1-रश्मि विभा त्रिपाठी
1
अति पुनीत
अनुराग- ऋचाएँ
प्राण हर्षाएँ
गा प्रिय गुणगान
प्रेम- श्रुति महान।
2
मंगलाचार
मन करे उच्चार
आए ले द्वार
वे प्रिय भावमयी
पावन प्रेम- त्रयी।
3
भले अजान
पर सामर्थ्यवान
आँखें पढ़तीं
तेरा मन- भावार्थ
प्रेम- सूक्त निस्वार्थ ।
4
दूर विदेश
पाते सदा संदेश
मन- पुकार
पहुँची प्रिय- द्वार
भेजी चिट्ठी न तार ।
5
जीवन- ग्रंथ
अनुराग अनंत
मन- पृष्ठ पे
रचता सुख- सर्ग
दुख- पीड़ा उत्सर्ग ।
6
सूरज- चाँद
तुमने दिए बाँध
आ आँचल में
सजाकर उजास
रचा है इतिहास ।
7
मन वीथिका
जली नेह- दीपिका
नहीं कुछ भी
मनोकामना शेष
प्रिय से पाया उन्मेष ।
-0-
2-डॉ.नीना
छिब्बर
1
मन गुफा में
गूँजें प्रतिध्वनियाँ
जागती आस
सुख दुख साथी -सा
चलता रहे साथ ।
2
नयी मंज़िलें
हिम्मत औ’ हौसला
हो जब साथ
काँटे भी बने फूल
राहें तब आसान ।
3.
देख के आज
गुलाब पे शबाब
वक्त भी थमा
धीमी चली पवन
आसमाँ झुक
गया।
4
नदी तट पे
नन्हे फूलों की फौज
मौज ही मौज
लहरें हैं दीवानी
जल-संगीत
बजा।
5
नन्हे कदम
बढ़े हौसले रख
जीतेंगे जंग
हिम्मत- पतवार
हर मुश्किल पार ।
6
आज ही दिखी
बादलों की चिट्ठियाँ
बिजली वाली
मोर पढ़के नाचे
छाया है अभिसार ।
7
दो ही रंग हैं
आशा और विश्वास
जीवन आस
बढ़ते ही रहना
मानव इतिहास ।
8
टेढ़े वक्त में
सीधे सरल रिश्ते
मन जीतते
मिटे हर थकान
राह बने आसान ।
9
सूर्य -प्रकाश
सिर चढ़ के बोला
उम्मीदे लाया
पाखी संग आई
संगीत की बहार।
10
परछाई से
चले हमनवाज़
क्षितिज पार
मौन रह सुनते
अनकही बतिया ।
11
दाना- दुनका
ढूँढ रही गौरैया
आँगन- द्वार
खुली
हैं खिड़कियाँ
दरवाजे मुस्काए।
12
चकित मन
नतमस्तक हम
प्रकृति -द्वारे
नदी- पर्वत सारे
ईश के प्रतिबिंब ।
13
नन्हीं चिड़िया
लाई शुभ संदेश
लौटेंगे देश
महकेगी ही आँच
घर होगा आबाद ।
14
पढ़ के देख
चेहरे की किताब
मिले जवाब
सुलझे उलझने
मिले परमांनद ।
-0-
3-सविता अग्रवाल ‘सवि’
1
धरा की छटा
नैसर्गिक आनंद
वादियाँ सजीं
रवि की चित्रकारी
मेघ भरते रंग ।
2
जागे हैं मेघ
कारवाँ में दौड़ते
होड़ लगाते
हार जाने पर वे
आँसू भी बरसाते ।
3
मौसम आया
पेड़ों से झरे पात
ठौर ढूँढते
लिपटके माटी से
अस्तित्व सब खोते ।
4
बहती हवा
छूकर मेरा तन
सिहरा गई
सुगंध- सी बिखरी
साँसों में बस गई ।
5
क्रूर मानव
जंगलों का दुश्मन
आग लगाए
वायु के अभाव में
प्राण गँवाए ।
-0-
4-परमजीत
कौर 'रीत'
1
वर्षा ऋतु में
फूलते जब द्वार
शोर मचाते
दिखते नहीं फूल
सीली सुगंध वाले
2
पलते सदा
अधखुली आँखों में
नए सपने
जब लड़खड़ाते
खुल जाती हैं आँखें
3
भोली गौरैया
चीरती आसमान
बसेरा तृण
बैठती गुंबदों पे
अंतर न करती
4
जिंदगी
लगे
कपास के फूल- सी
उजली नरम
पर किनारे सख़्त
चुभें तो सँभलना
5
चंदा बेचैन
छत पर घूमता
यहाँ से वहाँ
बंद हैं दरवाजे
कोई नहीं दिखता
6
मन-
दीवार
हटते ही तस्वीरें
जगह खाली
बच जाते हैं दाग़
रह जाता है दर्द
-0-