1-भीकम सिंह
जम्मू -कश्मीर के गंदेरबल जनपद में सतसर या
शनिसार या सात झीलों के समूह की अल्पाइन झील, जो तुलैल घाटी
और सिंध घाटी के बीच प्राकृतिक पहाड़ी दर्रे का भी कार्य
करती है, मुख्य रूप से बर्फ के पिघलने से पोषित होती है
।बेहद खूबसूरत है । …जी हाँ ! उसी
सतसर झील ने जैसे रात की चादर झाड़ी, तो लहरें सलवटें काढ़ती
हुई पर्वत की ओर लुप्त हो गई । पर्यटकों के चलने से जो हल्की -हल्की धूल उड़ी ,
वह देर तक सूर्य किरणों में चमकती रही, सतसर
ने लहरें हिला - हिला कर आवाज भी दी कि पर्यटको ! धीरे चलो,
परन्तु पर्यटकों ने लहरों की बात अनसुनी कर दी, तो हवा ने बहना शुरू किया वैसे ही उड़ती धूल ने बैठना
। कुछ बैठे हुए पर्यटक कपड़ों की धूल झाड़ते खड़े हुए, तो
उनके नीचे दबी -कुचली घास ने चुपचाप अंग खोलने शुरू किये, भेंड़- बकरियों के झुण्ड आने वाले हैं शायद उनकी अगवानी करनी हो ,यह सब देखते हुए नज़र सतसर पर लौटती है, जो निरागस
चेहरा लिए सिंध घाटी की ओर चौड़ी होती जा रही थी । पर्यटक बढ़े जा रहे थे
।
मुँह उजला
पीठ पे नीला जल
लौटेगी कल ।
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2-डॉ.
सुरंगमा यादव
1
व्याकुल मन
तुम्हारी निशानियाँ
देतीं दिलासा।
मन-नयन-साँसें
ताकते नित राहें।
2
ये मन मेरा
तेरे स्वप्नों से सजा
तेरे बिन है
यह जीवन सजा
कौन समझे व्यथा।
3
प्रेम का पौधा-
समर्पण का जल
भावों की क्यारी
मन की निश्चलता
पाकर ही बढ़ता।
4
वसंत आता
सबको ये लुभाता
उतरे नहीं
जीवन में सबके
वसंत नखरीला।
5
थम न रहीं
बरखा की झड़ियाँ
मिल न रहा
प्रेमियों की बातों-सा
इनका कहीं सिरा।
6
सहेजा क्या-क्या!
तृप्ति कण न मिला
प्रेम की बूँद
सागर भर तृप्ति
जीवन भर देती।
7
नींद के संग
गलबहियाँ डाले
तेरे ही स्वप्न
थिरके रात भर
नयन मंच पर।
8
देख तपन
स्मृतियों की बरखा
भिगोती मन
नयनों की ओलती
रहती टपकती।
9
प्रेम-प्रदेश
वही करे प्रवेश
वार सके जो
प्रिय के आँसू पर
जीवन की मुस्कानें।
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