डॉ भावना कुँअर
1
वक्त ने मुझे
बेबस ऐसा किया-
जलाया था मैंने जो
प्रेम का दीया
छोटी -सी इस लौ ने
जीवन जला दिया।
2
तूने ही दिए
अनगिनत ख्वाब
मेरी इन आँखों में,
पर क्या किया?
ख्वाबों के संग-संग
बेरौनक हुई अँखियाँ ।
3
आँखों में एक
बसा था सुरूर- सा
चिंगारियों से भरा
एक अदद
है कौन कमज़र्फ
ये जहान दे गया।
4
सहेजे रखी
जो बरसों से मैंने
यादों की पिटारियाँ
अचानक यूँ
एक निकल भागी
जा माँ के गले लगी
5
मन की बात
है छिप जाती कभी
सर्दी की धूप-जैसी
लहरों -संग
उछल जाती कभी
नन्ही मछलियों- सी।
6
मन की बात
लिख न पाए कोई
अठखेलियाँ करें
ये नटखट
चंचल लहरों -सी
ख्वाबों पे पहरे- सी।
7
दर पे मेरे
छोड़ी है किसने
दर्द भरी पोटली?
जादू भरी -सी
निकालूँ,थक जाऊँ
खत्म न कर पाऊँ।
8
बिखरी चीज़ें
हैं दिला रही याद
बीते हुए पलों की
सँभाले रखी
यादों की टहनियाँ
प्रेम न रख पाए।
9
शोर मचाएँ
उमड़ते ये आँसू
कोई न सुन पाए
पर चाँदनी
सहेजती ही जाए
झरते मोतियों को ।
10
धूप-सी खिली
अँधेरों को चीरती
वो मोहक मुस्कान
हर ले गई
गमों के पहाड़ को
मिला जीवन –दान
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