बुधवार, 10 जून 2015

नैनों का तारा (चोका)


कमला घटाऔरा

नन्हा मासूम
माँ की बगिया खिला
प्यारा सा फूल
चाँद सूरज- जैसा
नैनों का तारा
सुने न जब बात
रहे खेलता
माँ हो जाती क्रोधित
सोच में डूबी
लगे थोड़ी चिंतित
समझता ना
ग़लत सही कुछ
होता उसमें
नहीं कोई दुराव
जानता  सिर्फ
देख माँ को खिलना
माँ का अंतर
भरदे खुशियों से
दिखा मुस्कान
सम्मोहित करदें
मोहक  बन
माँ का दुःख हरलें
क्रोध करे माँ
नही भान उसको
अनावश्यक
समझ, होता  मौन
कब हँसे माँ
घूमता संग- संग
पल्लू पकड़
देखता माँ की आँखें
प्रतीक्षारत
रहता धैर्य धर
कब हँस चूम ले
क्रोध विष भी
अमृत-सा स्वीकार
दिखे वो प्यार
पहले दिन जैसा
आँख खुलते
दिखा था जो ममत्व
माँ की गोद में
निर्मल शुद्ध प्यार
सीने से लगा
जब चूमा था माँ ने
नन्हा मुखड़ा
भुला पीड़ा अपनी
गोद में माँ की
लिया सुख असीम
तुम सर्वस्व
बनी रहो माँ मेरा
बस रूठा न करो।
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2 टिप्‍पणियां:

kashmiri lal chawla ने कहा…

पुत्र ही मां का असली का साधन होता जैसा का चोकाकार
ने लिखा है । बधाई !

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत प्यारा , मधुर चोका !

हार्दिक बधाई आपको !!

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा