मंगलवार, 30 जून 2015

तांत्रिक- सी हवाएँ




डॉ सरस्वती माथुर

 1   

गर्मी के दिन

धूप की रसधार

सूरज की तीली से

जलती हवा

धरती पर भागे

खींचे- ताप के धागे

2

कभी कभार

अतीत आ जाता है

जब बहुत पास

मन पाखी- सा

उड़ जाता है दूर

बेगाना लगता  है

3

भीड़ भरी हैं

जिंदगी की राहें भी

असंख्य चेहरे हैं

जो दिशाहीन

गंतव्य के बिना ही

दौड़ते जा रहें हैं

4

जुगनू -मन

दीप- सा जलकर

झिलमिल करता ,

पूनम बन   

अमावस पीकर

रोशनी को भरता

5 

छल ही छल

तांत्रिक- सी हवाएँ

भूलभुलैया राहें,

कैद है मन

सुधियों के आँगन

जीवन भी छलिया

6

पहाड़ों पर

जब उनींदी धूप

सुरमई हो जाती,

पहाड़ी घाटी

मौन रह कर भी

खूब बातें  करती

-0-

6 टिप्‍पणियां:

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण सेदोका !
कभी कभार ....,भीड़ भरी हैं ...छल ही छल ..मन को छू गए |
डॉ. सरस्वती माथुर जी को बहुत बधाई !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा

Krishna ने कहा…

भावपूर्ण सेदोका...कभी कभार, छल ही छल बहुत बढ़िया लगे .....हार्दिक बधाई!

Unknown ने कहा…


वाह बहुत सुंदर सेदोका सरस्वती जी। गर्मी के दिन वाला की पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं। … धरती पर भागे /खींचे ताप के धागे। … जुगनू मन भी भा गया … अमावस पी कर रौशनी को भरता। बधाई।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

कभी कभार

अतीत आ जाता है

जब बहुत पास

मन पाखी- सा

उड़ जाता है दूर

बेगाना लगता है ।

Bahut bhavpurn meri hardik badhai...

Unknown ने कहा…

अच्छी रचना…बधाई आपको.

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

कभी कभार

अतीत आ जाता है

जब बहुत पास

मन पाखी- सा

उड़ जाता है दूर

बेगाना लगता है ।
बहुत सुन्दर...हार्दिक बधाई...|