1-भीकम सिंह
गाँव
-36
खलिहान से
उठी ज्यों सोंधी गंध
हवा ने खोले
पुरवाई के बंद
गेंहूँ ने देखा
गर्दन घुमाकर
रीपर हँसा
मेड़ पे मंद-मंद
एम-एस-पी
सोच
-सोचके खेत
देखता
रहा दंग ।
गाँव
- 37
दिन यूँ सारा
पसीने में नहाया
पानी बरसा
खेत लहलहाया
कच्ची राह पे
गाँव चलके आया
अपने पीछे
कितने समझोते
करके आया
फसलों ने भरोसा
मंड़ी तक दिखाया
।
गाँव- 38
आषाढ़ द्वारे
वर्षा ने दी दस्तक
खेतों से सारे
रंग निकल आये
पगडण्डी पे
खड़ी हुई बहारें
देखने को ज्यों
गाँव के चाँद-तारे
निकल आये
अंखियों के भी भेद
सारे निकल आये
।
गाँव- 39
खेत बेचके
खाने कमाने लगे
कुछ दिनों में
सब ठिकाने लगे
बाकी जो बचे
हाथ से जाने लगे
शहर होने
गाँव चले थे सभी
सिरहाने को
मगर वो बैठने
सभी पैताने लगे
।
गाँव-40
प्रदूषण का
बुरा हाल देखके
मेघ ठहरे
मेह पे बैठाकर
घने पहरे
अब ना बरसेंगे
कह रहे हैं
सभी ताल ठोकके
आँखें लगी हैं
किसानों की ऊपर
सारा काम छोड़के
।
-0-
2-कपिल
कुमार
1.
ऐसे चलाते
पेड़ों पर कुल्हाड़ियाँ
दाँत भींच के
अर्जुन ने चलाया
शत्रु को देख
ज्यों गांडीव-धनुष
पीछे खींच के
देखते ही देखते
दो ही क्षण में
लहूलुहान डालियाँ
भू पर आ गिरी
सृष्टि ने जिन्हें पाला
वर्षों तक सींचके।
0-
8 टिप्पणियां:
डॉ. भीकम सिंह जी ग्राम्य जीवन केविषय में लिखने में सिद्धहस्त हैं।उनके समस्त चोका उत्कृष्ट हैं, इनमें नवीन बिम्बो के साथ कृषक जीवन की विसंगतियों के चित्र भी उकेरे गए हैं।बधाई।
कपिल कुमार का चोका भी अच्छा है पर वृक्षो को काटने में अर्जुन के गांडीव का बिम्ब असंगत प्रतीत होता है।
बहुत सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई 💐🌹
सादर
बहुत ही सुन्दर लिखा ,आप दोनों को बधाई।
bahut sunderchonka bahut bahut badhaii
आदरणीय भीकम सिंह जी की गाँव पर आधारित सभी रचनाएँ बेहद ख़ूबसूरत होती हैं! यह चोका भी इसी श्रेणी की एक और कड़ी है! आँखों के साकार करता चित्रण!
आदरणीय कपिल जी का चोका भी बहुत सुंदर!
~सादर
अनिता ललित
ग्राम्य जीवन पर आधारित सभी चोका बहुत सुंदर हैं। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
कपिल कुमार जी सुंदर चोका के लिए बधाई
सुदर्शन रत्नाकर
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और खूबसूरत टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
सभी चोका बहुत ख़ूबसूरत...आप दोनों को हार्दिक बधाई।
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