मंगलवार, 31 जनवरी 2023

1105-आई ऋतु नवल

 

डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री

 


कली बुराँस

अब नहीं उदास

आया वसंत

ठिठुरन का अंत

मन मगन

हिय है मधुवन

सुने रतियाँ

पिय की ही बतियाँ

मधु घोलती


कानों में बोलती

प्रेम-आलाप

सुखद पदचाप

स्फीत नयन

तन -मन अगन

अमिय पान

चपल है मुस्कान

ये दिव्यनाद

नयनों का संवाद

अधर धरे

उन्मुक्त केश वरे


तप्त कपोल

उदीप्त द्वार खोल

हुई विह्वल

इठलाती चंचल

आई ऋतु नवल।

-0-

सोमवार, 30 जनवरी 2023

1104

 1-भीकम सिंह 

 

गाँव -36

 

खलिहान से 

उठी ज्यों सोंधी गंध

हवा ने खोले 

पुरवाई के बंद 

गेंहूँ ने देखा 

गर्दन घुमाकर

रीपर हँसा 

मेड़ पे मंद-मंद 

एम-एस-पी 

सोच  -सोचके खेत 

देखता  रहा दंग ।

 

गाँव  - 37

 

दिन यूँ सारा

पसीने में नहाया 

पानी बरसा 

खेत लहलहाया

कच्ची राह पे

गाँव चलके आया 

अपने पीछे 

कितने समझोते 

करके आया 

फसलों ने भरोसा 

मंड़ी तक दिखाया 

 

गाँव- 38

 

आषाढ़ द्वारे 

वर्षा ने दी दस्तक 

खेतों से सारे 

रंग निकल आये 

पगडण्डी पे 

खड़ी हुई बहारें 

देखने को ज्यों 

गाँव के चाँद-तारे 

निकल आये 

अंखियों के भी भेद

सारे निकल आये 

 

गाँव- 39

 

खेत बेचके 

खाने कमाने लगे 

कुछ दिनों में 

सब ठिकाने लगे

बाकी जो बचे 

हाथ से जाने लगे 

शहर होने 

गाँव चले थे सभी 

सिरहाने को 

मगर वो बैठने 

सभी पैताने लगे 

 

गाँव-40

 

प्रदूषण का

बुरा हाल देखके 

मेघ ठहरे 

मेह पे बैठाकर 

घने पहरे 

अब ना बरसेंगे 

कह रहे हैं 

सभी ताल ठोकके 

आँखें लगी हैं

किसानों की ऊपर

सारा काम छोड़के 

-0-

2-कपिल कुमार

1.

ऐसे चलाते

पेड़ों पर कुल्हाड़ियाँ

दाँत भींच के

अर्जुन ने चलाया

शत्रु को देख

ज्यों गांडीव-धनुष

पीछे खींच के

देखते ही देखते

दो ही क्षण में

लहूलुहान डालियाँ

भू पर आ गिरी

सृष्टि ने जिन्हें पाला

वर्षों तक सींचके।

0-

रविवार, 29 जनवरी 2023

1103

 

1-चोका


-कृष्णा वर्मा

1

होती तमाम

उमर की मियाद

कुछ दिलों की

कसक नगरी में

भादों सूखे ना

सावन हरियाए

टूटा मन ना

गढ़ता प्रेमगीत

खोजे प्रेम ना

हो पाता प्रेममय

टूटा मन तो

ढूँढता है साथी का

विस्तृत वक्ष

हौले से सिर रख

हलका करे मन।

2

तुम जो गए

रूठ गया सावन

ना भादों हरा

अड़े खड़े मेघा ना

बरसी बूँदें

भीग पाया तन ना

हुलसा मन

ना रूप ना सिंगार

चुप पैंजन

ना खनकी चूड़ियाँ

हिना बेरंग

आहों के फेरों संग

नैना कोरों पर

करते रहे बस

अश्रु नर्तन

मन के हिंडोले पर

यादें बैठाके

विरहा के गीतों ने

पींगे झुलाईं

सतरंगी सपने

धुले अवसाद में।

3

सदियों से थे

मन के पट बंद

तुमने आके

जगा दिए सपन

सुलझा दिया

मेरा उलझा मन

जगाके भाव

सूरज रश्मियों से

मिटाया तम

खोल दिए हैं बंध

तटबंध पर

खुल गईं साँकलें

मन के द्वार

हौले-हौले मिटने

लगे हैं सारे द्वंद।

4

वक़्त ने भले

किए कई सितम

मन डोला ना

लड़खड़ाए पांव

न चाहा कांधा

न कोई हमदर्दी

धैर्य से सदा

बाँधे रखा बंधन

स्वयं की स्वयं

बनी सदा सम्बल

रिश्ते नाते तो

होते अमरबेल

स्वयं को हरा

रखने की ख़ातिर

सुखा देते हैं

दूसरों का जीवन

कैसी है परम्परा।

5

कवि कमाल

बाहों में भर लेता

सारा संसार

शब्दों की धार संग

चले धरा पर

ले अटल विश्वास

निरीक्षण का

आँजकर काजल

पढ़े जहान

बोले बिना ज़ुबान

चाँद की भाँति

विचरता अकेला

सूर्य ताप-सा

दहकाए स्व: ज़ात

कोमल हिय

उफनता सिंधु-सा

ज्वार औ भाटा

जंगल की आग-सा

बनाए राह

कवि के मन की न

होती है कोई थाह।

-0-

2-ताँका

-सुरभि डागर 

 




