अनिता ललित
दीपशिखा-
सी
जलती हरदम
तेरे आँगन
कुछ यूँ सुलगती
मैं पिघलती
अंदर ही अंदर!
आँसू में डूबे
अरमान जलते
और फैलता
उदासी का उजाला
तन्हाई ओढ़े!
सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश,
धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!
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9 टिप्पणियां:
bahut sundar ...... दीपशिखा- सी
जलती हरदम
तेरे आँगन
कुछ यूँ सुलगती
मैं पिघलती waah badhai aapko
और फैलता
उदासी का उजाला
तन्हाई ओढ़े!........सुंदर शब्द संयोजन
......अनीता जी को बधाई !
सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!
sunder bhavo se bhara ek ek shabd
badhai
rachana
सुंदर चोका । अनिता जी एक समर्थ रचनाकार के रूप में निरंतर उभर रही हैं ।
भावप्रवण...अच्छा लगा पढ़ना...| हार्दिक बधाई...|
प्रियंका
भावप्रवण...अच्छा लगा पढ़ना...| हार्दिक बधाई...|
प्रियंका
शशि जी, ऋता जी, रचना जी, सुशीला जी, प्रियंका जी... सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का दिल से बहुत-बहुत आभार! :-)
~सादर
अनिता ललित
सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!....सुंदर शब्द संयोजन
अरमान जलते
और फैलता
उदासी का उजाला.....सुन्दर प्रस्तुति ...दीपशिखा सी !!
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