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डॉ. सुरंगमा यादव
1
विदीर्ण किया
धूप के नश्तरों ने
धरा का जिया
नमी चूसती हवा
तेवर रही दिखा।
2
मन तरसे
ये कैसी निकटता
तुम्हें पाने को
अनसुनी पुकारें
अनचीन्ही व्यग्रता।
3
ढूँढ ही लूँगी
प्रिय तुम्हारा पता
डरता मन
पीर ना बढ़ जाए
हा! शकुंतला बन।
4
जा तो रहे हो
तुम परदेस में
कुछ ना लाना
बस पूरा मन ले
प्रिय तुम आ जाना।
5
प्रिय की पीर
देखकर अधीर
हो ना जो मन
तो ऐसे मन पर
क्यों वारें तन-मन।
6
सात स्वरों में
अधर धरे बिन
बजे बाँसुरी
जान सको तो जानो
ये है नारी जीवन।
-0-
2-रमेश कुमार सोनी
1
पेड़ काँपते
चश्मा बदले माली
बढ़ई हुआ मन
दिखा सर्वत्र
आरी,कुल्हाड़ी संग
बाजार को सपने।
2
गुलाब हँसे
कँटीली चौहद्दी में
सौंदर्य की सुरक्षा
महँगा बिके
कोठियों,मंदिरों में
महक बिखेरते।
3
भोर को चखा
तोते की चोंच लाल
भूख ज़िंदा ही रही
फड़फड़ाती
घोंसलों की उड़ानें
दानों के गाँव तक।
4
मेघ गरजे
स्वप्न अँखुआएँगे
खेत नहाते थके
दूब झूमती
धरा हरिया गई
मन मोर नाचते।
5
साधु- से बैठे
भोर-साँझ का रंग
अँगोछे में समेटे
पहाड़ जैसे
सुख निखरा नहीं
दुःख उजाड़ा नहीं।
6
भीगी हैं लटें
उड़ रहा दुपट्टा
वर्षा में भुट्टा खाना
स्मृति है ताज़ा
सौंदर्य दमका है
माटी की सुगंध -सा।
7
पिंयरी ओढ़े
रेत ढूँढती पानी
मीलों यात्रा करती
नीला आकाश
देख-देख हँसता
मेघ नकचढ़ा है।
8
गर्मी छुट्टियाँ
साँप-सीढ़ी का खेल
रोज मन ना भरे
पासा उछला
वक्त जीतता सदा
तेरे-मेरे बहाने।
9
कर्फ़्यू की आग
चूल्हे डरने लगे
अनशन में घर
शहर बंद
भूख छिपी बैठी है
कोई हँस रहा है।
10
यात्री जागते
नींद की ट्रेन चली
किस्से चढ़ते रहे
गाँव उतरे
गप्पें लड़ाते बीता
तेरा-मेरा सफ़र।
11
पाठक गुम
उदास हैं किताबें
'न्यूज़' शोक में गए
वाचनालय
आलमारियाँ बन्द
अज्ञान फैल रहा।
12
जेबों ने देखी
बाज़ारों की रंगीनी
झोली खाली हो गई
किसान- मन
पसीना जब बोते
सधवा सी चहकी।
13
मैके से लौटीं
साड़ियाँ चहकी हैं
घर महक रहा
रिश्ते खनके
लाज बाहों में छिपी
प्यार बरस गया।
-0-
कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़
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