रश्मि विभा त्रिपाठी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रश्मि विभा त्रिपाठी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

1213-माहिया

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

 


1
जिसको दिल सौंपा था
उसने सीने में
खंजर ही घोंपा था।
2
हर पल ही ख़्याल किया
बनके संग चले
तुम मेरी ढाल पिया।
3
बाहों का हार मुझे
तुम पहनाकरके
दे दो निस्तार मुझे।
4
नयनों में पीर दिखी
आकुल अधर हुए
कैसी तकदीर लिखी।
5
तुमको छूके आई
पुरवाई तेरी
ख़ुशबू लेके आई।
6
जब भी है मुरझाता
तेरी ख़ुशबू से
मन फिर से खिल जाता।
7
बेशक मज़बूर रही
मैं हूँ दूर भले
दिल से ना दूर रही।
8
हर आस अधूरी है
सात समंदर की
तुमसे जो दूरी है।
9
तुम सपनों में मिलते
मन के मरु में प्रिय
पाटल सौ सौ खिलते।
10
बस ये अहसान करो
अपनी पीर सभी
तुम मुझको दान करो।
—0—

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

1207-मेरे बचपन का साथी

 

हाइबन— मेरे बचपन का साथी

रश्मि विभा त्रिपाठी 

 


मेरे गाँव में मेरी हवेली के ठीक सामने जो बड़ी— सी हवेली थी, उसके पीछे के बड़े— से आँगन में खूब सारे पेड़- पौधे लगे हुए थे। स्कूल से लौटने के बाद मैं रोज उस हवेली के आँगन में जाती थी और एक पेड़, जिसके नीचे की धरती पर हमेशा लाल गलीचा— सा बिछा रहता था, मैं वहाँ रोज खेलती मेरी दोस्त के साथ। मेरा छुट्टी का तो पूरा दिन ही वहाँ बीतता था। तब मुझे नहीं पता था— पेड़ का अपने- आप अपने फूल गिराना। मुझे तो तब यही लगता था कि मैं जो माँ की बात मानकर इस पेड़ की डाली से फूल नहीं तोड़ती हूँ तो खुश होकर ये खुद ही मेरे लिए अपने फूल गिराता है और मैं खुशी से भरकर उन झरे फूलों को अपनी हथेलियों में भर लेती। खूब उनसे खेलती। वो कागज— से फूल मुझे बहुत लुभाते।

एक दिन गाँव छूटा तो जिसके साए में मेरा बचपन बीता, वो पेड़ भी छूट गया मगर वक्त की राह पर हर पल बहुत याद आए वो कागज- से फूल और बगैर खुशबू के महकाते रहे मुझे बेसाख़्ता मेरी यादों में आ- आकरके। बचपन में मुझे उस पेड़ का नाम भी नहीं पता था, पता थी तो बस बारह मास उसके खिलने की आदत।


आज हू- ब- हू वैसा ही पेड़ दुबारा देखा
, तो देखती रह गई, एकटक— याद आ गया मेरे बचपन का साथी। मैंने नब्ज देखी— पहली बार दिल जोरों से धड़क रहा था (वरना जिए जाने के बाद भी जीने का अहसास नहीं होता था कई बार तो) उसकी याद ने यकीन बनाए रखा था लेकिन यूँ रू-ब- रू होकर आज मेरे यकीन को पुख़्ता कर दिया कि ज़िन्दगी में जिधर देखती हूँ, उधर काँटे ही काँटे हैं मगर इन काँटों के बीच भी ये जो मेरी पलकों पर फूल खिल रहे हैं उम्मीदों के, और नजरों का नशेमन गुलजार है ना, उसी बोगनबेलिया ने बचपन में मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे आशीष दिया है, (आज मुझे इसका नाम मालूम हुआ, बचपन में तो बस खोई रहती थी उसके बारह मास के खिले सुर्ख काजगी फूलों की सुंदरता में)। मेरी बात शायद कुछ एक को अजीब लगती है जब मैं कहती हूँ कि पेड़ों के आशीष देने की बात करती हूँ, कुछ ये सोचकर हँसते हैं कि पेड़ों के तो हाथ नहीं होते! 

