शनिवार, 28 मई 2022

1039

 1-भीकम सिंह 

                           सतसर झील 

  जम्मू -कश्मीर के गंदेरबल जनपद में सतसर या शनिसार या सात झीलों के समूह की अल्पाइन झील, जो तुलैल घाटी और सिंध घाटी के बीच प्राकृतिक पहाड़ी दर्रे का भी  कार्य करती है, मुख्य रूप से बर्फ के पिघलने से पोषित होती है ।बेहद खूबसूरत है । जी हाँ  ! उसी सतसर झील ने जैसे रात की चादर झाड़ी, तो लहरें सलवटें काढ़ती हुई पर्वत की ओर लुप्त हो गई । पर्यटकों के चलने से जो हल्की -हल्की धूल उड़ी , वह देर तक सूर्य किरणों में चमकती रही, सतसर ने लहरें हिला - हिला कर आवाज भी दी कि पर्यटको ! धीरे चलोपरन्तु पर्यटकों ने लहरों की बात अनसुनी कर दी, तो हवा ने बहना शुरू किया वैसे ही उती धूल ने बैठना । कुछ बैठे हुए पर्यटक कपड़ों की धूल झाड़ते खड़े हुए, तो उनके नीचे दबी -कुचली घास ने चुपचाप अंग खोलने शुरू कियेभेंड़- बकरियों के झुण्ड आने वाले हैं शायद उनकी अगवानी करनी हो ,यह सब देखते हुए नज़र सतसर पर लौटती है, जो निरागस चेहरा लिए सिंध घाटी की ओर चौड़ी होती जा रही थी । पर्यटक बढ़े जा रहे थे 

 


मुँह उजला 

पीठ पे नीला जल

लौटेगी कल ।

 

-0-

2-डॉ. सुरंगमा यादव
1


व्याकुल मन
तुम्हारी निशानियाँ
देतीं दिलासा।
मन-नयन-साँसें
ताकते नित राहें।
2
ये मन मेरा
तेरे स्वप्नों से सजा
तेरे बिन है
यह जीवन  सजा
 कौन समझे व्यथा।
3
प्रेम का पौधा-
समर्पण का जल
भावों की क्यारी
मन की निश्चलता
पाकर ही बढ़ता।
4
वसंत आता
सबको ये लुभाता
उतरे नहीं
जीवन में सबके
वसंत नखरीला।
5
थम न रहीं
बरखा की झड़ियाँ
मिल न रहा
प्रेमियों की बातों-सा
इनका कहीं सिरा।
6
सहेजा क्या-क्या!
तृप्ति कण न मिला
प्रेम की बूँद
सागर भर तृप्ति
जीवन भर देती।
7
नींद के संग
गलबहियाँ डाले
तेरे ही स्वप्न
थिरके रात भर
नयन मंच पर।
8
देख तपन
स्मृतियों की बरखा
भिगोती मन
नयनों की ओलती
रहती टपकती।
9
प्रेम-प्रदेश
वही करे प्रवेश
वार सके जो
प्रिय के आँसू पर
जीवन की मुस्कानें।

-0-


शुक्रवार, 27 मई 2022

1038

 

