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शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

993

 दिनेश चन्द्र पाण्डेय

1.

बदरा छाए

सावन में कजरी

पपीहा गा

कोरस में दादुर

मीठी कोयल मौन

2.

रवि को जगा

कलरव से खग

घर बाग़ में

अपनी जमींदारी

सँभालते सजग

3.

कला- सृजन

दबी संवेदनाएँ

आकार लेतीं

मूर्त अन्तर्मन की

अनुभव पीड़ाएँ

4.

रूपसी बाला

मुस्कुराते अधर

झील- सी आँखें

दृष्टि ठगी -सी, खोईं        

उस रूप दीप्ति में 

5.

भीगे नयन

सुधा रस संपन्न

मातृ-हृदय

बसता है जिसमें

शिशु का जग सारा

6.

आया बसंत

कुंजों में भौंरे डोले

कुहुके श्यामा

सुमनों के सौरभ 

पी रहीं तितलियाँ

7

घुप अँधेरे में

भूमि गर्भ से बीज

आस्था सज्जित

शक्ति एकाग्र कर

कोंपल बन आता

8

पथिक संग

चलता रहा रात

चाँद अकेला

बिछा कर कौमुदी

राह सजाता रहा

9

हरि प्रेरित

उनचास पवन

चलने लगे

पूँछ लगी न आग़

जले लंका भवन

10

बिजूखा जैसे

घर में माता पिता

रहे अकेले

नग़र ने निगला

पुराना गाँव घर

11

दीवाली

खूब सजे घर में

खील- खिलोने

दीखे नहीं पास ही

झुग्गी, माँ बच्चे रोने

12

संभावनाएँ,

मानव में कपि -सी,

अंतर्निहित,

विस्मृति से जगाते,

सद्गुरु जाम्बवान

-0-

बुधवार, 29 सितंबर 2021

987

 दिनेश चन्द्र पाण्डेय

 1-सेदोका

1

प्यारी बेटियाँ

मीठे कलरव से

घर-चौरा गुँजाती

वक्त की बात

सूना घर ढूँढता

उड़ा प्रवासी पंछी

2.

वसुधा- संग

लिपटी रही रात

किलोल क्रीड़ारत

पूर्णेंदु विभा

छलकी प्रेम- सुधा

बेसुध अंग-अंग

3.

प्रिय संग थी
मधु रा क्षणों में
अलबेली सजनी
चंचल चाँद
झरोखे से झाँकता
सस्मित लौट गया
4

जागा मार्तंड

दिशाएँ दीप्त हुईं

स्निग्ध कांति पसरी

निहाल धरा

निखरे हिमाद्रि के

शुभ्र श्वेत शिखर

5.

आँखें खोई थीं

बहुसंख्य तारों में

जब सामने ही था

जाने कब से

काम्य चाँदनी लुटा

हँस रहा था चाँद

6.

बरस पड़े

काले मेघ कुंतल

धरा के आँगन में

श्रावणी धरा

सजी धानी वस्त्रों में

झूमे दादुर मोर

-0-

 2-ताँका

1.

रसाल- कुंज,

घुघुती गाती फिरी

मिलन गीत

विरही पपीहरा

सुन पूछे पी-कहाँ ?

2.

दीप्त हो गया

झील का श्याम जल

जब तले में

भटककर आया

चाँद सुस्ताने लगा

3.

शिशिर रात,

निस्तब्ध प्रकृति,

झरते नित

नभ दृग से आँसू,

क्लिन्न पातों का गात

4.

सावन आया,

पुरवा छेड़ रही

कजरी रा

किसने झूला डाला ?

अमराई में आज

-0-