1

शीत ऋतु ने 

जब ली अँगड़ाई 

कलियाँ हँसीं

नरम मुलायम

कोंपल मुस्कराई ।

2

बैठ  मुँडेर

गौरैया राग गा

प्रकृति ओढ़ 

रंगीन चुनरिया

खेतों में लहराए।

3

फाल्गुन उड़े

अंबर में गुलाल

करो धमाल

उड़ा रहे अबीर

यशोमती के लाल।

4

मधुवन में

खेल‌ होली माधव

गोपियों संग 

बोली इतराती- सी 

राधा नैनों से बोली ।

5

पिचकारी ना

खेलूँगी रंग खूब

लगा गुलाल

मधुर अधरों से

कान्ह बंशी बजाओ।

6

भी झूमे

कूक उठे कोयल

दरा घिरे

छनक उठे मुई

कान्हा मोरी पायल

7

गाएँ अधर

रागिनी -राग उठे

देवालय में

दीप जले राही को 

अमृत- पान मिले।

 

सोमवार, 23 जनवरी 2023

1102

रश्मि विभा त्रिपाठी 


जरूरत पे

जो काम नहीं आए 

बाद में भरे

दामन में सितारे

या चाँद लाए 

वक़्त बीतने पर

किसे लुभाए 

कोई माल- ओ- ज़र

जो रात भर

चिरागों की जगह

जी को जलाए 

तो पहले पहर

भले आकर

कोई लाख टिकाए

हथेली पर 

जुनून का जुगनू

आस का तारा

जब टूट ही जाए 

दिल का दिया 

कैसे टिमटिमाए 

आँखों के आगे

हर ओर अँधेरा 

अगर छाए 

क्या करूँ मैं अब कि 

कोने में खड़ा

कलेजे का टुकड़ा

मायूस होके

हाथ बिल्कुल खाली

मेरे बच्चे के

खिलौनों के बगैर

मुझ- सी माँ का

मन भला दीवाली

आज कैसे मनाए।

रविवार, 22 जनवरी 2023

1101

 

देतीं गरमाहट

                 अनिता ललित


 

मन -आँगन

हो गया सूना -सूना
हुआ उदास
घर का हर कोना
बिटिया गई
अपने घर -द्वारे
छोड़ के पीछे
प्यारी अठखेलियाँ
बीती छुट्टियाँ
घर में रह जाती
यादें ही यादें
कोहरे में घुलती
ओस की बूँदें
फूलों- सी महकतीं

वो प्यारी बातें
गरमाहट देतीं

देतीं संबल

स्नेह से भर देतीं
सर्द दिन को
अनमनी भोर में
अलाव -सी जलतीं।

-0-

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

1100

 

1-डॉ भीकम सिंह

 


गाँव - 31

 

कोंपल फूटी

पीपल में फिर से 

आँगन खिला 

किरणों में फिर से 

कोयल कूकी 

फसलों में फिर से 

सारी मुराद

आखिर ले ही आया 

वहीं मौसम 

गाँवों में जैसे-तैसे 

अच्छे दिन फिर से 

-0-

गाँव  - 32

 

पौधों से सब

खेत बात करते 

ना जानें कब

किसी कोने से आती 

छिपी -सी हवा 

फसलों के नीचे ही

सो जाते तब

धीमे से खलिहान 

जागते जब

खेत,धूप पहने 

खड़े हो जाते सब ।

-0-

गाँव- 33

 

गाँव का रंग 

सुनहरा - सा हुआ 

गेंहूँ के पौधा

गर्दन घुमा-घुमा, ज्यों 

गबरू हुआ 

खलिहान देखता 

-से स्वप्न 

आँखें मलता हुआ 

पवन चलें 

फल-वृक्षों की गंध  

ज्यों खसोटता हुआ 

-0-

गाँव- 34

 

सिमटे गाँव 

कुछ गठरियों में 

दरकार है 

रहे अटरियों में 

खेत बेचके 

आये पटरियों में 

दाल मिलाए

सब मरियों में 

ढूँढे आसरा 

ठी मानसून की

फटी छतरियों में 

-0-

गाँव- 35

 

 

खबर लगी 

खेतों को मत बेचो 

छोड़ दो उन्हें  

चुनौतियाँ भी सहो 

कोई तो फिक्र 

उजड़ते गाँव की 

खुशी से दहो 

कोई ठिकाना कहो

भ्रम-कोहरा 

तुम्हारे सामने है 

उसमें मत रहो 

-0-

2-चोका- रश्मि विभा त्रिपाठी 

 


वो लोग खास

आफत में आते थे

दौड़ के पास

कहाँ कर रहे हैं

अब प्रवास

कितनी है तरक्की 

खूब विकास 

भलाई, नेकी को ही

क्यों वनवास 

क्यों इंसानियत ने

लिया संन्या 

लगा- लगाकरके 

रोज क़यास 

खोती जा रही हूँ मैं

अपनी आस

आज की दुनिया में

क्या अहसास 

किसी को है किसी का

या अनायास 

कैसे मिटी है भला

रिश्तों में वह

पहले- सी मिठास 

कौन प्रयास 

यहाँ यह करता

कि आता रास 

सिर्फ अपनापन

न निकालता

आदमी आदमी पे

कोई भड़ास 

न तोड़ता विश्वास 

उतारकर 

बेरुखी का लिबास 

इंसाँ उदास

देखता तो दे देता

उसको हास

डर है कि जब भी

लिखा जाएगा

इन रिश्ते- नातों का

जैसे का तैसा

अगर इतिहास 

देगा बहुत त्रास।

-0-