1-कृष्णा वर्मा

 1

लाख बनाएँ

अब मकाँ को घर

आख़िरकार

फिर हो जाए घर

बस एक मकान।

2

जुदा ज़माना

था अपना पैमाना

सब था सांझा

नहीं कोई पराया

था न्यारा सरमाया।

3

भतीजे- भांजे

दुख- सुख थे सांझे

गली मोहल्ले

सब चाचा- ता थे

खुशियों के साए थे।

4

ड्योढ़ी में खाट

दादा और हुक्के की

होती थी धाक

सब अपने ख़ाते

थे वहीं सुलझाते।

5

दादी औ नानी

सुनाती थी बीती औ

कथा- कहानी

चहकें थीं खुशियाँ

थे आँगन आबाद।

-0-

2-कपिल कुमार

1

प्रेम के बीज

वसुधा पे बिखेरे

घृणा की मात

ऐसे मिट्टी में मिली

ज्यों खरपतवार। 

2

हमारा प्रेम

साथ दौड़ते मार्ग

कभी ना मिलें

परंतु साथ रहे

मीलों तक चुप से। 

3

दूर क्षितिज

धरा- नभ- मिलन

प्रेम विजित

सूर्य गुस्से में लाल

हो गया बदहाल । 

4

स्नेह-नेत्रों से

चुटकी भर प्रेम

खोजता खग

वन-वन भटका

जैसे कस्तूरी-मृग। 

5

प्रेम-संयोग

सदा शाश्वत रहे

ज्यों भोर- उषा

प्रतीची भी चमकी

नियमविवर्जित। 

6

प्रेम-वियोग

बची स्मृतियाँ शेष

प्रतिज्ञा टूटी

शरीर जीर्ण-क्षीण

ज्यों अस्थि-अवशेष। 

7

क्यों बैठी प्रिये

मुँह फेरे उदास

प्रणय-मास

एक उदास नदी

ज्यों ढूँढ रही सिंधु। 

8

दुःख या सुख

सदा साथ रहे, ज्यों

चाँद-चाँदनी

दुःख साथ काटते

सुख साथ बाँटते। 

9

प्रेम में लीन

सदा ऐसे मिले, ज्यों

नदी सिंधु में

पूर्णतया विलीन

उत्सुक साथ बहे। 

10

प्रेम के क्षण

कृष्ण-राधा बजाते

बाँसुरी संग

हृदय में गूँजता

स्नेहपूर्ण संगीत। 

11

प्रेम में आस्था

शांत नदी ढूँढती

सिंधु का रास्ता

मिलों दूर मंजिल

सड़क भी सर्पिल। 

12

ज्यों पुष्प खिले

तितलियों ने खींचे

उनके गाल

प्रणय- अनुभूति

मन में लिये फिरे।

13

मेघों ने पढ़ी

नदियों की उदासी

क्यों रहीं प्यासी

रो- रोकर की वर्षा

ज्यों वियोग में प्रेमी। 

14

भ्रम में हुए

रिश्तों में समझौते

क्षणभंगुर

जन्मों-जन्म का प्रेम

पल में बने खोटे।

15

हवा का स्पर्श

कर रहा पेड़ो से

प्रेम-विमर्श

पत्ते झूमने लगे

डाल चूमने लगे। 

16

प्रणय नदी

चतुर्दिक बहती

हर्ष बिखेरे

घृणा बहा ले गई

प्रेम गीत कहती। 

17

छुपके फेंका

पत्थर में लपेट

प्रणय-पत्र

बालकनी पे पढ़े

चुनरी में समेट। 

18

दुःख लपेटे

खिड़की से झाँकते

नभ के पाखी

विथियों को ताकते

मंजूषा का बंधन। 

19

पढ़ा आज ज्यों

खिड़कियों में बैठ

आखिरी पत्र

याद आया अतीत

प्रेम था शब्दातीत।

20

हृदय -पीड़ा

प्रेम में भी ढूँढते

लोग सुविधा

विष बना, अमृत

कृष्ण नाम ज्यों लिया। 

21

खोया है कहीं

राधा-कृष्ण- प्रणय

प्रेम में चले

शतरंजी मोहरें

नेह मिला नगण्य। 

-0-

शुक्रवार, 20 मई 2022

1037-गुलमोहर-प्रेम

 1-गुलमोहर

भीकम सिंह 

1

फोटो-रश्मि शर्मा -राँची

धूप पहनें
 

गुलमोहर हुआ

दोपहर यूँ 

मेघों का इन्तजार 

जैसे कर रही लू ।


2

गुलमोहर 

तुम्हारे सामने था 

खुश इतना 

आग वाली ॠतु में 

माघ-पौष जितना 

3

धूल ही धूल 

गुलमोहर तक

ये ना सोचा था 

प्रेम के नाम पर

सुन्दर-सा धोखा था 

4

ताल के पास 

तलुओं तक घास

गुलमोहर 

मेरे अन्दर तक 

भरता था विश्वास 

5

गुलमोहर 

रंगे अप्सरा ने ज्यों 

लाल नाखून 

हरे वस्त्रों में इत्र

ढूँढती विश्वामित्र 

6

आँधी में आते 

गुलमोहर तले 

सभी तिनके 

जो भी तुमने फेंके

दाँतों-तले दबाके 

7

गुलमोहर 

शाखें यूँ लाल- हरी

सिगनल दे

ज्यों चौराहे पे खड़ी

सुन्दर-सी लड़की 

8

भरे कानों में 

कुछ सुनाई ना दे

प्रेम गहरा 

आँखों को वही दिखे 

गुलमोहर हरा 

9

छोटी जगह

गुलमोहर बड़ा

जो था वजह

वहाँ दौड़ के जाते 

मुलाकात छिपाते 

10

आज ही मिला 

सूना गुलमोहर 

पुरवाई को

झरे फूलों से गिला 

करके ही आई वो 

-0-

2- प्रेम

कपिल कुमार

1

तुम्हारा स्पर्श

प्रभात की किरण

छू रही ओस

मोती सा खिल उठा

मेरा वियोगी मन। 

2

उदास चाँद


चाँदनी ढूँढती
, ले

प्रेम दर्पण

पूर्णिमा की रजनी

हृदय समर्पण। 

3

अधूरे पन्ने

हृदय -अभिलाषा

प्रेम-संदेश

लिखें साथ बैठके 

चाँदनी उजास में।

4

जीवन- गति

तेरे चारों तरफ

भू की तरह

प्रेम को लालायित

ज्यों हो चाँद-चाँदनी। 

5

चाँद के नीचे

अप्रतिहत मन

स्नेह जिज्ञासा

व्याकुल हो खोजता

अपरिमित प्रेम। 

6

अर्थ ना ढूँढो

चाँदनी सा उज्ज्वल

चुप सा रहा

व्यक्त कैसे करता

शब्दातीत प्रेम। 

7

निर्वाक्  है प्रेम

धरा चाँद व्याकुल

दूर से देखें

नजदीक ज्यों आते

प्रेम में डूब जाते। 

8

तुमसे माँगी

आँसू भरी आँखों से

प्रेम की भीख

मौन थी अस्वीकृति

अब तो बनी स्मृति। 

9

प्रेम की प्यासी

प्यारे मेरी उदासी

छोड़के सब

ओढ़ के दोनों नभ

करे असीम बातें। 

10

अब सुनाओ

अपने होंठो से, वो

प्रेम-कविता

सुनने को उतरा

नदी में सुधाकर।

11

उदास साँझ

तालाब के किनारे

बैठी व्याकुल

हृदय पीड़ा कहे

प्रेम-वियोग सहे। 

12

प्रेम झड़प

आगे से असंबद्ध

दोनों सड़क

फ़िर दूर जा मिली

मन ही मन खिली। 

 -0-( गुलमोहर फोटो-रश्मि शर्माःसाभार)