डॉ जेन्नी शबनम
साँसें ज़िन्दगी
निरंतर चलती
ज़िंदा होने का
मानों फ़र्ज़ निभाती,
साँसों की लय
है हिचकोले खाती
बढ़ती जाती
अपनी ही रफ़्तार
थकती रही
पर रुकती नही
पर रुकती नही
चलती रही
कभी पुरजोरी
से
कभी हौले से
कभी तूफ़ानी चाल
हो के बेहाल
कभी मध्यम चाल
सकपका के
कभी तूफ़ानी चाल
हो के बेहाल
कभी मध्यम चाल
सकपका के
कभी धुक-धुक सी
डर-डर के
मानो रस्म
निभाती,
साँसें अक्सर
बेअदबी करती
इश्क़ भूल के
नफरत ख़ुद से
नसों में रोष
बेइन्तिहा भरती
इश्क़ भूल के
नफरत ख़ुद से
नसों में रोष
बेइन्तिहा भरती
लगती कभी
मानो ग़ैर जिन्दगी,
रहे तो रहे
परवाह न कोई
मिटे तो मिटे
मगर साँसें घटें
रस्म तो टूटे
मानो ग़ैर जिन्दगी,
रहे तो रहे
परवाह न कोई
मिटे तो मिटे
मगर साँसें घटें
रस्म तो टूटे
मानो होगी आज़ादी,
कुम्हलाई है
सपनों की ज़मीन
उगते नही
बारहमासी फूल
जो दें सुगंध
सजा जाए जीवन
महके साँसें
मानो बगिया मन,
घायल साँसें
भरती करवटें
डर- डर के
कँटीले बिछौने पे
जिन्दगी जैसे
लहूलुहान साँसें
छटपटाती
मानों जिन्दगी रोती
आहें भरती
रुदाली बन कर
रोज़ मर्सिया गाती ।
कुम्हलाई है
सपनों की ज़मीन
उगते नही
बारहमासी फूल
जो दें सुगंध
सजा जाए जीवन
महके साँसें
मानो बगिया मन,
घायल साँसें
भरती करवटें
डर- डर के
कँटीले बिछौने पे
जिन्दगी जैसे
लहूलुहान साँसें
छटपटाती
मानों जिन्दगी रोती
रुदाली बन कर
रोज़ मर्सिया गाती ।
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4 टिप्पणियां:
आहें भरती
रुदाली बन कर
रोज़ मर्सिया गाती ।....बहुत सुंदर अभियक्ति
जीवन के कटु सत्य को कहती मार्मिक रचना ...बधाई आपको !
sason pe adharit choka bahut sunder abhivyakti hai.apako badhai.
pushpa mehra.
जेन्नी जी बहुत मार्मिक चोका....बधाई !
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