1-सफलता का पाठ
पूनम सैनी
1
ऊँचे ख़्वाबों की
मंज़िले भी है दूर
मुश्किलों भरी राह,
चुनौती खरी
सफलता मगर
सरल दाव नहीं।
2
पीड़ा बहुत
देती है चुनौतियाँ
रोकती है बाधाएँ,
संभावना है
चोट खा गिरने की
गिरता नहीं कौन?
3
पथ के साथी
छोड़ भी दें शायद
मुसीबत में साथ
अकेले तुम
कमज़ोर तो नहीं
स्वप्न भी तो तुम्हारे।
4
उड़ान भरो
ख़्वाबों के आसमाँ की
हौसलों के सहारे,
मज़बूत हों
इरादे जो मन के,
मिट जाती मुश्किलें।
5
गिरना और
गिर के टूट जाना
लाज़िमी है बहुत।
रुकना मत,
समेटना खुद को।
मंजिलें अभी दूर।
6
गिरी बहुत,
ठहरी ना मगर
बहादुर चीटियाँ,
छोटा परिंदा
भेदता लेता नभ
चुनौतियों के पार।
7
तुम सबल
फिर क्यों कतराते
जीवन है चुनौती,
बनो सहारा
अपना तुम आप,
लकीर खुद बुनो।
8
रचना श्रेष्ठ
प्रकृति की मनुज,
गुणों से अलंकृत,
सीखना तुम
असफलताओं से
सफलता का पाठ।
-0-
2-भीकम सिंह
1
नदी उमड़ी
खेतों का रुख़ किया
वृक्ष छोड़के
समतल - सा किया
श्रम भी व्यर्थ गया
।
2
ऊर्जा से भरे
नदियों में छोड़े हैं
सूर्य ने घोड़े
जो, लहरों में
सोते
खेत, जोतते- बोते
।
3
पके - से खेत
पवन डाले डोरे
दे-दे झकोरे
खलिहान बेबस
चुप पड़ें है बस ।
-0-
3-कृष्णा
वर्मा
1
डूबी हैं आँखें
यादों के भँवर में
हिचकियों में
दर-बदर साँसें
सुलग रहा मन।
2
नयन भरे
बादल कजरारे
फिर न जाने
सूखे पाँव सावन
क्यों लाँघ गया गाँव।
3
हवा बातूनी
शाख पुष्प पत्तों से
बातें बनाए
हँस-हँस चंचला
ख़ुश्बू चुरा ले जाए।
4
मेल-मिलाप
तरसे अपनापा
वक़्त का घाव
सावन के झूले न
घेवर में मिठास।
5
छूटे अपने
लड़खड़ाए पाँव
कौन दे अर्थ
डगमगाए भाव
खोए हमसफ़र।
6
स्वार्थ की गाँठ
करके जीर्ण- शीर्ण
चलो माँज लें
पतली हो गई जो
नेह डोर हमारी।
7
तम में घिरे
क्यों रोते फिरें हम
ओज का रोना
दीपक जलाकर
आओ करें सवेरा।
8
तान प्रत्यंचा
बिखेर रहा रंग
रच रहा है
रौनक़ मधुमास
इन्द्रधनु आकाश।
9
रहें प्रेम में
दिल की धड़कनें
जिनकी तेज़
रहते वही आगे
वक़्त की रफ़्तार से।
10
फड़फड़ाएँ
भीतर ही भीतर
जाने कितने
अनुभूत सत्य न
कहे जाएँ शब्दों में।
11
कैसे ख़ामोश
रच के षडयंत्र
काल के बाण
दाग रहे निशाना
मानव की ज़ात को
12
कोई भी रिश्ता
नहीं होता ख़राब
ख़राब हैं तो
नीयतें जो रिश्तों को
करतीं बदनाम।
-0-
4--डॉ.
सुरंगमा यादव
1
झरें पुष्प से
कितने ही सपने
स्वप्न देखना
छोड़ें नैन कभी न
यही जिंदगी है न।
2
पुष्प व्यथित
मत होना तू प्यारे
कभी दुलारे
कभी छुड़ा दे डाल
यही हवा की चाल!
3
हस्त रेखाएँ
बाँचते ही रहते
आलसी जन
पुरूषार्थी उठाते
नित कर्म का प्रन।
4
मृदु वचन
अनमोल है धन
वैर मिटाए
पल भर में करे
क्रोधाग्नि का शमन।
5
मेघ बरसे
अंकुरित हो उठा
धरा का मन
प्रतीक्षाओं को मिला
धैर्य का आज सिला।
-0-
9 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
आदरणीया कृष्णा जी, सुरंगमा जी, पूनम सैनी एवं आदरणीय डॉ भीकम सिंह जी को सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
बहुत ही सुंदर सृजन के लिए कृष्णा जी,पूनम जी. सुरंगमा जी, भीकम सिंह जी आप सबको हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियां।
सभी रचनाकारों को ह्रदय से प्रणाम
🙏🙏❤️❤️👍👍
बहुत सुन्दर सृजन!
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
वाह ! बेहतरीन सृजन!सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ और धन्यवाद!!
पूनम सेनीजी भीकम जी कृष्णा जी और सुरंगमा जी सभी के भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई।
अत्यन्त सुंदर सृजन! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ही सुंदर सृजन के लिए कृष्णा जी,पूनम जी. सुरंगमा जी, भीकम सिंह जी। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।धन्यवाद। Zee Talwara
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