माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
यह खूब हरेरी है
तुममें बसती जो
इक दुनिया मेरी है।
2
सपने में आन मिले
पलकों पर मेरी
जूही के फूल खिले।
3
मुझमें तुम शामिल हो
क्या बोलूँ कैसे-
मैं धड़कन, तुम दिल हो।
4
तुमने पहचाना है
मेरे इस दिल का
जो ताना- बाना है।
5
तुमको जो दर्द रहा
मेरे मुखड़े का
रंग भी फिर ज़र्द रहा।
6
तेरी परछाई हूँ
तेरी खातिर मैं
दुनिया में आई हूँ।
7
निकली तूफानों से
सर जब टेक दिया
तेरे इन शानों पे।
8
तुम मोहन मैं राधा
क्यों ना बाँटें हम
हर दुख आधा- आधा।
9
रब तुम मंजूर करो
एक यही अर्जी
उसका गम दूर करो।
10
ये मन मायूस हुआ
बिन बतलाए ही
तुमको महसूस हुआ।
11
तुमने ही जानी है
बात मेरे मन की
रिश्ता रूहानी है।
12
मैं गुम हो जाती हूँ
तुममें अक्सर यों
मैं तुम हो जाती हूँ।
13
दोनों बेहाल हुए
इक- दूजे के बिन,
सोनी- महिवाल हुए।
14
ना कोई और रहा
मेरे इस दिल में
तेरा ही दौर रहा।
15
तेरे हर इक गम को
भर लें सीने में
तो चैन मिले हमको।
16
सोऊँ या फिर जागूँ
तेरी खातिर मैं
दिन- रात दुआ माँगूँ।
17
सीने से लगकरके
तेरे दिल के गम
लौटूँ खुद में भरके।
18
ना अब अपने बस में
तुम बिन जी पाना
तुम मेरी नस- नस में।
19
रहना तुम पास सदा
रब से करती हूँ
मैं ये अरदास सदा।
20
तुम अगर टटोलोगे
मेरी नब्ज कभी
मुझमें तुम बोलोगे।
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