मैं बचपन से माँ को देखती आई हूँ— बरगद और पीपल की हमेशा से पूजा करते हुए। माँ मानती हैं कि पेड़ पुरखे हैं हमारे, ये सच में आशीष देते हैं हमें।

पेड़ सच में आशीष देते हैं, कोई सर झुकाकर तो देखे? मेरी यादों के जैसे इस पेड़ के साए में खड़े होकर मैंने आँखें बंद कर लीं और चली गई सोच के गलियारे से अतीत की हवेली के आँगन में, जहाँ मेरे बचपन का पेड़ है, उस पेड़ के नीचे गई और भर लीं अपनी हथेलियाँ फूलों से, अपने सर पर महसूस किए कागजी फूल— से पोर और बगैर खुशबू के महक गई मैं फिर लौट आई वक्त की कँटीली राह पर—

 

मेरी गुइयाँ

बोगनबेलिया है

सदा खिलूँगी!

 

 

शनिवार, 21 सितंबर 2024

1192

 मैं तुम्हारे दम पे-

 चोका- रश्मि विभा त्रिपाठी

 


घड़ी दो घड़ी

कभी होठों पे गीत

तो कभी मौन

जीवन की ये रीत

अजब बड़ी

जान सका है कौन?

नीरवता में

साधने लगी सुर

मैं आज फिर

जो इस समय की

सरगम पे

सिर्फ और सिर्फ ये

कर पाई हूँ

हरेक कदम पे

मैं तुम्हारे दम पे।

-0-

बुधवार, 10 जुलाई 2024

1184

खेल

रश्मि विभा त्रिपाठी

छुपाछुपी का



खेल बड़ा सुन्दर 
आसमान में
था चला रातभर 
चहककर
बादल ने बाँध दी
सफ़ेद पट्टी
चाँद की आँखों पर
फिर भागा वो
ढूँढो तो’ कहकर 
तारों ने दी ख़बर।

-0-

माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
हम इतना ही चाहें!
हाथ गहे रखना
पथरीली हैं राहें।
2
गंगा का है पानी!
बेटी की जग ने
पर कदर नहीं जानी।
3
कितने छाले पग में
ढूँढे से न मिली
भलमनसाहत जग में।
4
बेमतलब जतन हुआ
अब तो सारा ही,
रिश्तों का पतन हुआ।
5
अपनेपन का किस्सा
अब तो ख़त्म हुआ
बस माँगें सब हिस्सा।
6
है मेल- मिलाप कहाँ
पहले- सा जग में,
हर मन में पाप यहाँ।
7
सबने बस खेल रचा
माही- बालो सा
अब ना वो मेल बचा।
8
अब वो सुर- ताल नहीं
दुनिया में अब वो
सोनी- महिवाल नहीं।
9
जग में है आज नई
रीत कपट की ही
रिश्तों की लाज गई।
10
कब प्रीत निभाते हैं?
एक दिखावे की
सब रीत निभाते हैं।
11
अपनों का दोष नहीं
खेल नियति के सब
करना तुम रोष नहीं।
12
बातों में उलझाते
रिश्ते जीवन की
उलझन कब सुलझाते?
13
रिश्ता ये साँचा है
मौन अधर का भी
तुमने तो बाँचा है।
14
आए थे मोड़ नए
बीच डगर हमको
फिर साथी छोड़ गए।
15
कैसा दिन- रात गिला?
राम तलक को भी
जग में वनवास मिला!
16
मैं तो तेरी राधा!
अपने पथ की तू
ना समझ मुझे बाधा।
17
ना कशिश रही दिल में
दुनिया सिमट गई
अब तो मोबाइल में!
18
जो भी कुछ भरम रहा
टूटा पलभर में,
रिश्तों का करम रहा।
19
तोड़ा नाता सबसे
हर कोई अब तो
मिलता है मतलब से।
20
क्या जादू छाया है!
कल जो अपना था
वो आज पराया है।
21
उसके हर दावे का
सच था बस ये ही
था प्यार दिखावे का।
22
तुममें जौलानी है
तो फिर सच मानो
पत्थर भी पानी है।
23
पग- पग पर खतरे हैं
पर सय्यादों ने
बुलबुल के कतरे हैं।
24
बेड़ी में जकड़ गए
कैसी किस्मत थी
मिलते ही बिछड़ गए।
25
कोयलिया कूक उठी
जाने क्यूँ उस पल
जियरा में हूक उठी।
26
कब साथ निभाते हैं
कहने भर के ही
सब रिश्ते- नाते हैं!
27
दिन कितने हैं बीते
अब तो आ जाओ
मैं हारी, तुम जीते।
28
ये अजब कहानी है
रिश्तों में अब तो
बस खींचा- तानी है।
29
ये दिल का लग जाना!
शम्मा से पूछो
क्यों जलता परवाना?
30
है कौन ख़ुदा जाने!
जिसने बदल दिए
अब चाहत के माने।

