मंगलवार, 30 अगस्त 2022

1067

 कपिल कुमार

1

पृथ्वी अभागी

सहती रही खड़ी

दुःख की घड़ी

बन अबला नारी

नर ने लेके

आधुनिक मशीनें

काटके सीने

अंदर से निकाले

माल-मसाले

फिर भी नही भरा

धरा को गए

छोड़के अधमरा

आगे नई खोज में। 

2

छाया-काम्बोज

पीपल खड़े

उम्रदराज बड़े

घर के बीच

टहनियाँ हिलाते

वर्षों से घने

सिपाहियों- से तने

बन-ठनके

किंवदंतियाँ जैसे

भूत-निवास

एक दिन ले गई

उनकी श्वास-श्वास। 

-0-




रविवार, 28 अगस्त 2022

1066-पेड़

 भीकम सिंह

 पेड़ - 7

 

पर्वतों पर
बड़े पेड़ खड़े हैं

देवदार के

सब चौकीदार- से

मालिक नीचे

सजे हथियार से

हाथों में घड़ी

शक्ल पे हड़बड़ी

अविराम की

शिनाख़्त कर रहे

कटे देवदार की 

 

पेड़- 8

 

कौन आया है

टहनियाँ हिलाने

बता दो पेड़  !

हर पत्ती डरी है

मेघों से फिर

क्या बिजली गिरी है ?

काठ में फँसा

कोई घात लगा है

किसी आरी का

या समझदारी का

रक्त चाप बढ़ा है 

 

 

पेड़- 9

 

मंथर हवा

पेड़ों के इर्द - गिर्द

दुखड़ा रोती

चिंतन के सोपान

चढ़ती धूल

मिट्टी की बू -बास ले

धँसाती सिर

पेड़ों के  उर में  ज्यों

पत्ते- पत्ते को

जैसे समझाती हो

कोई बात कानों में ।

 

पेड़- 10

 

पेड़ों को चुप

रह ग देखते

पर्वतवासी

मूर्ख नस्लों से  सदी

हुई बेहोश

खोजें कोई दवा- सी

वे , आदिवासी

लोकतंत्र बोले है-

नक्सलवादी

रिश्ते हरेपन के

जो बना दी कथा- सी 

 

पेड़  - 11

 

 

धूनी रमाने

कैलाश की ओर से

आई जटाएँ

ढूँढती हैं पुरानी

वही गुफ़ाएँ

जो खुला करती थीं

ताजी भोर से

जंगलों की ओर से

जिसे उजाड़ा

मशीनों के शोर ने

आसमानी दौर ने 

 

 

पेड़  - 12

 

वन -घाटी में

पड़े खिन्न मन से

कटे जो आज

पेड़ भिन्न-भिन्न के

चुन-चुनके

चुने हैं जो चिह्न- से

वो होंगे कल

तृण- तृण तन से

शवों की यात्रा

पर्वतीय खड्ड से

निकलेगी ट्रक से 

-0-

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

1065

 रश्मि विभा त्रिपाठी


1
मौसम आना- जाना

मैं ना बदलूँगी

तुमको जीवन माना।

2

तुमसे जो डोर बँधी

इसके ही कारण

अब तक है साँस सधी।

3

तुझ- सा पाके साथी

पल- पल मैं माही

अब गाती, मुस्काती।

4

मुश्किल में थाम लिया

तेरी दो बाहें

अब मेरी हैं दुनिया।

5

खुश्बू से खूब भरी

माही महका दी

तुमने मन की नगरी।

6

कितने भी हों रोड़े

तुमने समझाया

मुश्किल के दिन थोड़े।

7

गम की ये बरसातें

धीर बँधाती हैं

मुझको तेरी बातें।

8

दुनिया से क्या करना

तेरे दम से है

मेरा जीना- मरना।

9

जबसे ये तार जुड़े

माही मन मेरा

तेरी ही ओर उड़े।

10

मुझमें जो आशा है

उसको तुमने ही

दिन- रात तराशा है।

11

मंदिर ना गुरुद्वारे

मेरा सर झुकता

बस तेरे ही द्वारे!

रविवार, 21 अगस्त 2022

1064

 भीकम सिंह 

पेड़ -1

 

जड़ से चढ़ा 

टहनी में उतरा 

जब से पेड़ 

पत्तियों को पहने

तब-तब वो

समझके गहने 

मूर्ख नस्लों ने

लूटा है हरदम

इसलिए तो 

पेड़ हो गये कम

घुटने लगा दम 

-0-

पेड़ -2

 

वर्षा वन हैं

बिजली कड़कती 

नए पेड़ों की

उदास टहनियाँ

कुछ हिलती 

कुछ जवाब देती 

कुछ झुकी-सी

लाजवाब करती 

पेड़ जलते 

हो गयी हैं सदियाँ 

ठिठकी हैं नदियाँ 

-0-

पेड़-3

 

छीन के सारा

पेड़ों का हरापन

सोचके कुछ 

वन विभाग हुआ 

बाड़ में कैद 

शर्मसार बेहद 

पेड़ों की भाषा 

अनपढ़ मिट्टी ने 

समझी तब

लौट आ बयार 

फिर अपने घर ।

-0-

पेड़- 4

 

पेड़ों की भाषा 

पहाड़ों ने समझी

उनसे करी

सुख दुःख की बातें 

हवा ने सुनी

और उड़ा के सारी

बनाई हाँसी 

हो गई हैं सदियाँ 

तब से पेड़ 

ओढ़ के  हिमराशि 

बन गये सन्यासी 

 

पेड़  - 5

 

पोषित हुई

पर्वतों की छाती से 

अनुभूतियाँ

जीते हैं सभी पेड़ 

उच्च दाब से 

निकली हवाओं के 

षड्यंत्र में 

फँस जाते हैं पेड़ 

टूटी डाल से 

उदासी में बसते 

पतझड़ रचते 

-0-

 

पेड़ - 6

 

वनों का वंश 

कटा है अंश- अंश 

फिर भी कभी 

करा नहीं विरोध

कर लो शोध

है ये अजूबा बोध

पेड़ की छाती 

जब - जब धड़की

लोक मंचों से 

आवाजें तो भड़की 

दबी-सी  तमंचों से।