाई
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