मंगलवार, 9 अगस्त 2022

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 मैं माँ हूँ तेरी!!

रश्मि विभा त्रिपाठी

 शाम का वक्त था। मैं रोजमर्रा के काम में उलझी हुई थी। फोन की घंटी बजी। कमरे में आक फोन अटेंड किया

  'नमस्ते मौसी! कैसी हो?'

मुझे जैसे कोई गढ़ा खजाना मिल गया- 'मैं बहुत अच्छी हूँ और तुम्हारी मीठी आवाज सुनने के बाद तो बहुत ही खुश हूँ। तुम अपने बारे में बताओ। कैसी हो?'

'मैं ठीक हूँ' उसकी दबी- सी आवाज ने मुझे बेचैन कर दिया। मैं छटपटा गई- 'क्या हुआ तुम्हें? कुछ हुआ है क्या? कोई बात हुई? किसी ने कुछ कहा?'

'नहीं। स्कूल से आते हुए रस्ते में बारिश में भीग गई थी; इसलिए गला खराब हो गया।'

मैं अभी भी आश्वस्त नहीं थी- 'सच- सच बताओ! यही बात है ना या...'

बोली- 'हाँ मौसी! सच में भीग गई थी।'

'छतरी नहीं है तुम्हारे पास? मैं तुम्हारे लिए रेनकोट, छतरी लेकर रख लूँगी।'

उसने पूछा- 'कब आओगी'

मैंने कहा- बहुत जल्दी'

बातों- बातों में बोली- 'आपको पता है! यहाँ मेरा अपना कोई नहीं! सब मेरी मम्मा की बुराई ही करते हैं। न जाने क्यों पापा ने दूसरी शादी कर ली? सात साल बाद एक बेबी भी कर लिया। पहले तो मेरी बात भी सुनते थे, पर अब तो ध्यान ही नहीं देते।' और भी न जाने कितनी बातें उसने मुझसे एक साँस में कह डालीं।

मैं अवाक् थी। दीदी जब उसे छोड़कर गई तब वह सिर्फ दो बरस की थी। जो कुछ मैं उसके बड़े होने पर उसे बताना चाहती थी, उस किस्से का एक बड़ा हिस्सा आज व मुझसे बाँट रही थी।

मैं सुन रही थी और व लगातार बोले जा रही थी- 'पता है आपको! मैंने मम्मा का एक छोटा- सा फ्रेम बनाकर उनके रूम में रखा है। वो बहुत चिढ़ती है देखकर। उनकी अलमारी में अपनी बेटी के कपड़े रखती है वह और तो और...'

'मेरी बात सुनो! तुम इन सब बातों को भूलकर सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। तुम्हें अपनी मम्मा का सपना पूरा करना है। याद है ना तुम्हें?'

तपाक से बोली- 'हाँ याद है मुझे। आपने बताया था। एक दिन मेरे स्कूल में टीचर ने सब बच्चों से पूछा था- तुम क्या बनना चाहते हो? तो मैंने उन्हें बताया- डाक्टर।'

अचानक से उसने कहा- 'कल रात को मैं पढ़ाई करके बेड पर लेटी, तो उसने जाक सबसे शिकायत कर दी कि मैं चादर बिगाड़ देती हूँ, सोफे पर बैठूँ तो उसका कवर खींच देती हूँ फिर सबने मुझे बहुत डाँटा कि अगर लेटना और बैठना है,  तो कायदे से, वरना जमीन पर लेटो। य सब कुछ मेरे नाना का है। अगर आज मम्मा होतीं, तो कोई मुझे कुछ भी नहीं कह पाता। मैं उनको याद करके बहुत रोई। मेरी आँखें भी सूज गईं। मुझे आपकी भी बहुत याद आई। आप जल्दी आना।'

अपने फटे कलेजे की पीर दबाकर मैंने सहज होने की कोशिश की- 'मैं हूँ ना? कभी भी दुखी मत होना मेरे बच्चे। मैं तुमसे कहीं दूर गई ही नहीं। हर पल तुम्हारे पास हूँ ! बस तुम खुश रहो।'

उसका प्यार बरसाती नदी की तरह उमड़ने लगा- 'आई लव यू मौसी।'

1

रात अँधेरी!

छाती से चिपट जा

मैं माँ हूँ तेरी!!

2

आँसू पी जाऊँ

मैं फिर से जी जाऊँ

तू जो हँस दे!!

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7 टिप्‍पणियां:

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

नन्हीं बच्ची के आहत मन का मार्मिक चित्रण। सुंदर हाइबन रश्मि जी!

बेनामी ने कहा…

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति। बहुत सुंदर हाइबन। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

आदरणीया सुदर्शन रत्नाकर दीदी और प्रीति जी का हार्दिक आभार।

सादर

बेनामी ने कहा…

हाइबन प्रकाशित करने के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार ।

सादर

भीकम सिंह ने कहा…

बहुत ही सुन्दर हाइबन, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत भावुक हाइबन। शुभकामनाएँ!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

मन और आँखें दोनों भर आई रश्मि...बस एक बात अक्सर सोचती हूँ, जो किसी बच्चे से चिढ़े या उसे कष्ट दे, ऐसी औरत को किसी की भी माँ कहलाने का हक़ नहीं...| उस बच्ची को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद कि वह अपने पिता की नई पत्नी के उलाहनों के बीच भी अपनी माँ के सपने को एक दिन ज़रूर पूरा कर पाए |