अपने एक परिचित साहित्यकार पर लेख लिखना था । उनकी आठ- दस पुस्तकें पूरे मन से पढ़ डाली । कुछ बातें मन में समेट ली और कुछ के संकेत डायरी में लिख लिये । उम्मीद की थी कि लेख बहुत अच्छा बन जाएगा। लिखने बैठा था कि एक निकट के साथी आ पहुँचे। एक के बाद एक बात छौंकने लगे। मैं जितना ही उनका समाधान करना चाहता , वे कोई न कोई नकारात्मक बात फिर छेड़ देते। मैं पूरी तरह आजिज़ आ चुका था। मुझे जो लिखना था, वह मेरे मानस-पटल से पूरी तरह उड़ चुका था। अब बार -बार मुझे 40 -50 पहले की एक घटना याद आ रही थी। तब हमारे गाँव में चूड़ी बेचने वाले आते हैं ।बहुतों के पास साइकिल नहीं होती थी तो वे पोटली कन्धे पर लटकाकर आते थे। एक गाँव वाले ने पोटली पर डण्डा मारकर पूछा-इसमें क्या है? चूडी बेचने वाला बोला –पहले तो कुछ था , अब नहीं कह सकता कि क्या है? आज मेरी हालत उस चूड़ी बेचने वाले के फेन्चे जैसी थी।
चकनाचूर -
सतरंगी चूड़ियाँ
ज़ख्मी है सोच।
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
डॉ
सरस्वती माथुर
1
गर्मी
के दिन
धूप
की रसधार
सूरज
की तीली से
जलती
हवा
धरती
पर भागे
खींचे-
ताप के धागे ।
2
कभी
कभार
अतीत
आ जाता है
जब
बहुत पास
मन
पाखी- सा
उड़
जाता है दूर
बेगाना
लगता है ।
3
भीड़
भरी हैं
जिंदगी
की राहें भी
असंख्य
चेहरे हैं
जो
दिशाहीन
गंतव्य
के बिना ही
दौड़ते
जा रहें हैं ।
4
जुगनू
-मन
दीप-
सा जलकर
झिलमिल
करता ,
पूनम
बन
अमावस
पीकर
रोशनी
को भरता ।
5
छल
ही छल
तांत्रिक- सी हवाएँ
भूलभुलैया
राहें,
कैद
है मन
सुधियों
के आँगन
जीवन
भी छलिया ।
6
पहाड़ों
पर
जब
उनींदी धूप
सुरमई
हो जाती,
पहाड़ी
घाटी
मौन
रह कर भी
खूब
बातें करती ।
-0-
1-सेदोका -
पुष्पा मेहरा
1
शैतान चंदा
सागर के आँगन
लहरों की लटों में,
चाँदनी बाँध
आकाश झरोखे से
कौतुक निहारता ।
2
अजब रंग
चुपके से आकर
अँधेरा फैला गया,
ख़ुद जा छिपा
उजाला भरपूर
धरा को सौंप गया।
3
लहरें सारी
उठीं जो सागर से
तट को पाने बढ़ीं,
एकाग्रमना
कुछ लक्ष्य पा मिटीं
कुछ भटक गईं।
4
आई बरखा
लाई सुहाग- पेटी
धरा को भेंट में दी।
बूँदों की बेंदी
बाँध के सखी मेरी
छम- छम नाचे री!
-0-
2-ताँका-कृष्णा
वर्मा
1
समझदारी
तो निरी दलदल
खोए जिसमें
नादान बचपन
डूबे मस्ती की नाव।
2
बोल अमोल
शब्दों में बसें प्राण
तुलें संस्कार
अल्फाज़ से ही होती
असली पहचान।
3
कोई भी काम
उठानी हो कलम
या के कसम
सोचना लाख बार
उठाने को कदम।
4
शंका की रेखा
करे चित्त अशांत
लड़ते तर्क
अनुभवहीन से
शब्दों का
घमासान।
5
कैसा ये
न्याय
सभ्य होने
का बोझ
नित्य
दबाए
बिना
अदालत के
कड़ी सज़ा
सुनाए।
6
निज कैद
से
करो
खुशियाँ मुक्त
सम्मिलित हो
औरों की
खुशियों में
बढ़ाएँ
खुशी -वंश।
7
डराए डर
जब तक ना
उसे
राह दिखाएँ
थामें रहे
उँगली
मनमाना
नचाए।
8
भोले
शब्दों से
कविता चालबाज़
यूँ रचवाए
मन में सेंध लगा
रहस्य बीन
लाए।
9
बासी हो
चोट
मुस्कुराए
उदासी
बख्शे पीड़ा को
दर्द तो
सहेली- सी
आदत में
शामिल।
10
धरा पे सब
धरा रह
जाएगा
है वक्त शाही
करेगा निराधार
करके धराशायी।
-0-
1-कमला घटाऔरा
1
बाँस -सुकन्या
पिया प्रेम पाने को
कराये तन छेद
भरी नाद से
अधर -स्पर्श मिला
झरी बन संगीत।
2
ठूँठ ने
कहा -
जाओ न रूठ कर
प्रिय सखी पवन ,
आये बसंत
ला दूँगा
पूरा थान
सुगंधित फूलों का ।
3
चाबी का गुच्छा
देकर रजनी
को
संध्या रानी थी बोली-
‘लो मैं तो चली
सम्भालो घर
चन्दा
तारों से
भरा।’
-0-
2-मंजु
गुप्ता
1
भुला न पाती
बचपन की यादें
वे खिलोने , लोरियाँ
नेह की बाहें
परियों की कहानी
माँ
-नानी की जुबानी।
2
लता-
कुंज में
कोमल लतिका -सी
कोंपल का आँचल
ओढ़े किशोरी
पतंग
जैसी उड़े
चढ़
ख़्वाबों की डाली।
3
लज्जा रानी के
मुखमंडल पर
झूलती शोख लटें ,
कह न पाती
अभिसार की बातें
साजन के आने पे।
4
बैरन बिंदी
साजन को रिझाए
वैरी
नींद न आए
यादों की बाढ़
आँसुओं को बहाए
पिया नजर आए।
-0-