भीकम सिंह
1
तमाम उम्र
ओढ़के हरियाली
किया है प्यार
कभी थके ना हारे
नदी के दो किनारे ।
2
जिम्मेदारी ने
लपेटे में ले लिया
सारा का सारा
बचा जो बचपन
सोचता पचपन ।
3
मौन पेड़ों से
कचर-कचर का
उठा है शोर
सूखे पत्ते बिखेरे
हवा ने चारों ओर ।
4
दुखी है भोर
किरण सोई हुई
ओढ़ के धोर
बाँहें बाँधी सूर्य की
मेघों ने उस ओर ।
5
धूप में स्नान
वनों ने कर लिया
पेड़ निखरे
उजल्र हुए पात
टहनियाँ थिरकीं ।
6
हवा ज्यों चली
फूलों के कपोलों की
खुशबू
उड़ी
दिन में रोकने की
भृंगों ने कोशिश की
7
काला - सा भृंग
एक झोंके में उड़ा
लाज में कली
आँखें
मूँदे ही रही
स्तुति में हो ज्यों कोई ।
8
धूप की गंगा
क्षितिज पर फैली
सूर्य ठहरा
घोड़ों के गात पोंछे
लेटा, झील
के पीछे ।
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