कपिल कुमार
चोका
1
मेघों के राजा
किधर चले तुम
एक पंक्ति में
बोरी-बिस्तर उठा
विदा ले ली क्या?
या धरा से नाराज़
लौटके आओ
खेत अति व्याकुल
प्यास के मारे
अब पूर्ण खोल दो
अधखुले कपाट।
-0-
ताँका
1
मन करता
कैद करके तुम्हें
मन-भीतर
बाहर से लगा लूँ
अलीगढ़ का ताला।
2
नभ में घूमे
मखमल- सी रुई
मेघों का दल
खेतों की समस्याएँ
पल में की थी हल।
3
मेघ रूठके
खेतों को स्वप्न दिखा
झूठमूठ के
रथ पे बैठकर
हुए रफू-चक्कर।
4
नभ को घेरे
खड़े हुए थे मेघ
साँझ-सवेरे
ज्यों ही बरसे प्यारे
खेतों के वारे-न्यारे।
5
मेघों से रिश्ता
जोड़े रखना धरा
वरना मेघ
खेतों के स्वप्नों पर
जाएँगे, पानी फिरा।
6
मेघों को दिए
धरा ने लिखकर
मन के भाव
मेघों ने पाट दिए
सब गाँव के गाँव।
-0-
12 टिप्पणियां:
मेघ सम्बंधित चोका एवं सभी ताँका बहुत सुंदर हैं। हार्दिक बधाई
सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुन्दर ताँका/चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
बहुत सुंदर रचना।
हार्दिक बधाई आदरणीय
वर्षाऋतु में प्रकृति के भिन्न - भिन्न रूपों का सुन्दर चित्रण करते चोका और ताँका । सुन्दर सृजन के लिये कपिल जी को हार्दिक बधाई ।
सुंदर सृजन ।हार्दिक बधाई कपिल जी।
बहुत सुंदर चोका एवं ताँका।अभिनव दृष्टि,नवीन बिम्ब।शुभकामनाएँ
वाह! बहुत सुंदर, सरस!
मेरी रचनाएँ प्रकाशित करने के लिए संपादक द्वय का हार्दिक आभार एवम्ं आप सभी की टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद।
वाह कपिल जी,बहुत सुंदर लिखा है। इस बार वर्षा ऋतु के अनेक रूप प्रकृति में देखने को मिला। चोका और तांका में बहुत सुंदर लिखने के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएँ।
वाह्ह्ह! बहुत बहुत बहुत सुंदर सर.... ताँका 2 बहुत अच्छा लगा....🙏उत्कृष्ट सृजन सर 🙏🙏
सुन्दर चोका और तांका के लिए कपिल जी को बहुत बधाई
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