811-कंठ है प्यासा
डॉ.कविता भट्ट
कंठ है प्यासा
पहाड़ी पगडंडी
बोझ है भारी
है विकट चढ़ाई
दोपहर में
दूर-दूर तक भी
पेड़ न कोई
दावानल से सूखे
थे हरे-भरे
पोखर-जलधारा
सिसके-रोए
ये खग-मृग-श्रेणी
स्वयं किए थे
चिंगारी के हवाले
वृक्ष -लताएँ
अब गठरी लिये
स्वयं ही खोजें
पेड़ की छाँव घनी
और पीने को पानी ।
-0-
29 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
Superb.......
हार्दिक आभार, अनिल जी एवम प्रदीप जी
Accha pryyas hai
हार्दिक आभार, आदरणीय विजय जी
नमस्कार
डाॅ कविता भट्ट साहिबा निहायत ही खूबसूरत कविता मुबारकबाद आप ऐसे ही कहती रहें दुआ गो ख़ाकसार सागर सियालकोटी लुधियाना से
बहुत ही खूबसूरत.........!
सुंदर!
प्रकृति की उपेक्षा और उसके दुष्परिणाम को रेखांकित करता चोका।
बहुत कुछ मनन करने को मजबूर करता सार्थक चोका है...|
बहुत बधाई...|
हृदयस्पर्शी चोका कविता जी ..हार्दिक बधाई 🙏🙏🙏
प्रकृति प्रेम का सटीक चित्रण किया। बेहतरीन
कंठ है प्यासा मानव का ही नहीं हर जीव ,जन्तु और परिन्दों की प्यास का दर्द बयाँ कर गया ।बहुत खूबसूरती से लिखा गया है यह चौका ।बहुत सुन्दर लिखती है कविता जी ।बधाई दिल से ।
सर्वप्रथम आपको प्रणाम।
बहुत सुन्दर
प्रिय कविता पहाड़ो की बेटी हो । दरख्तों की व्यथा जानती हो । सुन्दरभाव - कविता ।
बहुत मर्मस्पर्शी चोका कविता जी बधाई।
आप सभी का हार्दिक आभार।
बहुत खूबसूरत
जीवन के संघर्षों का अति सुंदर चित्रण पढकर मन को एक नयी चेतना मिली | वास्तव में यही तो जीवन की सच्चाई है | "जो आगे बढ़ते हैं वे पीछे मुडकर नहीं देखते "| मेरी सद्भावनाए कविता बेटी के लिए | आपकी लेखिनी दिन प्रतिदिन प्रखर रही है | श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना
हमेशा की तरह बहुत ही उम्दा सृजन
हार्दिक बधाई
bahut khub! bahut bahut badhai..
आप सभी का हार्दिक आभार
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ११ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' ११ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया शुभा मेहता जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
सही कहा है पहले हम विनाश करते हैं फिर उसी को पाने का प्रयास करते हैं ...
इंसान का स्वार्थ प्राकृति को छीन रहा है ... लाजवाब रचना ...
बढिया
हार्दिक आभार आप सभी का।
सुन्दर , सार्थक सृजन !
हार्दिक बधाई कविता जी !!
बहुत सुन्दर... बहुत - बहुत बधाई आपको !
सुंदर, सार्थक।
एक टिप्पणी भेजें