रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तुम दीपक
मन के ,जीवन के
तुम हो मेरी आशा
तुम न होते
लिख न पाते हम
जन्मों की परिभाषा ।
2
दीपक बन
राह दिखाते जाना
बाधाओं में
मुस्काना,
पथ में मिलें
उनको गिराकर
आगे न बढ़ जाना ।
3
ज्ञान -उजेरा
ढक लिया हाथों से
हे क्षुद्र साहित्यकार ?
'मैं-मै' का चढ़ा
जीवन में बुखार
इसे अब उतार ।
-0-
2- मंजु गुप्ता
1
मुडेरों पर
घर -दर -अटारी
चौराहों - नदियों पे
जलाएँ दीप
समता - सद्भाव का
विश्वबंधुत्व हेतु ।
-0-
3-रेनु चन्द्रा
1
ज्ञान के दीप
घर घर जलाएँ
अज्ञानता हो दूर
मन के दीप
राहों में सजा,
प्यार
बरसे भरपूर ।
2
मुस्कान भरो
फूलों की महक हो
दीपों की पाँत जले
रोशन करो
जन -जन के मन
प्रेम उत्साह पले ।
-0-
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर...बधाई...|
प्रियंका
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