-0- जौलानी



रविवार, 16 जून 2024

1181

माहिया

रश्मि विभा त्रिपाठी

 1


आसार तलातुम के!

मुरझा ना जाएँ

ये फूल तबस्सुम के।

2

कैसी दुश्वार घड़ी

घर के आँगन में

ऊँची दीवार खड़ी!

3

मन को यूँ बहलाया

गम की धूप तले

खुशियों का है साया!

4

पलकों पे शबनम है

मन भीगा- भीगा

यादों का मौसम है!

5

रुत बदलेगी तेवर

खो न कहीं देना

मुस्कानों का जेवर!

6

जादू है जाने क्या

पल- पल बदल रहा

अब रंग जमाने का!

7

अब चन्दन- सी काया

सौरभ खो बैठी

सबको विष ही भाया।

8

बंधन है वो मन का

जैसा बंधन था

मीरा- मनमोहन का!

9

सपने सब टूट गए 

पथ के साथी सब

पथ में ही छूट गए!

10

चाहत है शय प्यारी

शामिल मत करना

इसमें दुनियादारी!

11

मन के हर कोने से

यादों के मोती

चमके हैं सोने- से!

12

सुख ढलती छाया है

मत घबराना तू

ईश्वर की माया है!

13

जब संग दुआएँ हों

अँधियारे में भी

पुन- नूर शुआएँ हों!

14

मत करना जिरह कभी

लगके फिर न खुले

रिश्तों की गिरह कभी।

15

अपनापन किसको है

रिश्तों- नातों की

बेकार तवक़्क़ो है!

16

सब खेल नसीबों के

कल जो मेरा था

अब संग रक़ीबों के!

17

दुनिया में कौन सगा

जिसको देखो वो

देता अब सिर्फ़ दग़ा।

18

माना तेवर तीखे

मगर समय से हम

कितना कुछ हैं सीखे!

19

हम लोग शराफत के

दिन यूँ बसर करें

मारे हैं आफत के!

20

लाचार ख़ुलूस यहाँ 

इसका तो निकला

हर बार जुलूस यहाँ!

21

गमले में बासी है

फूल मुहब्बत का

माहौल सियासी है!

22

रहना तुम बच- बचके

आज जमाने में

सब दुश्मन हैं सच के!

23

गालों पर जो दिखते

आँसू वो बच्चे

घर में न कभी टिकते!

24

आँखों में पलते हैं

सपने हिम्मत के

सब खतरे टलते हैं।

25

कैसी है यह बस्ती

आज बचा पाना

मुश्किल अपनी हस्ती!

26

विधिना का लेखा है

कब क्या हो जाए 

यह किसने देखा है!

27

रिश्तों का है मेला

है व्यवहार मगर

सबका ही सौतेला!

28

दिल तो सब ले लेंगे

समझ खिलौना पर

सब इससे खेलेंगे!

29

राहों पर बढ़ते हैं

जो भी चाहत की

सूली पर चढ़ते हैं!

30

सन्नाटे गहरे हैं

किससे हाल कहें

सब अंधे- बहरे हैं!

 -0-

 

 

 

बुधवार, 29 मई 2024

1180-माहिया-जुगलबन्दी

 [मेरे पूर्व प्रकाशित माहिया पर रश्मि विभा त्रिपाठी ने जुगलबन्दी में कुछ माहिया रचे हैं। आशा है इनका यह प्रयास पसन्द आएगा-काम्बोज]

रामेश्वर काम्बोज  'हिमांशु'

रश्मि विभा त्रिपाठी


1

सन्देशे खोए हैं
तुम क्या जानोगे
हम कितना रोए हैं!


