ब्रज अनुवाद- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
सुनो जी कान्हा!
सात छेद वाली मैं
खाली ही ख़ाली
तूने अधर धरी
सुरों की धार बही।
श्रवनौ कान्ह
सात छेद बारी हौं
रीती ई रीती
तो अधरनि धरी
सुरनि धार बही।
2
कोई न गुन
दो टके का न तन
तूने छू दिया
कान्हा! निकली धुन
लो, मैं ‘नौ लखी’ हुई।
कोऊ ना गुन
द्वै टका कौ ना तन
तैनै परस्यौ
कान्हा निकरी धुनि
लै, हौं नौ लखी भई।
3
छम से बजी
राधिका की पायल
सुन के धुन
दौड़ पड़ी गोपियाँ
उफनी है कालिन्दी।
छम्म तैं बाजी
राधा की पैंजनिया
श्रवनि धुन
दौरि परीं ग्वालिन
उफनति कालिन्दी।
4
आज भी कान्हा
बजा रहे बाँसुरी
निधि-वन में
लोक-लाज छोड़के
दौड़ी राधा बावरी।
अजहुँ कान्हा
बजाइ रए बंसी
निधिवन मैं
लोज- लाज छाँड़िकैं
दौरी राधा बाउरी।
5
बंशी बजाके
राधा- राधा पुकारें
कुंज में कान्हा
वंशी को सौत माने
हुई राधा बावरी।
बंसी बजाइ
राधा- राधा टेरत
कुंज मैं कान्ह
बंसीऐ सौत मानै
भई राधा बाउरी।
6
प्रकृति- परी
हाथ लिये घूमती
जादू की छड़ी
मोहक रूप धरे
सब का मन हरे।
अदिति परी
हाँथ लऐं फिरति
जादू की साँट
मोहनौ रूप धरै
सिग कौ जिय हरै।
7
शेफाली खिली
वन महक गया
ॠतु ने कहा:
गर्व मत करना
पर्व यह भी गया।
सेफाली फूली
बन गमकि गयौ
रितु नैं कही
गरब न करियो
परब जेऊ गयौ।
8
निडर चोर
सब चुरा ले गया
नींद, सपने
छोड़ गया तो बस
सूजी-सूजी पलकें।
निसाँक चोर
सिग चोरि लै गयौ
औंग, सुपने
छाँड़ि गयौ तौ बस्सि
सूजी- सूजी पलकैं।
9
बड़ा कठिन
गुलाब को गूँथना
माला बनाना
पँखुरी-पँखुरी हो
बिखरता जाता वो।
अत्ति कौ कर्रौ
गुलाबए गूँथिबौ
माला बनानौ
पाँखुरी- पाँखुरी ह्वै
बगरत जातु वै।
10
सुख पराया
दुःख मेरे अपने
साथ निभाते
सहचर बनाया
सदा गले लगाया।
सुख आवरौ
दूखु मोरे आपुने
संग निभात
सखा जाइ बनायौ
सदा गरैं लगायौ।
11
पिरोया तुम्हें
साँसों की सुमरिनी
सदा के लिए
जपती ही रहूँगी
रटूँ एक ही नाम।
पोयौ तुमहिं
साँसनि सुमरिनी
सदा के लऐं
जपतइ रहौंगी
रटौं एकई नांउँ।
12
भीगा तकिया
दफ़्न किये हैं ख़्वाब
जाने कितने
दो मुट्ठी भर मिट्टी
कोई आता डालने।
भींजौ तकिया
गाढ़ि दए सुपने
जानै केते ई
द्वै मुठी भरि माटी
कोई आवै डारिबे।
13
तुम्हें क्या खोया
ज़िन्दगी की स्लेट से
नाम मिटाया
आँसुओं डूब गई
दुःख गले लगाया।
तुम्हैं का खोयौ
जीबनु की स्लेट सौं
नाउँ ऐ मैंट्यौ
अँसुअनि निमज्जी
दूखु गरैं लगायौ।
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10 टिप्पणियां:
वाहह!!! अद्भुत!!! मूल रचना का सौंदर्य अनूदित रचनाओं में भी द्विगुणित हो रहा है 🌹🌹🌹हार्दिक बधाई रश्मि जी 🙏🌹🌹
सुधाजी की अद्भुत रचनाओं का बेहतरीन अनुवाद। आपकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है रश्मि जी!!
हरेक ताँका चित्र उकेरता हुआ... अतिसुंदर! आदरणीया सुधा दीदी जी की भावपूर्ण रचनाएँ मन को अंदर तक भिगो जाती हैं। प्रिय रश्मि विभा जी द्वारा उनका अनुवाद बहुत सराहनीय है।
~सादर
अनिता ललित
ब्रज भाषा का माधुर्य समेटे सरस अनुवाद। हार्दिक बधाई रश्मि जी।
बेहतरीन ताँका का बेहतरीन ही अनुवाद। ब्रज भाषा का अपना ही माधुर्य है। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
मेरे प्रयास को आदरणीय सम्पादक द्वय द्वारा सराहे जाने हेतु हार्दिक आभार।
आदरणीया रत्नाकर दीदी, अनिता जी, सुरंगमा जी, प्रीति जी एवं अनिमा जी की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर
सुधा दी के अनुपम ताँका और उनका बहुत ही सटीक, सुंदर अनुवाद। बधाई विभा जी
डॉ सुधा जी की स्मृति को सहेजने एवं उनकी रचनाओं को जीवंत रखने के इस ब्रज माधुर्य को नमन।
अनुवादक एवं उनके प्रेरणा स्रोत का अभिनंदन।
बेहतरीन कार्य-बधाई।
सुधा जी के उत्कृष्ट ताँका का बहुत सुंदर अनुवाद...रश्मि जी को हार्दिक बधाई।
हर शानदार ताँका का उतना ही बढ़िया अनुवाद...आनंद आ गया
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