भीकम सिंह
1
तमाम उम्र
ओढ़के हरियाली
किया है प्यार
कभी थके ना हारे
नदी के दो किनारे ।
2
जिम्मेदारी ने
लपेटे में ले लिया
सारा का सारा
बचा जो बचपन
सोचता पचपन ।
3
मौन पेड़ों से
कचर-कचर का
उठा है शोर
सूखे पत्ते बिखेरे
हवा ने चारों ओर ।
4
दुखी है भोर
किरण सोई हुई
ओढ़ के धोर
बाँहें बाँधी सूर्य की
मेघों ने उस ओर ।
5
धूप में स्नान
वनों ने कर लिया
पेड़ निखरे
उजल्र हुए पात
टहनियाँ थिरकीं ।
6
हवा ज्यों चली
फूलों के कपोलों की
खुशबू
उड़ी
दिन में रोकने की
भृंगों ने कोशिश की
7
काला - सा भृंग
एक झोंके में उड़ा
लाज में कली
आँखें
मूँदे ही रही
स्तुति में हो ज्यों कोई ।
8
धूप की गंगा
क्षितिज पर फैली
सूर्य ठहरा
घोड़ों के गात पोंछे
लेटा, झील
के पीछे ।
-0-
9 टिप्पणियां:
सभी ताँका एक से बढ़कर एक...सुंदर चित्र उकेरते! हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी!
~सादर
अनिता ललित
वाह,एक से बढ़कर एक ताँका,प्रकृति के मानवीकरण के मनोहर चित्र,दूसरा ताँका अलग ही रंग का,पचपन की विवशता का यथार्थ वर्णन।बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी।
सभी ताँका बहुत सुंदर। जो ताँका मन पर गहन प्रभाव छोड़ गया -
जिम्मेदारी ने
लपेटे में ले लिया
सारा का सारा
बचा जो बचपन
सोचता पचपन ।
सुंदर सृजन के लिए बधाई आदरणीय भीकम जी 💐
सभी ताँका लाजवाब हुए हैं बधाई।
भीकम जी अत्यंत सुन्दर सृजन है | सभी तांका एक से बढ़कर एक हैं बधाई स्वीकारें |
बहुत उम्दा लिखा है, मेरी बहुत बधाई
भीकम जी को उत्कृष्ट ताँका के लिए-बधाई।
अनुभूतियों का सुंदर शब्दांकन है, इसे पढ़ते ही इसके भाव सम्मुख ही प्रकट होते हैं। प्रकृति को निकट से निहारने और उसे अपने भावों में बाँधने की आपकी कोशिश को नमन।
बधाई
सभी ताँका अति सुन्दर!
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम जी।🙏🏼
मेरे ताँकाओं पर , आपके विचार और भावनाओं का मैं ह्रदय से आभारी हूँ ।
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