सन्देसे आएँगे
करना आस यही
बिछड़े मिल जाएँगे।
2
बाहों में कस जाना
तन से गुँथकरके
मन में तुम बस जाना।


बाहों में कसकरके
दूर न तुम जाना
फिर मन में बसकरके।
3
बाहों के बंधन में
अधरों के प्याले
साँसों के चंदन में।

अब तो हर बंधन में
सब विष घोल रहे
साँसों के चंदन में।
4
यों मत मज़बूर करो
हम दिल में रहते
हमको मत दूर करो।


ये ही दस्तूर रहा
दिल में जो बसता
नज़रों से दूर रहा।
5
विधना का लेखा है
आँखें तरस गईं
तुमको ना देखा है।

विधना का ये लेखा
बदल गया जबसे
मैंने तुमको देखा।
6
रस दिल में भर जाना
अधरों की वंशी
अधरों पर धर जाना।

पूरी आशा कर दी
अधरों की वंशी
जब अधरों पे धर दी।
7
है उम्र नहीं बन्धन
खुशबू ही देगा
साँसों में जो चंदन।

अब टूट चला बंधन
कब तक विष झेले
साँसों का ये चन्दन।
-0-

रविवार, 28 अप्रैल 2024

1176

 माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी


1

क्या कहर नहीं ढाती

धूप जुदाई की

हरदम ही झुलसाती।

2

तेरा ही ख़्वाब मुझे

दिखता रातों को

मेरा महताब मुझे।

3

ख़्वाबों में हम चलते

तुम तक जा पहुँचें

दिन के ढलते- ढलते।

4

होता न अज़ाब कभी

खुशियों के मानी

हैं तेरे ख़्वाब सभी।

5

दिल की तुम हसरत हो

कैसे छोड़ूँ मैं

तुम मेरी आदत हो।

6

हम फर्ज़ अदा करते

रोज मुहब्बत का

तेरा सजदा करते।

7

पलकें ये हैं भारी

अब तो आने को

कर लो तुम तैयारी।

8

विश्वास अगर होगा

इक दूजे के प्रति

तो प्यार अमर होगा।

9

दिल आज कुशादा है

तुमपे यकीं मुझे

खुद से भी ज़्यादा है।

10

जाने क्या कर जाएँ?

तुमसे बिछड़े तो

शायद हम मर जाएँ।

11

सबकुछ अब पाया है

तेरी सूरत में 

मैंने रब पाया है!

12

सबकुछ फ़ानी होगा

प्यार मगर मेरा

जावेदानी होगा।

13

अरमाँ मचले दिल में

जब आकर बैठे

तुम मेरी महफिल में।

14

वो आन मिला मुझको

मेरी किस्मत से

ना गम न गिला मुझको।

15

खुशबू इक भीनी है

तेरी चाहत ये

कितनी शीरीनी है।

16

दीदा- ए- पुर- नम है

तू जो साथ नहीं

बस ये ही इक गम है।

17

कब वो रह पाया है

मुझसे दूर कहीं

मेरा हमसाया है।

18

अवसाद घना हर लो

अपनी बाहों में

तुम अब मुझको भर लो।

19

मन कितना निश्छल है

तुमको पाना तो

पुण्यों का ही फल है।

20

इक पाक भरोसा है

मेरे माथे पर

तेरा जो बोसा है।

21

है सफ़र अधूरा ये

साथ चलोगे तुम

तब होगा पूरा ये।

22

मत वक्त गँवाओ तुम

जीवन दो दिन का 

अब आ भी जाओ तुम।

23

जब तुमको ना पाऊँ

कितनी मुश्किल से

मैं दिल को समझाऊँ।

24

क्या और कहें ज़्यादा 

ये ही कहते हैं-

ना तोड़ेंगे वादा।

25

बेशक कह ना पाएँ 

तेरे बिन लेकिन 

हम तो रह ना पाएँ।

26

तुमसे इक बार मिले

तन- मन महक उठा

ज्यों हरसिंगार खिले।

27

उनसे इकरार हुआ 

आज क़बूल हुई

मेरी हर एक दुआ।

28

शोलों से क्या डरना

प्यार तुम्हारा ये

इक मीठा- सा झरना।