भीकम सिंह
पर्वतों पर
बड़े पेड़ खड़े हैं
देवदार के
सब चौकीदार- से
मालिक नीचे
सजे हथियार से
हाथों में घड़ी
शक्ल पे हड़बड़ी
अविराम की
शिनाख़्त कर रहे
कटे देवदार की ।
पेड़- 8
कौन आया है
टहनियाँ हिलाने
बता दो पेड़ !
हर पत्ती
डरी है
मेघों से फिर
क्या बिजली गिरी है ?
काठ में फँसा
कोई घात लगा है
किसी आरी का
या समझदारी का
रक्त चाप बढ़ा है ।
पेड़- 9
मंथर हवा
पेड़ों के इर्द - गिर्द
दुखड़ा रोती
चिंतन के सोपान
चढ़ती धूल
मिट्टी की बू -बास ले
धँसाती सिर
पेड़ों के उर में ज्यों
पत्ते- पत्ते को
जैसे समझाती हो
कोई बात कानों में ।
पेड़- 10
पेड़ों को चुप
रह गए देखते
पर्वतवासी
मूर्ख नस्लों से सदी
हुई बेहोश
खोजें कोई दवा- सी
वे , आदिवासी
लोकतंत्र बोले है-
नक्सलवादी
रिश्ते हरेपन के
जो बना दी कथा- सी ।
पेड़ -
11
धूनी रमाने
कैलाश की ओर से
आई जटाएँ
ढूँढती हैं पुरानी
वही गुफ़ाएँ
जो खुला करती थीं
ताजी भोर से
जंगलों की ओर से
जिसे उजाड़ा
मशीनों के शोर ने
आसमानी दौर ने ।
पेड़ -
12
वन -घाटी में
पड़े खिन्न मन से
कटे जो आज
पेड़ भिन्न-भिन्न के
चुन-चुनके
चुने हैं जो चिह्न- से
वो होंगे कल
तृण- तृण तन से
शवों की यात्रा
पर्वतीय खड्ड से
निकलेगी ट्रक से ।
-0-
10 टिप्पणियां:
आदरणीय भीखम सिंह जी, इन मार्मिक कविताओं के सृजन के लिए हार्दिक बधाई। आपके संवेदनशील हृदयमन को प्रणाम।🙏
सादर ~ श्याम सुन्दर अग्रवाल, जबलपुर
अत्यंत भावपूर्ण रचनाएँ!
~सादर
अनिता ललित
पेड़ों की व्यथा कहतीं मर्मस्पर्शी कविताएँ। बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर
सुंदर मानवीकरण,कटते वृक्षों की व्यथा-कथा के विविध आयाम।भाई भीकम सिंह जी बहुत सार्थक लिख रहे है।बधाई
जवाब
बहुत ही भावपूर्ण सृजन।
हार्दिक बधाई आदरणीय 🙏
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और खूबसूरत टिप्पणी करके मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
आदरणीय बहुत सुंदर रचनाएँ, बहुत आनन्द आया पढ़कर!
सभी चोका एक से बढ़कर एक...बहुत बधाई
प्रकृति की संवेदना से ओतप्रोत सभी चोका दिल छूने वाले हैं । हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी आपको ।
विभा रश्मि
एक टिप्पणी भेजें